समाजशास्‍त्र / Sociology

निदर्शन के आकार को निर्धारित करने वाले तत्व- Sociology in Hindi

निदर्शन के आकार को निर्धारित करने वाले तत्वों का वर्णन कीलिए।

निदर्शन पद्धति में निदर्शन का आकार प्रमुख समस्या है। निदर्शन का आकार बड़ा होने पर समय, धन और परिशुद्धता सम्बन्धी विभिन्न कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। यदि निदर्शन का आकार छोटा हो, तो प्रतिनिधित्व और विश्वसनीयता के प्रति संदेह सम्बन्धी समस्यायें प्रकट होती हैं। अतः निदर्शन सदैव पर्याप्त आकार में चुनना चाहिए अर्थात् निदर्शन इतना छोटा न हो कि उसमें प्रतिनिधि तथ्य न आ सकें और न ही इतना बड़ा हो कि अध्ययन से धन, समय और शक्ति का दुरुपयोग हो। सही ढंग से चयनित किया गया छोटा सा निदर्शन भी प्रतिनिधित्व कर सकता है। निदर्शन का आकार वही उत्तम है, जिससे प्रतिनिधि एवं विश्वसनीय इकाइयां प्राप्त हो सकें। निदर्शन के आकार को निम्नलिखित तत्व प्रभावित करते हैं-

1. समग्र की प्रकृति (Nature of Universe)-

यदि समग्र की इकाइयाँ सजातीय हैं तो लघु/ छोटे आकार का निदर्शन भी प्रतिनिधित्वपूर्ण परिणाम दे सकता है, किन्तु यदि समग्र की इकाइयों में एकरूपता/सजातीयता का अभाव है, तो निदर्शन का आकार बड़ा ही होना चाहिए।

2. अनुसंधान/अध्ययन की प्रकृति (Nature of Study)-

अनुसंधान की प्रकृति भी निदर्शन के आकार को स्पष्टतः प्रभावित करती है। यदि इकाइयों का अध्ययन अधिक समय तक गहन और विस्तृत अध्ययन करना है, तो अपेक्षाकृत छोटा निदर्शन चुनना चाहिए, ताकि धन, समय और संगठन की समस्यायें न आयें। इसके विपरीत यदि संक्षिप्त अध्ययन करना है, तो बड़े आकार का निदर्शन चुना जाना चाहिए।

3. वर्गों की संख्या (Number of Classes)-

यदि समग्र विभिन्न वर्गों में विभाजित है और वर्गों की इकाइयों में पर्याप्त विभिन्नतायें/विविधतायें हैं, तो निदर्शन भी बड़ा चुनना होगा। किन्तु यदि वर्गों की संख्या कम है और उसकी इकाइयों में सजातीयता है, जो छोटे निदर्शन से भी प्रतिनिधि एवं विश्वसनीय निष्कर्ष/परिणाम मिल सकते हैं। स्पष्ट है कि छोटे आकार के निदर्शन से भी काम चल सकता है।

4. निदर्शन प्रणाली के प्रकार (Types of Sampling Method)-

निदर्शन पद्धति का प्रकार भी निदर्शन के आकार पर स्पष्ट प्रभाव डालता है। यदि इकाइयों का चुनाव ‘दैव निदर्शन’ (Random Sampling) के द्वारा करना है, तो निदर्शन का आकार बड़ा होना आवश्यक है। किन्तु यदि ‘उद्देश्यपूर्ण’ (Purposive) अथवा ‘स्तरित’ (Stratified) प्रणाली से चुनाव करना हो, तो निदर्शन का आकार उचित छोटा होना चाहिए।

5. चुनी हुई इकाइयों की प्रकृति (Nature of Sample Units)-

जिन इकाइयों से सूचना प्राप्त होती है, वे भी निदर्शन के आकार पर प्रभाव डालती हैं। यदि निदर्शन की इकाइयाँ क्षेत्रीय समस्यायें पैदा होती हैं, तो इस स्थिति में छोटा निदर्शन चुनना ही अधिक श्रेयस्कर होता है। किन्तु यदि दृष्टि से दूर-दूर तक फैली हों और उनसे सम्पर्क स्थापित करने में अधिक व्यय और कठिनाइयां/ इकाइयां एक-दूसरे के समीप हैं, तो बड़े आकार का निदर्शन चुनना ही अच्छा होगा।

6. अध्ययन-यंत्र/उपकरण/प्रविधि (Study Tools/Techniques)-

अध्ययन  प्रविधि/यंत्र भी निदर्शन के आकार को प्रभावित करने वाला तत्व है। यदि साक्षात्कार प्रविधि के द्वारा अध्ययन किया जाना है या वैयक्तिक अध्ययन करना है, तो निदर्शन का आकार छोटा होना ही उचित होगा, क्योंकि इन दोनों ही प्रविधियों में बहुत अधिक समय, शक्ति/परिश्रम व्यय होता आवश्यक है। अनुसूची व प्रश्नावली का आकार जितना बड़ा होगा, उतना ही छोटा निदर्शन चुनना होगा, ताकि समय व परिश्रम की बचत हो सके।

7. संसाधन/साधन (Resources)-

अनुसंधानकर्ता अपनी शक्ति, समय और क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की संख्या आदि उपलब्ध साधनों की मात्रा के आधार पर निदर्शन के आकार का निर्धारण करता है। यदि अनुसंधानकर्ता के पास साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है अथवा अधिक मात्रा में है, तो उसे बड़ा निदर्शन चुनना चाहिए। किन्तु यदि उसके पास सीमित/कम मात्रा में साधन है, तब उसे छोटा निदर्शन ही चुनना चाहिए। स्पष्ट है कि निदर्शन के आकार को निर्धारित करने से पहले ही सभी तत्वों के सम्बन्ध में पर्याप्त रूप से विवेचना कर लेनी आवश्यक है, ताकि उसमें कार्यक्षमता, विश्वसनीयता और प्रतिनिधित्वता का समावेश हो सके। निदर्शन के आकार के विषय में कहा जाता है कि, “निदर्शन को अनावश्यक व्यय से बचने के लिए काफी छोटा और असहनीय अशुद्धि से बचने हेतु काफी बड़ा होना चाहिए।”

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