टोटम एवं टोटमवाद की परिभाषा
टोटम एवं टोटमवाद को परिभाषित कीजिए तथा इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
टोटम एवं टोटमवाद की परिभाषा- जनजातीय संस्कृतियों में धर्म तथा सामाजिक संगठन के तत्त्व और विशेषताएँ अनोखे ढंग से मिली-जुली रहती हैं और वह इस अर्थ में कि ये जनजातियाँ किसी भौतिक पदार्थ, पशु या पेड़-पौधों से अपना एक रहस्यमय सम्बन्ध जोड़कर अलौकिक विश्वासों को पनपाती एवं सामाजिक जीवन को नियमित करती हैं। मानवशास्त्री इन जनजातियों को टोटमवादी (Totemic) कहते हैं और जिससे ये लोग रहस्यमय सम्बन्ध होने का दावा करते हैं उसे ‘टोटम’ (Totem) कहते हैं। ‘टोटम’ शब्द का बोध उत्तरी अमेरिका के इण्डियनों से सर्वप्रथम श्री जे. लाँग (J. Long) ने सन 1791 में किया था और श्री जे. एफ. मैकलिनन (J.E. McLennan) ने एक आदिम सामाजिक संस्था के रुप में टोटमवाद (Totemism) के महत्त्व को सबसे पहले स्वीकार किया।
श्री हॉबल (Hobel) के अनुसार, “टोटम एक पदार्थ, प्रायः एक पशु अथवा एक पौधा है जिसके प्रति एक सामाजिक समूह के सदस्य विशेष श्रद्धाभाव रखते हैं और जो यह अनुभव करते हैं कि उनके और टोटम के बीच भावनात्मक समानता का एक विशिष्ट बन्धन है।’
श्री फ्रायड (Freud) के अनुसार, “वास्तव टोटम एक पशु है (चाहे भक्ष्य हो तथा हानिरहित, भयंकर हो तथा डरावना) और यदा-कदा एक पौधा अथवा एक प्राकृतिक पदार्थ (जैसे वर्षा या जल) भी हो सकता है जिसका समग्र गोत्र से घनिष्ठ सम्बन्ध हो।”
श्री जेम्स फ्रेज़र (James Frazer) ने टोटम की परिभाषा करते हुए लिखा है “टोटम भौतिक वस्तुओं का एक वर्ग है जिसका एक आदिम जाति, यह विश्वास रखते हुए कि उसके तथा गोत्र के प्रत्येक सदस्य के बीच एक विशिष्ट आन्तरिक सम्बन्ध विद्यमान है, अन्धविश्वासपूर्ण आदर करती है।”
श्री गोल्डनवीज़र (Goldenweiser) ने टोटम के अर्थ को और भी विस्तारपूर्वक समझाते हुए लिखा है, “गोत्रों में विभाजित अनेक आदिम जनजातियों में गोत्र-नाम एक पशु, पौधा अथवा प्राकृतिक पदार्थ से लिया गया है और गोत्र के सदस्य इन पशुओं अथवा वस्तुओं के प्रति विशिष्ट मनोभाव रखते हैं। इसी को मानवशास्त्री टोटम कहते हैं।”
टोटमवाद- किसी भौतिक वस्तु, पशु, पक्षी, पेड़, पौधा या प्रकृति की अन्य कोई चीज जिसके साथ एक गोत्र के सदस्य अपना एक अलौकिक या गूढ़ सम्बन्ध मानते हैं और जिसके प्रति वे विशेष श्रद्धा, भक्ति और आदर का भाव रखते हैं, टोटम कहलाता है और इस टोटम से सम्बन्धित समस्त धारणाओं, विश्वासों और संगठन को टोटमवाद कहते हैं। अति संक्षेप में, टोटम की संस्थागत अभिव्यक्ति ही टोटमवाद (Totemism) है।
श्री मैरेट (Marett) के अनुसार, “किसी गोत्र के सम्बन्ध में टोटमवाद उस पद्धति को कहते हैं जिसके अनुसार किसी जनजाति का कोई उपभाग किसी विशेष जानवर या वनस्पति से अपना विशिष्ट सम्बन्ध समझता है, उसके नाम का प्रयोग करता है।”
