B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

जनसंचार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकार, कार्य, सीमाएँ

जनसंचार का अर्थ
जनसंचार का अर्थ

जनसंचार का अर्थ (Mass Media in Hindi)

संचार मीडिया या जनसंचार से तात्पर्य उन सभी साधनों के अध्ययन एवं विश्लेषण से है जो एक साथ बहुत बड़ी जनसंख्या के साथ संचार सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होते हैं। प्रायः इसका अर्थ सम्मिलित रूप से समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, चलचित्र से लिया जाता है जो समाचार एवं विज्ञापन दोनों के प्रसारण के लिए प्रयुक्त होते हैं।

जनसंचार की परिभाषा

लेक्सीकॉन यूनिवर्सल इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, “कोई भी संचार, जो लोगों को महत्वपूर्ण रूप से व्यापक समूह तक पहुँचता हो, जनसंचार है।”

बार्कर के अनुसार, “जनसंचार श्रोताओं के लिए अपेक्षाकृत कम खर्च में पुनर्उत्पादन तथा वितरण के विभिन्न साधनों का इस्तेमाल करके किसी संदेश को व्यापक लोगों तक, दूर-दूर तक फैले हुए श्रोताओं तक रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र या किसी चैनल द्वारा पहुँचाया जाता है।”

कार्नर के अनुसार, “जनसंचार संदेश के बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा वृहद स्तर पर विषमवर्गीय जनसमूहों में द्रुतगामी वितरण करने की प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया में जिन उपकरणों अथवा तकनीक का उपयोग किया जाता है उन्हें जनसंचार माध्यम कहते हैं।”

कुप्पूस्वामी के अनुसार, “जनसंचार तकनीकी आधार पर विशाल अथवा व्यापक रूप से लोगों तक सूचना के संग्रह एवं प्रेषण पर आधारित प्रक्रिया है। आधुनिक समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण, विश्लेषण, ज्ञान एवं मूल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है।”

जोसेफ डिविटो के अनुसार, “जनसंचार बहुत से व्यक्तियों में एक मशीन के माध्यम से सूचनाओं, विचारों और दृष्टिकोणों को रूपांतरित करने की प्रक्रिया है।”

जॉर्ज ए. मिलर के अनुसार, ‘जनसंचार का अर्थ सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना है।”

डी.एस. मेहता के अनुसार, “जनसंचार का अर्थ जनसंचार माध्यमों जैसे- रेडियो टेलीविजन, प्रेस और चलचित्र द्वारा सूचना, विचार, और मनोरंजन का प्रचार-प्रसार करना है।

जनसंचार की विशेषताएँ (Characteristics of Mass Media)

जनसंचार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) इसमें फीडबैक तुरंत प्राप्त नहीं होता।

(2) इसके संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।

(3) संचारक और प्राप्तकर्त्ता के बीच कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता।

(4) जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की आवश्यकता होती है।

(5) इसमें ढेर सारे द्वारपाल काम करते हैं।

(6) विशाल भू-भाग में रहने वाले प्रापकों (Recipient ) से एक साथ सम्पर्क स्थापित होता है।

(7) समस्त प्रापकों के लिए संदेश समान रूप से खुला होता है। 8) संचार माध्यम की मदद से संदेश का सम्प्रेषण किया जाता है।

(9) सम्प्रेषण के लिए औपचारिक व व्यवस्थित संगठन होता है।

(10) संदेश सम्प्रेषण के लिए सार्वजनिक संचार माध्यम का उपयोग किया जाता है।

(11) प्रापकों के विजातीय होने के बावजूद एक ही समय में सम्पर्क स्थापित करना सम्भव होता है।

12) संदेश का यांत्रिक रूप से बहुल संख्या में प्रस्तुतीकरण या सम्प्रेषण होता है।

(13) फीडबैक संचारक के पास विलम्ब से या कई बार नहीं भी पहुँचता है।

जनसंचार के प्रमुख कार्य (Main Functions of Mass Media)

