भारतीय जनजातियों का कानून और सरकार
भारतीय जनजातियों का कानून और सरकार पर एक टिप्पणी लिखिए।
भारतीय जनजातियों के कानून और सरकार की भी सामान्य विशेषताएँ प्रायः वहीं हैं जो संसार की अन्य जनजातियों में देखने को मिलती है। भारत की विभिल जनजातियाँ विभिन्न परिस्थितियों में निवास करती हैं, इस कारण उनकी शासन-व्यवस्थाओं में भी कुछ भिन्नताएँ हमें देखने को मिलती हैं। इसे स्पष्ट रुप से समझने के लिए हम कुछ जनजातियों का उदाहरण यहाँ ले सकते हैं।
कमार जनाति (The Kamar Tribe)- यह मध्य प्रदेश में निवास करने वाली जनजाती है। इसका आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन अधिक विकसित नहीं है। इस जनजाति पर भारतीयदण्ड विधान (Indian Penal Code) लागू होता है; परन्तु ये लोग अपने परम्परा-स्वीकृत नियमों को अधिक मानते हैं। इस कारण सभ्य समाज की अदालत का नहीं, बल्कि अपने ही समाज की पंचायतों का प्रयोग ये अधिक करते हैं। ये कानून विभिन्न प्रकार के अपराधों से सम्बन्धित हैं और आवश्यक दण्ड की व्यवस्था करते हैं। कत्ल के अपराध को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता, और यदि कभी दिया भी गया तो कातिल सामाजिक भोज दे देता है तो उसे माफ कर दिया जाता है। इसी प्रकार दूसरी जनजातियों की फसल काट लाना या सरकारी नियन्त्रण में जो जंगल हैं उनसे कोई चीज चुरा लाना या गैरकानूनी तौर पर शराब बनाना इनके यहाँ अपराध नहीं माना जाता। व्यक्तिगत झगड़ों का फैसला मुक्केबाजी द्वारा तय किया जाता है।
जनजातीय नियमों का उल्लंघन करने वालों को सामूहिक रुप से पंचायत द्वारा दण्डित किया जाता है। परन्तु जिन अपराधों के विषय में लोगों को यह विश्वास होता है कि उनका उचित दण्ड अपराधी को अलौकिक शक्ति से प्राप्त होगा, उन अपराधों के लिए पंचायत भी दण्ड की कोई व्यवस्था नहीं करती। यह भी विश्वास किया जाता है कि अगर किसी कारणवश अपराधी को दण्ड उसके जीवनकाल में अलौकिक शक्ति द्वारा नहीं मिला; तो मरने के बाद अपराधी जहाँ जाएगा वहाँ उसकी खबर ली जाएगी अर्थात् उसे दण्ड मिलेगा। अत्यन्त निकट के सम्बन्धियों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करना बहुत बड़ा अपराध है जिसका दण्ड अलौकिक शक्ति अवश्य ही देती है। फिर भी प्रचलित विधि के अनुसार ऐसे अपराधियों को या तो पूर्णतया अलग कर दिया जाता है या गाँव से ही निकाल दिया जाता है। इसी प्रकार अन्य अनेक सामाजिक निषेधों को तोड़ने पर भी दण्ड देने का काम अलौकिक शक्ति पर ही छोड़कर लोग चुप बैठे रहते हैं।
डॉ. दुबे, जिन्होंने कमार जनजाति का विस्तृत अध्ययन किया है, ने लिखा है, इस जनजाति में अदालती कार्यवाही (Trial) उचित ढंग से की जाती है जिसमें दोनों पक्षों की बात सुनी जाती है, अपराध में प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही ली जाती है और अपराधी को अपनी सफाई पेश करने का पूरा मौका दिया जाता है। अपराध करने वाले के इरादे (intention) की छान-बीन नहीं की जाती। अगर अपराध हुआ है,चाहे अनजाने में या अचनाक या बिना इरादे के ही क्यों न हो गया हो, उसका दण्ड अवश्य दिया जाता है।