श्री रैडक्लिफ-ब्राउन (Radcliffe-Brown) ने टोटमवाद की परिभाषा करते हुए लिखा है, “टोटमवाद प्रथाओं और विश्वासों का वह समूह है जिसके द्वारा समाज तथा पशुओं और पौधों एवं अन्य प्राकृतिक वस्तुओं, जो सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण हैं, के बीच सम्बन्धों की एक विशेष व्यवस्था स्थापित हो जाती है।”
श्री गोल्डनवीजर ने टोटमवाद के संस्थात्मक पक्ष पर विशेष बल देते हुए लिखा है, “गोत्रों उनके टोटम तथा उनसे सम्बन्धित विश्वासों, प्रथाओं व संस्कारों के योग से बनने वाली संस्था को टोटमवाद कहते हैं।”
श्री हर्षकोविट्स के अनुसार, “टोटमवाद उस धारणा या विश्वास को कहते हैं जिसके अनुसार किसी मानव-समुदाय का किन्हीं वनस्पति, पशु या कभी-कभी अन्य कोई प्राकृतिक वस्तु के साथ अलौकिक सम्बन्ध माना जाता है।’
श्री दुर्थीम ने तो टोटमवाद को ही समस्त धर्मों का प्राथमिक स्तर माना है। आपके अनुसार, ऐसा टोटमवाद से ही सम्भव हुआ क्योंकि नैतिक कर्तव्यों और मौलिक विश्वासों की वह समष्टि है जिसके द्वारापमाज अर्थात् एक गोत्र के सदस्यों और पशु, पौधों या अन्य प्राकृतिक वस्तुओं के बीच एक पवित्र और अलौकिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। यद्यपि श्रीदुखीम के विचारों में कुछ सत्यता, है, फिर भी आज अधिकतर मानवशास्त्री धर्म ओर टोटमवाद में एक स्पष्ट भेद मानते हैं। विभिन्न जनजातीय समाजों के अध्ययन से इस बात की पुष्टि होती है कि आदिवासी समाजों में धर्म और टोटम अपना-अपना पृथक् अस्तित्व रखते हैं। टोटमवाद में एक गोत्र के सदस्य टोटम से अपने रहस्यमय सम्बन्ध को जोड़ते हैं और उसी के आधार पर एक के टोटम-समूह सदस्य आपस में शादी-विवाह नहीं करते हैं। ये दोग ही विशेषताएँ टोटमवाद में अनिवार्य हैं, परन्तु धर्म में इन दोनों का ही अभाव होता है।
टोटम और टोटमवाद की विशेषताएँ-
टोटम और टोटमवाद की निम्न विशेषताएँ-
(1) टोटभ के साथ एक गोत्र के सदस्य अपना कई प्रकार का गूढ़, अलौकिक तथा पवित्र सम्बन्ध मानते हैं।
(2) टोटम के साथ इस अलौकिक तथा पवित्र सम्बन्ध के आधार पर ही यह विश्वास किया जाता है कि टोटम उस शक्ति का अधिकारी है जो उस समूह के सदस्यों की रक्षा करती है, उन्हें चेतावनी देती तथा उनके भविष्य के कार्यों को निर्देशित करने के लिए भविष्यवाणी करती है। उदाहरणार्थ, अगर एक गोत्र का टोटम एक पक्षी है, तो उस गोत्र के सदस्यों में यह विश्वास हो सकता है और होता है कि उस टोटम-पक्षी का एक विशेष आवाज या ढंग से चिल्लाना इस बात की चेतावनी है कि उस गोत्र-समूह पर कोई विपदा आने वाली है। इसी प्रकार अगर टोटम- पक्षी या पशु एकाएक मर जाता है तो यह विश्वास किया जाता है कि गोत्र-समूह पर आने वाली किसी आफत को टोटम ने अपने ऊपर लेकर समूह के सदस्यों की रक्षी की।
