वैयक्तिक अध्ययन के महत्व
वैयक्तिक अध्ययन के महत्व का उल्लेख कीजिए।
1. वैध प्राक्कल्पना का स्रोत–
वैयक्तिक अध्ययन के आधार पर वैध उपकल्पनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है। कुछ इकाइयों का अध्ययन करने के उपरांत जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं, उनके आधार पर नवीन प्राक्पकल्पनाओं का जन्म होता है। वास्तव में वैयक्तिक अध्ययन तथा समस्या से सम्बन्धित साहित्य ही उपकल्पनाओं के निर्माण के प्रमुख स्रोत हैं।
2. अध्ययन संयंत्रों के निर्माण में सहायक-
वैयक्तिक अध्ययन की पद्धति प्रश्नावली और अनुसूची आदि अनुसंधान के विभिन्न यंत्रों का निर्माण करने में सहायक होती हैं। किसी वर्ग की विशेष इकाईयों का अध्ययन कर लेने के उपरांत उस वर्ग की महत्वपूर्ण विशेषताओं तथा सामान्य लक्षणों का ज्ञान हो जाता है। इस ज्ञान के आधार पर समूह का अध्ययन करने के लिये अनुसूची तथा प्रश्नावली आदि प्रपत्रों को तैयार करना आसान हो जाता है। वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा यह भी पता लग जाता है कि अध्ययन में कौन-सी विधि या प्रणाली तथा साधन अधिक उपयुक्त रहेंगे।
3. समस्त अध्ययन विधियों का उपयोग-
वैयक्तिक अध्ययन ऐसी पद्धति है, जिसमें प्रायः प्रत्येक अनुसंधान प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है। व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित घटनायें इतनी विविध होती हैं कि उन्हें समझने की चेष्टा करने में प्रत्येक विधि से लाभ उठाया जा सकता है। ऐसा करने में अनुसंधानकर्ता का व्यावहारिक तथा प्रयोगिक अनुभव बढ़ जाता है तथा वह अपने कार्य में दक्षता भी प्राप्त कर लेता है।
4. वर्गीकरण में सहायक-
वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा समूह की विभिन्न इकाइयों के गुण ज्ञात हो जाते हैं। उनके आधार पर समूह की इकाइयों को विभिन्न वर्गों में बाँटना आसान हो जाता है। इकाइयों के अध्ययन से प्राप्त लक्षणों को वर्गीकरण एवं तुलना का आधार बनाया जा सकता है।
5. विरोधी इकाइयों का ज्ञान-
किसी उपकल्पना के विषय में सही निष्कर्ष निकालने के लिये उन इकाइयों का ज्ञान भी आवश्यक है, जो प्राक्कल्पना के विपरीत है। विरोधी इकाइयाँ केवल वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा ही स्पष्ट हो सकती हैं।
6. दीर्घ प्रक्रिया का अध्ययन-
मनुष्य का जीवन किसी एक ही लक्षण में एक ही परिस्थिति से प्रभावित होकर स्पष्ट नहीं होता। जीवन की कोई घटना काफी समय से चलने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम होती है। उदाहरण के लिए, आत्महत्या का कोई सामाजिक बहाना होते हुए भी उसके लिये प्रेरणा देने वाले अनेकों ऐसे स्रोत या घटनायें रहती हैं, जो काफी पहले से मनुष्य की मानसिक स्थिति को असंतुलित बनाने में सहायक रही है। कोई सामाजिक घटना अनायास ही नहीं घटित होती। प्रेम-विवाह अनायास ही नहीं हो जाते, कभी-कभी वर्षों तक प्रेम- प्रक्रिया चलती रहती है और तब जाकर विवाह होता है। इस प्रकार की दीर्घकालीन प्रक्रियाओं का अध्ययन करने में भी वैयक्तिक अध्ययन अत्यन्त उपयोगी पद्धति सिद्ध हुयी है।
7. व्यक्तित्व का अध्ययन-
वैयक्तिक अध्ययन में व्यक्तिगत इकाइयों को समुचित महत्व दिया जाता है। समूह के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को व्यक्तियों पर लागू करना मनुष्यों के व्यक्तिगत अस्तित्व की उपेक्षा करना है। प्रत्येक मनुष्य अपनी बुद्धि, क्षमता और भावनाओं के योग से निर्मित एक विशिष्ट व्यक्तित्व है। यह विशिष्टता ही अधिकतर उसके व्यवहार का प्रेरणा स्रोत है जहाँ समूह के साथ समरूपता में व्यक्ति का महत्व है, वहां नवीनता, विशिष्टता तथा भिन्नता में भी उसका गौरव है। अतः सामाजिक व्यवहार, क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिये मनुष्य के विशिष्ट गुणों का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है।
8. व्यापक अनुभव-
वैयक्तिक अध्ययन प्रणाली अनुसंधानकर्ता के अनुभव को विस्तृत तथा पुष्ट करती है। दूसरी विधियों में जीवन के किसी एक पक्ष का अध्ययन किया जाता है। वैयक्तिक अध्ययन सम्पूर्ण जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का अध्ययन है। इस पद्धति में व्यक्ति की सामाजिक धारणाओं, मूल्यों, दृष्टिकोणों तथा स्थितियों के अतिरिक्त उसके जीवन में परिवर्तन लाने वाली अनेकों परिस्थितियों तथा उन परिस्थितियों को जन्म देने वाले कारकों का भी विस्तृत अध्ययन किया जाता है। इस विस्तृत अध्ययन से अनुसंधानकर्ता के अपने अनुभव का क्षेत्र भी बढ़ता है और उसका सामाजिक ज्ञान भी विकसित होता है।
9. गहन, विस्तृत तथा सम्पूर्ण अध्ययन-
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में, यद्यपि सीमित इकाईयों का अध्ययन किया जाता है, तथापि उनका सर्वांगीण अध्ययन किया जाता है। केवल विशिष्ट और प्रतिनिधि गुणों तक ही वैयक्तिक अध्ययन सीमित नहीं रहता, बल्कि सामान्य लक्षणों को भी स्पष्ट करता है। इसी प्रकार किसी समस्या या स्थिति के वर्तमान स्वरूप का चित्र न देकर वैयक्तिक अध्ययन में उसकी निरंतरता (Continuity) दिखाई जा सकती है। घटनाओं की भूतकालीन अवस्थाओं को समझने के लिये भी यह पद्धति अत्यन्त उपयोगी है। जीवन से सम्बन्धित प्रत्येक प्रभावक तत्व का गहन तथा विस्तृत विश्लेषण करके वर्तमान घटनाओं तथा पूर्व स्थितियों का चित्र प्रस्तुत करने में वैयक्तिक अध्ययन अत्यन्त उपयोगी है।
10. प्रारम्भिक अध्ययन में उपयोगी-
वैयक्तिक अध्ययन अनुसंधान के प्रारम्भिक स्तर पर भी बहुत उपयोगी है। कोई भी नया अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ वैयक्तिक अध्ययन कर लेने से समस्या से सम्बन्धित अनेकों तथ्य प्रकट हो जाते हैं, जिनके आधार पर भावी अध्ययन का संगठन सुगमता से किया जा सकता है। समय, धन तथा आवश्यक साधनों का अनुमान भी वैयक्तिक अध्ययन से ही हो जाता है।
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