कमार जनजाति में जो कार्य अपराध या जनजातीय नियमों का उल्लंघन माने जाते हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं- व्यभिचार, जादू-टोना करना, गाय या बैल की हत्या करना, काला- जादू, घोड़े को छूना या घोड़े पर चढ़ना, नीच जात के यहाँ खाना खा लेना, नीच जात वाले से मार खा जाना, चार पति बदलकर पाँचवां पति करना, बिना विवाह के किसी के साथ भाग जाना, बहिर्विवाह सम्बधी नियमों को तोड़ना आदि।
रेंगमा नागा (The Rengma Naga)- रेंगमा नागा जनजाति एक बहिर्विवाही समूह है और बहिर्विवाही के नियमों का पालन करना सबके लिए अनिवार्य है। ब्रिटिश शासन की स्थापना से पहले से जनजाति में प्रत्यक्ष शासन का उत्तरदायित्व प्रधान (Chieftain) पर होता था। इस प्रधान की सहायता के लिए विभिन्न गोत्रों के प्रमुख व्यक्ति होते थे। फिर भी प्रधान की सत्ता सर्वोपरि होती थी। एक अर्थ में यह प्रधान मनमाने ढंग से शासन करता था। पर ऐसे भी उदाहरण हैं जब बहुत निर्दयी प्रधान को लोगों ने जबरदस्ती उसके पद से हटा दिया। सामान्य रुप से प्रधान के प्रति प्रत्येक व्यक्ति आज्ञाकारी बना रहता और उसे भय और आदर की दृष्टि से देखता था। अगर कोई प्रधान के आदेशों की अवहेलना करता था तो उसका घर जलाकर या नष्ट करके उसे दण्डित किया जाता था, परन्तु ब्रिटिश शासन-व्यवस्था की स्थापना के बाद ये सभी परिस्थितियाँ बहुत-कुछ बदल गई हैं। अब स्थानीय प्रधानों की शक्ति बहुत-कुछ छिन गई है और प्रत्येक प्रकार के झगड़े तथा जनजातीय नियमों के उल्लंघन के मामले अदालत के द्वारा तय होते हैं।
रेंगमा नागा जनजाति कि शासन-व्यवस्था बहुत-कुछ परम्परा-स्वीकृत नियमों के आधार पर ही होती है। समुदाय के बड़े-बूढ़ों को वे कोई विशेष अधिकार नहीं देते। फिर भी ये बड़े-बूढ़े आपसी झगड़ों का निपटारा करने में प्रायः सफल ही होते हैं। ये अपना निर्णय गाँव के सामान्य जनमत के अनुरुप ही देते हैं, इसीलिए इनकी बातों को लोग मान लेते हैं। सामान्य अपराधों में पारस्परिक समझौते से ही काम चल जाता है; परन्तु गम्भीर प्रकार के अपराध करने वालों को उचित दण्ड दिया जाता है। उदाहरणार्थ, कत्ल करने या दूसरे की सम्पत्ति को नष्ट करने वाले को गाँव से निकाल दिया जाता है और उसके घर में आग लगा दी जाती है; पर अपराधी को फिर गाँव में लौट आने की छूट होती है। अपराधी-इरादे पर भी ध्यान दिया जाता है। अगर अनजाने कुछ समय के बाद में हत्या हो गई है, तो अपराधी को माफ कर दिया जाता है। जंगल में आग लगा देना भी एक गम्भीर अपराध है क्योंकि इसमें वह जंगल बहुत वर्षों के लिए बेकार हो जाता है और सारे समुदाय को हानि पहुँचती है। इसीलिए ऐसे अपराध के लिए सारा गाँव अपराधी को कोसता और बबुआ देता है। चोरी करने या किसी अविवाहित लड़की से उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन-सम्बन्ध स्थापित करने पर अपराधी को जुर्माना देना पड़ता है। व्यक्ति के दोषी अथवा निर्दोष होने की परीक्षा शपथ ग्रहण करवाकर की जाती है। रंगमा नागाओं की शासन-व्यवस्था में दास-प्रथा को मान्यता नहीं दी जाती तथा जनजाति के सभी स्त्री-पुरुषों को समान मर्यादा और पद प्रदान किया जाता है।
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