जनसंचार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) सूचना देना,

(2) शिक्षित करना,

(3) मनोरंजन करना,

(4) निगरानी करना,

(5) एजेंडा तय करना एवं

(6) विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराना।

जनसंचार माध्यमों के प्रकार (Types of Mass Media Mediums)

वेबसाइट, ई-मेल, चैट रूम, वेब एडवरटाइजिंग, डिजिटल कैमरे, इण्टरनेट, ऑनलाइन प्रोग्राम इत्यादि मीडिया के नवीन रूप हैं। जब मीडिया केवल किसी एक व्यक्ति को संदेश पहुँचाता है तब इसे व्यक्तिगत सम्प्रेषण (Personal Communication) कहते हैं। जैसे- पत्र, टेलीफोन एवं टेलीग्राम आदि परन्तु जब मीडिया के द्वारा एक बड़े जनमानस को सम्प्रेषण किया जाता है तब इसे जनसंचार (Mass Communication) कहते हैं। जैसे- अखबार, किताबें, रेडियो, टी.वी. इण्टरनेट आदि माध्यम से सम्प्रेषण करना। भारतीय मीडिया का आविर्भाव 17 वीं शताब्दी के अंत में हुआ। भारत में प्रिन्ट मीडिया सन् 1780 में शुरू हुआ। रेडियो प्रसारण का प्रारम्भ सन् 1927 में तथा चलचित्र का विकास जुलाई 1895 को हुआ था। भारतीय मीडिया काफी हद तक स्वतंत्र है।

जनसंचार माध्यम निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

(1) मुद्रित (प्रिन्ट) माध्यम तथा

(2) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम।

(1) मुद्रित (प्रिन्ट) माध्यम (Print Medium)

प्रिंट मीडिया (मुद्रित माध्यम) पर्यावरण जनसंचार का एक सशक्त और व्यापक माध्यम है। भारत में 19 प्रमुख भाषाओं सहित 100 से अधिक भाषाओं और बोलियों में समाचार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। यह माध्यम लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप सर्वाधिक जीवन्त माध्यम है। पर्यावरण संरक्षण में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है बशर्ते कि मीडियाकर्मी उद्देश्यपरक दृष्टिकोण अपनाएँ।

इस माध्यम के द्वारा पर्यावरणीय सूचना प्रसारण, पर्यावरण संरक्षण हेतु अनुकूल वातावरण का निर्माण, पर्यावरणीय समाचारों, कार्यक्रमों, लेखों, फीचरों, साक्षात्कारों का प्रकाशन जनमत निर्माण करने में सहायक सिद्ध होती हैं। पोस्टरों और चित्रों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, हमारा पर्यावरण, पर्यावरण बचाओ, पर्यावरण के प्रति प्रेम पेड लगाओ, पर्यावरण और प्रदूषण आदि से सम्बन्धित संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली संदेशों को जनसामान्य के मध्य सम्प्रेषित किया जा सकता है।

प्रिन्ट मीडिया के अन्तर्गत अखबार, पत्रिकाएँ, पम्फलेट्स (Pamphlets), जर्नल्स (Journals), किताबें, पीरियाडिकल्स (Periodicals) आदि आते हैं। प्रिन्ट संचार साधन सूचनाओं के आदान प्रदान का महत्वपूर्ण साधन माना जाता है इस साधनों की भूमिका प्राचीन काल से वर्तमान समय तक महत्वपूर्ण मानी जाती है। इन साधनों के द्वारा व्यक्ति के अन्दर पर्यावरण जागरूकता का संचार होता है जिससे वह अपने पर्यावरण अधिकारों को समझ सके व उनका उपयोग कर सके। प्रिन्ट माध्यम की भूमिका निम्न साधनों द्वारा सम्पन्न होती है-

