संयुक्त एवं स्वतन्त्र अपकृत्यकर्ता में अन्तर के क्या कारण हैं? joint and independent tort feasors
संयुक्त एवं स्वतन्त्र अपकृत्यकर्त्ता में अन्तर का प्रमुख कारण निम्न है-
(1) संयुक्त अपकृत्यकर्ता की स्थिति में यह माना गया है कि इसमें केवल एक ही वाद कारण होता है, और इसीलिये, संयुक्त अपकृत्यकर्ताओं में से यदि केवल एक के विरुद्ध निर्णय प्राप्त किया जाता है, तो वाद का हेतुक समाप्त हो जाता है। यदि वादी का दावा इस पर भी सन्तुष्ट नहीं होता तो, वह शेष संयुक्त अपकृत्यकर्ता के विरुद्ध कार्यवाही नहीं कर सकता। दूसरी तरफ, स्वतन्त्र अपकृत्यकर्ता की स्थिति में यह माना गया कि उतने वाद कारण हो सकते हैं, जितने कि स्वतन्त्र अपकृत्यकर्ता होते हैं। अतः ऐसे किसी एक अपकृत्यकर्ता के विरुद्ध की गयी कार्यवाही अन्य अपकृत्यकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये बाधा नहीं बन सकती।
इंग्लैण्ड में संयुक्त अपकृत्यकर्ता की स्थिति को स्वतन्त्र अपकृत्यकर्ता की स्थिति के समान कर दिया गया है, और अब संयुक्त अपकृत्यकर्ता में से किसी एक अथवा कुछ के विरुद्ध की गयी कार्यवाही उनमें से शेष अपकृत्यकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए बाधा नहीं बन सकती। इस सन्दर्भ में भारत में स्थिति वैसी ही जान पड़ती है, जैसी कि इंग्लैण्ड में विधान का निर्माण करके बना दी गई है।
(2) संयुक्त अपकृत्यकर्ताओं में से किसी एक की मुक्ति अन्य समस्त की मुक्ति में प्रतिफलित होती है जब तक कि इसके विपरीत कोई अभिसंविदा (stipulation) न हो। स्वतन्त्र अपकृत्यकर्ताओं की स्थिति इससे भिन्न है, अर्थात् उनमें से किसी एक स्वतन्त्र अपकृत्यकर्ता की मुक्ति अन्य अपकृत्यकर्ताओं को मुक्त नहीं करती। ‘संयुक्त अपकृत्यकर्ताओं का दायित्व संयुक्त एवं पृथक् दोनों होता है।”
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