तथ्यों के संकलन का महत्व/उपयोगिता का उल्लेख कीजिए।
कोई भी वैज्ञानिक अध्ययन इस अर्थ में वैज्ञानिक होता है कि वह कल्पनाओं के स्थान पर वास्तविक तथ्यों पर आधारित होता है। किन्तु वास्तविक तथ्यों की प्राप्ति हमें घर बैठे नहीं होती, वास्तविक तथ्यों की प्राप्ति हेतु कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इनके संकलन के बिना न तो कोई वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव है और न ही कोई वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालना। तथ्यों के संकलन का महत्व निम्नलिखित क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
1. वैज्ञानिक अध्ययन का मूलाधार होना-
वास्तविक तथ्य ही किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन के मूलाधार होते हैं। कोई भी वैज्ञानिक अध्ययन तब तक सम्भव नहीं होता, जब तक कि अध्ययन-विषय से सम्बन्धित वास्तविक तथ्यों को एकत्रित या प्राप्त नहीं कर लिया जाता। चूंकि वैज्ञानिक अध्ययन तथ्य युक्त होता है, अतः तथ्यों की अनुपस्थिति में वैज्ञानिक सकती है।
2. अध्ययन-विषय की वास्तविकता प्रकट होना-
तथ्यों के संकलन का एक महत्व यह भी है कि वास्तविक तथ्य अध्ययन-विषय की वास्तविकता को सामने लाकर स्पष्ट कर देते हैं। किसी भी विषय की वास्तविकता को मात्र अटकलपच्चू कल्पनाओं के आधार पर ही नहीं समझा जा सकता है। उसे समझने के लिए वास्तविक तथ्यों को संकलित करना ही पड़ता है।
3. सामाजिक अनुसंधान/सर्वेक्षण के वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति होना-
किसी भी अनुसंधान अथवा सर्वेक्षण का उद्देश्य ज्ञान की वृद्धि करना है, ताकि सामाजिक समस्याओं के समाधानार्थ कोई व्यावहारिक हल खोजा जा सके। यह कार्य (उद्देश्य) तब तक पूर्ण नहीं हो सकता, जब तक कि वास्तविक तथ्यों को संकलित न कर लिया जाये। वास्तविक तथ्यों के संकलन से ही एक सामाजिक समस्या के विभिन्न पक्ष सुस्पष्ट हो सकते हैं। विभिन्न पक्षों के स्पष्ट हुए बिना न तो ज्ञान की वृद्धि हो सकती है और न समस्या का समाधान ही हो सकता है।
4. प्राक्कल्पना की सत्यता की जाँच होना-
किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन में अध्ययन की दिशा का निर्धारण करने तथा अध्ययन-क्षेत्र को सीमित करने हेतु हम आरम्भ में ही एक कामचलाऊ निष्कर्ष/उपकल्पना का निर्माण कर लेते हैं। यह निष्कर्ष केवल कामचलाऊ ही होता है, अन्तिम नहीं, अर्थात् उपकल्पना को ही अध्ययन का वास्तविक निष्कर्ष नहीं मान लिया जाता। इसके विपरीत वास्तविक तथ्यों को संकलित/एकत्रित किया जाता है तथा इन एकत्रित तथ्यों के आधार पर इस बात की जाँच भी की जाती है कि हमने जिस उपकल्पना का निर्माण किया है, वह वस्तुतः ठीक/उचित है अथवा गलत/अनुचित। स्पष्ट है कि तथ्यों का संकलन किए बिना हम उपकल्पना की सत्यता की जाँच नहीं कर सकते हैं।
5. पुराने सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा में सहायक होना-
तथ्यों का संकलन करने से हमें पुराने सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा या दोबारा जांच करने में भी सहायता मिलती है। इस सन्दर्भ में स्मरणीय है कि कोई भी सामाजिक नियम अन्तिम नहीं है अर्थात् जो नियम एक बार बन गया, वह सदैव ही सच बना रहेगा, ऐसी बात नहीं। इसका कारण है कि सामाजिक परिस्थितियों में निरंतर परिवर्तन होता रहता है और उनमें परिवर्तन होने के साथ-साथ सामाजिक नियमों में भी आवश्यक परिवर्तन करने की जरूरत पड़ती है। यही कारण है कि पुराने सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा करना जरूरी होता है। यह पुनपराक्षा तब तक सम्भव नहीं होता, जब तक एक विशेष के सम्बन्ध में वास्तविक तथ्यों का संकलन न किया जाये। इस प्रकार एकत्रित वास्तविक तथ्यों की सहायता से ही हम यह जान सकते हैं कि जिन सिद्धांतों व नियमों का प्रतिपादन पहले किया गया है, वह वर्तमान अवस्थाओं में भी सही है अथवा नहीं। और यदि नहीं, तो वास्तविक तथ्यों के आधार पर उन सिद्धांतों और नियमों में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है।