(1) समाचार पत्र- समाचार पत्र बालक के स्व निर्माण में बहुत ही महत्व रखता है। वस्तुतः समाचार पत्रों में विभिन्न विषयों पर भी सामग्री लेख कहानियां, सुविचार, कविताएं और मनोरंजनात्मक प्रकरण भी प्रकाशित किए जाते हैं। इस प्रकार बालक के अन्दर जीवनमूल्यों का प्रवेश होता है। जिससे सकारात्मक स्व निर्माण को आधार मिलता है। इससे उसका ज्ञान कोष बढ़ता है। सामान्य ज्ञान का विस्तार होता है। उत्तरदायित्व नागरिकता का विकास होता है। स्वाध्याय में रुचि विकसित होती है। अतः बालकों को नित्य समाचार पढ़ने की आदत विकसित करनी चाहिए तथा प्रत्येक विद्यालय में समाचार पत्र मँगवाने चाहिए।

(2) पत्र-पत्रिकाएँ – पत्र-पत्रिकाएँ बालक के स्व के लिए महत्वपूर्ण है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ बालकों को न केवल नवीन ज्ञान प्रदान करती है अपितु उन्हें रचनात्मक कार्य करने के लिए भी प्रेरित करती है। इससे उनका विषय ज्ञान बढ़ता है। अतः प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा नित्य पत्र-पत्रिकाएँ आनी चाहिए। शोध पत्रिकाएँ हमें नवीनतम ज्ञान प्रदान करती हैं।

(3) साहित्यिक पुस्तकें- साहित्यिक पुस्तकें बालक की स्वधारणा को सकारात्मक बनाती है।

ये पुस्तके संदर्भित पुस्तकों का काम करती हैं। इससे विद्यार्थियों के विचार मौलिक एवं व्यापक बनते हैं, उनमें स्वाध्याय की आदत विकसित की जा सकती है। वह अपनी लेखन क्षमता विकसित कर सकते हैं। साहित्यिक पुस्तकें विद्यालय में उपलब्ध कर लेनी चाहिए। पढ़ने हेतु पुस्तकालय कालांश होना चाहिए। अतः कहा जा सकता है कि साहित्यिक पुस्तिकाएँ आधुनिक युग में शिक्षा का मुख्य आधार है।

मुद्रित माध्यम की विशेषताएँ (Characteristics of Print Medium)

मुद्रित माध्यम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है, इन्हें सुविधा अनुसार किसी भी प्रकार से पढ़ा जा सकता है।

(2) यह माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है।

(3) यह चिंतन, विचार-विश्लेषण का माध्यम है।

मुद्रित माध्यम की सीमाएँ (Limitations of Print Medium)

मुद्रित माध्यम की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं होते।

(2) ये तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते।

(3) इसमें स्पेस तथा शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ता है।

(4) इसमें एक बार समाचार छप जाने के बाद अशुद्धि-सुधार नहीं किया जा सकता।

(2) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Electronic Medium)

वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम एक महत्वपूर्ण साधन है इन साधनों द्वारा संचार क्रान्ति उत्पन्न कर दी गयी है आज दुनिया की दूरी संकुचित हो गयी है अमेरिका में होने वाली सूचना कुछ मिनटों में ही सम्पूर्ण भारत तथा दुनिया में पहुँच सकती है। आधुनिक संचार युग में जन माध्यमों ने इलेक्ट्रॉनिक तकनीक को अपनाकर अपना प्रभाव क्षेत्र विस्तृत किया है। रेडियो इनमें पहला माध्यम है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का प्रयोग हुआ श्रव्य माध्यम है। ध्वनि तरंगों के माध्यम से दूर दराज के क्षेत्रों में सूचना समाचारों का प्रसारण रेडियो के माध्यम से ही सम्भव हो पाया है। इस माध्यम से समाज में एक नई सूचना क्रान्ति आई है। मुद्रित माध्यमों की पहुँच सीमित क्षेत्र तक ही थी। वह केवल शिक्षित लोगों तक ही सीमित था किन्तु इलेक्ट्रॉनिक माध्यम साक्षर तथा निरक्षर दोनों को लाभान्वित कर रहा है।

