प्राइवेट प्रतिरक्षा क्या है संपूर्ण जानकारी ? जानिए अपने अधिकार राइट टू डिफेंस के तहत? (What is Self Defence or Private Defence?)
प्राइवेट प्रतिरक्षा (Private Defence)-यदि कोई व्यक्ति उतने बल का प्रयोग करता है जो उसकी सुरक्षा के लिए जरूरी है तो उसके द्वारा कारित क्षति के लिए वह उत्तरदायी नहीं होगा। बल का प्रयोग केवल प्रतिरक्षा के लिए ही न्यायसंगत अथवा औचित्यपूर्ण माना गया है। आत्म-प्रतिरक्षा में केवल तभी बल का प्रयोग न्याय-संगत माना जा सकता है, जब दैहिक संरक्षा अथवा सम्पत्ति-हानि की आशंका हो। उदाहरण के लिए, ख के प्रतिकूल क द्वारा मात्र इस कारण बल का प्रयोग न्याय-संगत नहीं माना जायेगा, क्योंकि क यह समझता है कि ख किसी दिन उस पर आक्रमण कर सकता है। इसी प्रकार यदि क प्रतिशोध की भावना-तृप्ति के लिये ख पर तब आक्रमण करता है, जब ख ने क पर अपना आक्रमण पूरा कर लिया है, तो भी के द्वारा किया गया आक्रमण न्याय-संगत नहीं माना जायेगा।
यह भी आवश्यक है कि बल भी उतना ही प्रयुक्त किया जाय जितना कि वह आक्रमण को पछाड़ देने के लिए आवश्यक हो। उदाहरण के लिए यदि क, ख को मारता है, तो ख का यह कार्य औचित्यपूर्ण नहीं माना जायेगा कि वह अपनी प्रतिरक्षा में तलवार निकाल कर क का हाथ ही काट ले। प्रयुक्त किया गया बल अधिक नहीं होना चाहिए। कितना बल प्रयुक्त किया जाना आवश्यक है, हर मामले की परिस्थिति पर निर्भर करता है। “विधि, यद्यपि, आत्मप्रतिरक्षा के अधिकार को, बल को बल द्वारा पछाड़ देने के अधिकार को मान्यता प्रदान करती है परन्तु किसी भी अधिकार का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिये, और आत्म-प्रतिरक्षा का अधिकार एक ऐसा अधिकार है, जिसका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। प्रयुक्त किया गया बल घटना की प्रकट आवश्यकता के अनुपात में अधिक नहीं होना चाहिये।
सम्पत्ति की संरक्षा के निमित्त विधि ऐसे उपक्रम को अपनाने की अनुज्ञा प्रदान करती है, जो युक्तियुक्ततः आवश्यक हो। किसी दीवार पर शीशे के टुकड़े अथवा नुकीले कीलों को लगवाना या किसी खूखार कुत्ते को घर पर रखना औचित्यपूर्ण हो सकता है, परन्तु चोर बन्दूक का लगवाना नहीं। बर्ड बनाम होलबुक के वाद में प्रतिवादी ने बिना किसी सूचना के अपने बगीचे में एक चोर-बन्दूक लगवा रखी थी, जिसके परिणामस्वरूप एक अतिचारी इसके स्वतः चालन के परिणामस्वरूप गम्भीर रूप से घायल हो गया था। यह धारित किया गया कि वादी क्षतिपूर्ति का अधिकारी था, क्योंकि उसके विपरीत जिस बल का प्रयोग किया गया था, वह अवसर की आवश्यकता के अनुपात में अधिक घटित था। इसी प्रकार कोलिन्स बनाम रेनीसन के वाद में वादी प्रतिवादी के बगीचे में एक दीवार पर बोर्ड लगाने के लिए सीढ़ी पर चढ़ा हुआ था। प्रतिवादी ने उसे सीढ़ी से अलग कर जमीन पर गिरा दिया और जब उसके विपरीत हमला करने का वाद संस्थित किया गया तो उसने यह अभिवाक् प्रस्तुत किया कि उसने सीढ़ी को धीरे से हिलाया था। सीढ़ी बहुत छोटी थी इस सीढ़ी को उसने अत्यन्त धीरे-धीरे उलट दिया था और वादी को धीरे से उसने जमीन पर गिराया था और इस कार्य में वह लगातार यह प्रयास कर रहा था कि वादी को कम से कम क्षति कारित हो। उसने यह भी कहा कि जब प्रतिवादी ने नीचे उतरना अस्वीकार कर दिया, तभी उसने ऐसा कार्य किया था। यह धारित किया गया कि भूमि के कब्जे की प्रतिरक्षा में जिस बल का प्रयोग किया गया था वह औचित्यपूर्ण नहीं था।
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