(3) टोटम के प्रति विशेष भय, श्रद्धा, भक्ति और आदर की भावना होती है। टोटम को मारना, खाना या अन्य किसी प्रकार से चोट पहुँचाना निषिद्ध होता है और उसकी मृत्यु पर शोक प्रक्ट किया जाता है। टोटम, उसकी खाल और उससे सम्बन्धित अन्य वस्तुओं को बहुत पवित्र माना जाता है। टोटम की खाल को विशेष-विशेष अवसरों पर धारण किया जाता है। टोटम के चित्र बनाकर या बनवाकर रखे जाते हैं और शरीर पर टोटम के चित्र की गुदाई भी प्रायः मभी लोग करवाते हैं। टोटम-सम्बन्धी निषेधों का उल्लंघन करने वालों की समाज द्वारा निन्दा की जाती है और दूसरी ओर इससे सम्बन्धित कुछ विशिष्ट नैतिक कर्त्तव्यों को प्रोत्साहित किया जाता है।
(4) टोटम के साथ जो गूढ़ और अलौकिक सम्बन्ध या दावा किया जाता है, उसी के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि उस गोत्र-विशेष के सभी सदस्य उसी से सम्बन्धित हैं और परस्पर भाई-भाई या भाई-बहन हैं।
(5) एक टोटम के सभी सदस्य अपने को एक सामान्य टोटम से सम्बन्धित मानते हैं, इस कारण वे कभी भी आपस में विवाह आदि नहीं करते। इस अर्थ में प्रत्येक टोटम-समूह बहिर्विवाही (exogamous) होता है और अपने टोटम-समूह से बाहर विवाह करती है।
(6) टोटम के प्रति भय, भक्ति और आदर की जो भावना होती है वह इस बात पर निर्भर नहीं होती कि कौन सी वस्तु टोटम है या वह कैसी है, क्योंकि टोटम तो प्रायः अहानिकारक पशु या पौधा होता है। यदि टोटम कोई हिंसक पशु जैसे शेर, चीता आदि या कोई विषैला जन्तु जैसे साँप आदि भी है, तो भी गोत्र के सदस्यों का यह दृढ़ विश्वास होता है कि उससे उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचेगी।
(7) यदि किसी गोत्र का टोटम कोई पशु या पक्षी है तो उसे मारना अथवा उसका माँस खाना वर्जित माना जाता है, परन्तु कुछ अपवाद भी हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, रेबिट गोत्र में, जहाँ पशु भोजन का महत्त्वपूर्ण साधन है, इस प्रकार का कोई निषेध नहीं है। इसी प्रकार खाद्य संकट के समय भी उसके माँस का उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार की छूट भी कुछ जनजातीय समाजों में पाई जाती है। परन्तु ऐसी स्थिति में टोटम-गोत्र के सदस्य कई प्रकार की प्रार्थनाएँ तथा धार्मिक व सामाजिक संस्कार करते हुए, अर्थात् एक विशेष प्रकार की विधि द्वारा टोटम-पशु को मारते हैं। श्री फ्रॉयड का कथन है कि कभी-कभी पूर्वज-भोज (ancestral feast), जो गोत्र के पूर्वज की पुण्य- स्मृति में किया जाता है, के अवसर पर भी टोटम-पशु को मारने और उसका माँस खाने की छूट होती है। गोत्र का प्रत्येक सदस्य इस भोज को पवित्र मानकर उसमें भाग लेता है।
सामान्य तौर पर, जैसा सर्वश्री मजूमदार और मदान का कथन है, टोटमवाद के आधारभूत लक्षण तीन हैं (क) एक पशु या वनस्पति के प्रति एक विशिष्ट मनोभाव, (ख) एक गोत्र- संगटन और (ग) गोत्र-बहिर्विवाह।
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