6. नवीन सिद्धांतों एवं नियमों का प्रस्तुतीकरण सम्भव होना-
वास्तविक तथ्यों के संकलन से नये सिद्धांतों व नियमों को प्रस्तुत किया जा सकता है। ऐसे अनेक अध्ययन- विषय हो सकते हैं, जिनका अध्ययन पहली बार ही किया जा रहा हो। इन अध्ययन-विषयों के बारे में वास्तविक तथ्यों का संकलन करके उन तथ्यों के आधार पर नवीन सामाजिक सिद्धांत और नियमों को भी बनाया जा सकता है।
7. वैज्ञानिक प्रगति का आधार होना-
तथ्यों का संकलन समस्त वैज्ञानिक प्रगति का आधार माना जाता है। विज्ञान की प्रगति इसी बात पर निर्भर है कि हम किसी भी विषय के सम्बन्ध में अधिकाधिक वास्तविकता से विज्ञ/ परिचित हों। इस प्रकार की वास्तविकताओं को वास्तविक तथ्यों को एकत्रित किए बिना जानना सम्भव नहीं है। किसी विषय के सम्बन्ध में वास्तविक तथ्यों को संकलित करने पर ही हमें उसके बारे में अधिकतम ज्ञानार्जन हो सकता है। पष्ट है कि विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में अधिकाधिक ज्ञान प्राप्त करना विज्ञान की प्रगति हेतु अत्यावश्यक है तथा यह कार्य वास्तविक तथ्यों के संकलन द्वारा ही हो सकता है। स्पष्ट है कि सामाजिक अनुसंधान और सर्वेक्षण के क्षेत्र में तथ्यों को संकलित/एकत्रित करना अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि कोई भी वैज्ञानिक अध्ययन तब तक सम्भव नहीं है, जब तक कि अध्ययन-विषयों से सम्बन्धित वास्तविक तथ्यों की प्राप्ति नहीं की जाती है। वास्तविक तथ्यों की अनुपस्थिति में वैज्ञानिक अध्ययन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि वास्तविक तथ्यों के बिना हम कहानी, उपन्यास, कविता तो लिख सकते हैं, किन्तु किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते।
Important Links
- अनुसंधान अभिकल्प क्या है ? तथा इसकी प्रकृति |Meaning & Nature of Research design in Hindi
- वैदिक साहित्य के प्रमुख वेद – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद in Hindi
- सामाजिक सर्वेक्षण के गुण व सीमाएँ | Qualities and limitation of social survey in Hindi
- परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार | Types of Hypothesis in Hindi
- उपकल्पना का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी विशेषताएँ और प्रकृति – Sociology in Hindi
- भारतीय जनजातियों के भौगोलिक वर्गीकरण | Geographical classification of Indian tribes
- मैक्स वेबर की सत्ता की अवधारणा और इसके प्रकार | Concept of Power & its Variants
- मैक्स वेबर के आदर्श-प्रारूप की धारणा | Max Weber’s Ideal Format Assumption in Hindi
- स्पेन्सर के सामाजिक संगठन के ऐतिहासिक विकासवाद | Historical Evolutionism in Hindi
- स्पेन्सर के समाज एवं सावयव के बीच समानता | Similarities between Spencer’s society & matter
- मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धांत | Marx’s class struggle Theory in Hindi
- आधुनिक पूँजीवादी व्यवस्था में मार्क्स के वर्ग-संघर्ष | Modern capitalist system in Hindi
- अगस्त कॉम्टे के ‘प्रत्यक्षवाद’ एवं कॉम्टे के चिन्तन की अवस्थाओं के नियम
- आगस्ट कॉम्टे ‘प्रत्यक्षवाद’ की मान्यताएँ अथवा विशेषताएँ | Auguste Comte of Positivism in Hindi
- कॉम्ट के विज्ञानों के संस्तरण | Extent of Science of Comte in Hindi
- कॉम्ट के सामाजिक स्थिति विज्ञान एवं सामाजिक गति विज्ञान – social dynamics in Hindi
- सामाजिक सर्वेक्षण की अवधारणा और इसकी प्रकृति Social Survey in Hindi
- हरबर्ट स्पेन्सर का सावयवि सिद्धान्त एवं सावयवि सिद्धान्त के विशेषताएँ
Disclaimer