सामाजिक सर्वेक्षण के गुण व सीमाएँ
सामाजिक सर्वेक्षण के गुण
(1) परिमाणात्मक सूचना का स्रोत-
सामाजिक सर्वेक्षण विस्तृत सामग्री के सम्बन्ध में परिमाणात्मक सूचनाएँ प्रदान करने का मुख्य स्रोत है जिसमें सांख्यिकीय प्रविधियों को भी विस्तार से लागू किया जा सकता है।
(2) गुणात्मक सूचनाएँ का स्रोत-
सामाजिक सर्वेक्षण परिमाणात्मक सूचनाओं के साथ-साथ गुणात्मक सूचनाओं के संकलन का भी एक अति उपयोगी साधन है।
(3) वैज्ञानिक शुद्धता-
सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त परिणाम एवं निष्कर्ष सूक्ष्म, उपयुक्त और विश्वसनीय होते हैं क्योंकि इसमें वैज्ञानिकता का गुण पाया जाता है अर्थात सम्पूर्ण सर्वेक्षण वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जाता है।
(4) वस्तुनिष्ठता-
सामाजिक सर्वेक्षण में क्योंकि सामान्यतः अनेक सर्वेक्षणकर्ता कार्यरत होते हैं अतः अध्ययन को उनके व्यक्तिगत विचारों एवं मनोभावनाओं द्वारा प्रभावित होने या किसी प्रकार का पक्षपात होने की सम्भावना बहुत कम होती है। वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करने तथा विषय-वस्तु से प्रत्यक्ष एवं निकट का सम्पर्क होने के कारण सर्वेक्षण द्वारा एकत्रित सूचनाएँ अधिक वस्तुनिष्ठ होती है।
(5) प्राक्कल्पना का निर्माण एवं परीक्षण-
सामाजिक सर्वेक्षण उपकल्पना या प्राकल्पना के निर्माण में सहायता देते हैं तथा इतना ही नहीं अपितु इससे सम्बन्धित आँकड़ें एकत्रित करके उनकी प्रामाणिकता को जाँच करने में भी सहायक होते है। अधिकांश सर्वेक्षणों में आँकड़ों के संकलन द्वारा उपकल्पनाओं का परीक्षण करने का ही प्रयास किया जाता है।
सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाएँ
(1) अमूर्त घटनाओं के अध्ययन में असक्षम-
सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा केवल अवलोकनीय घटनाओं का ही अध्ययन सम्भव हो पाता है हम इससे अमूर्त घटनाओं या किसी प्रकार की आन्तरिक सूचना प्राप्त नहीं कर सकते हैं। विचारों, विश्वासों एवं व्यवहारों की जटिलता को समझने में अनेक विद्वानों ने सामाजिक सर्वेक्षणों को अनुपयुक्त बताया है।
(2) अत्यधिक समय एवं धन-
सामाजिक सर्वेक्षण हेतु अत्यधिक समय एवं धन की आवश्यकता होती है। विविध प्रकार के साधनों (जैसे- अनुसूचियों, प्रश्नवलियों, साक्षात्कार, सांख्यिकीय विश्लेषण आदि) के प्रयोग के कारण सामाजिक सर्वेक्षण में पैसा ही अधिक खर्च नहीं होता अपितु अनेक सर्वेक्षण कई-कई साल तक चलते रहते हैं।
(3) निदर्शन त्रुटि-
सामान्यतः निदर्शन सर्वेक्षणों में निदर्शनं त्रुटि की सम्भावना अधिक होती है क्योंकि बड़े एवं व्यापक स्तर पर होने वाले सर्वेक्षणों में निदर्शन की विश्वसनीयता की जाँच करना एक कठिन कार्य होता है।
(4) अवास्तविक सूचनाएँ –
सामाजिक सर्वेक्षण के अन्तर्गत यह सम्भावना अधिक रहती है कि उत्तरदाता अपनी वास्तविक स्थिति से हटकर समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों एवं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए यथार्थ सूचनाएँ न देकर गलत सूचनाएँ दे। सर्वेक्षण में व्यक्तिगत भिन्नता के कारण भी निष्कर्षों में पक्षपात हो सकता है।
(5) अध्ययन का सीमित क्षेत्र-
सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा किए जाने वाले अध्ययनों का क्षेत्र सीमित होता है, जिससे कई बार सामान्यीकरण करना तक कठिन हो जाता है। किसी एक सर्वेक्षण द्वारा हम किसी समस्या या समूह के एक ही पहलू या भाग का अध्ययन कर सकते हैं।
(6) पर्याप्त ज्ञान एवं प्रशिक्षण-
सामाजिक सर्वेक्षण के संचालन के लिए पर्याप्त ज्ञान एवं विशेषीकरण की आवश्यकता होती है। यदि बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण किया जा रहा है तो उनके (सर्वेक्षकों के ) प्रशिक्षण की समस्या सामने आ सकती है क्योंकि प्रशिक्षित सर्वेक्षक बहुत कम मिलते हैं।
(7) सूचनाएँ सँभालने की समस्या-
सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा काफी मात्रा में सूचनाओं या आँकड़ों का संकलन किया जाता है परन्तु संकलन करने के पश्चात् इन्हें सँभालना तथा इनकासमुचित प्रयोग करना एक कठिन कार्य हो जाता है। यदि सूचनाएँ गुणात्मक प्रकृति की हैं तो यह कार्य और भी कठिन हो जाता है।
(8) सूचनाएँ प्राप्त करने में समस्याएँ –
सामाजिक सर्वेक्षण में सूचनाएँ एकत्रित करना भी एक कठिन कार्य है। यदि अनुसन्धान उपकरण जैसे अनुसूची अधिक विस्तृत एवं लम्बी है तो सूचनादाता उत्तर देते-देते उकता जाते हैं और बिना सोचे-समझे उत्तर देने लगते हैं। साथ ही युवा अविवाहित लड़कियों तथा नवविवाहित स्त्रियों तक पहुँच पाना और उनसे सूचनाएँ एकत्रित कर पाना भी एक कठिन कार्य है।
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