मैकब्राइट के अनुसार, “विकासशील देशों में रेडियो ही वास्तविक जनमाध्यम का रूप है एवं जन संख्या के एक बड़े अनुपात पर इसकी पकड़ है। दूसरा कोई ऐसा बड़ा माध्यम नहीं है जो सूचना, शिक्षा, संस्कृति और मनोरंजन के रूप में उस कुशलता के साथ पहुँचने की क्षमता रखता हो।”

इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की भूमिका निम्न साधनों द्वारा सम्पन्न होती है-

(1) कम्प्यूटर कम्प्यूटर शिक्षक स्थानापन्न का कार्य करता है। इस रूप में छात्र सीधे कम्प्यूटर से व्यवहार करते हैं। इससे छात्र की विचार शक्ति का निर्माण होता है। उसे सही एवं गलत उत्तर की पहचान होती है जिससे वह उचित अनुचित में भेद कर सकता है तथा निर्णय शक्ति की क्षमता का विकास होता है।

(2) दूरदर्शन- दूरदर्शन जनसंचार साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध सभी साधनों में सबसे सशक्त माध्यम है क्योंकि इसमें सम्प्रेषण के साथ-साथ दृश्य साधन भी उपलब्ध है। दूरदर्शन में समस्त संसार की जानकारी प्राप्त होती है इससे बालक के मस्तिष्क का विकास होता है तथा सोचने की शक्ति व कुछ करने की शक्ति को बढ़ावा मिलता. है। उनमें सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है।

(3) रेडियो रेडियो सबसे अधिक प्रभावशाली संचार का माध्यम है। रेडियो पर बालकों के विभिन्न विषयों से सम्बन्धित जानकरियाँ प्राप्त होती हैं। इससे सभी स्तर के व्यक्ति लाभान्वित हो सकते हैं। रेडियो द्वारा विद्यार्थियों को तथ्यात्मक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। बालक की रचनात्मक व सृजनात्मक क्षमता का विकास किया जा सकता है।

(4) मल्टीमीडिया – मल्टीमीडिया एक प्रकार से एकत्रित रीट्राइव्ड एवं मेन्यूपुलेट की गयी सूचना है जिसमें प्लेन टेक्स्ट, पिक्चर, श्रव्य दृश्य और एनीमेशन टाइप की सूचनाएँ रहती हैं। इसके द्वारा शिक्षण सामग्री को चित्र साउण्ड व एनीमेशन आदि का प्रयोग कर रोचक बनाया जा सकता है। इस प्रकार के शिक्षण में बालक की कल्पना शक्ति का विकास होता है।

(5) इंटरनेट इंटरनेट कई नेटवर्कों का एक विशाल नेटवर्क है जो हजारों कम्प्यूटर से जुड़ा होता है। इंटरनेट ने आज मनुष्य के जीवन में क्रांति ला दी हैं, बैंकिंग, रोजगार, टूरिज्म, एजुकेशन आदि में उसने पैर जमा रखे हैं। इससे बालक को जो भी पाठ्य सामग्री की आवश्यकता होती है वह घर बैठे उपलब्ध हो जाती है। इससे बालक की अध्ययन क्षमता का विकास होता है। बालक में रुचि का विकास होता है । सुविचार व प्रेरक प्रसंगों द्वारा बालकों में नैतिक मूल्यों का विकास करना संभव है।

(6) मोबाइल – मोबाइल द्वारा बालक कक्षा के अतिरिक्त कहीं भी बैठकर सीख सकता है। इसमें उसे स्वयं करके सीखने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इसके द्वारा अध्यापक कक्षा अन्तःक्रिया को बढ़ावा दे सकता है इससे बालक में आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे बालक में सीखने की प्रवृत्ति का विकास किया जा सकता है। बालक स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास कर सकता है। इससे उनमें तकनीकी कौशल की भी वृद्धि होती है।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment