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शिक्षा प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा, सिद्धान्त, शैक्षिक-संगठन तथा शैक्षिक प्रशासन में अन्तर

शिक्षा प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा
शिक्षा प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा

शिक्षा प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा, सिद्धान्त, शैक्षिक-संगठन तथा शैक्षिक प्रशासन में अन्तर

शिक्षा प्रशासन का अर्थ

सामान्यतः प्रशासन का अर्थ व्यवस्था (Management) से लगाया जाता है। व्यवस्था वह साधन है जिनके द्वारा किसी संगठन या संस्था का सुचारु रूप से संचालन किया जाता है। चाहे वह संगठन शासकीय ‘सामुदायिक’ शैक्षिक या औद्योगिक हो। इस दृष्टिकोण से प्रशासन का सम्बन्ध किसी भी संस्था या संगठन के अन्तर्गत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले व्यक्तियों के समूह तथा उनकी क्रियाओं में समन्वय से रहता है। शिक्षा प्रशासन की प्रक्रिया द्वारा कार्यकर्ताओं के प्रयासों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है तथा उपयुक्त सामग्री को इस प्रकार प्रयोग में लाया जाता है जिससे मानवीय गुणों का विकास प्रभावशाली ढंग से हो।

यह प्रक्रिया केवल बालकों तथा नवयुवकों के विकास से ही सम्बन्धित नहीं है वरन् इसके अन्तर्गत प्रौढ़ों एवं कार्यकर्ताओं के विकास को भी महत्व दिया जाता है। शिक्षा संस्थाओं की स्थापना एवं उनके प्रशासन के अन्तर्गत सभी सम्बन्धित व्यक्तियों के विचारों एवं कार्यों में समन्वय स्थापित किया जाता है जिससे विद्यालय अपने निर्धारित उद्देश्यों की अधिकतम पूर्ति करने में समर्थ हो सके। शिक्षा-प्रशासन में शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया से सम्बन्धित लक्ष्यों एवं नीतियों के विकास को प्रोत्साहित करने वाली सुविधाएँ निहित हैं। साथ ही शिक्षा प्रशासन शिक्षण तथा सीखने के उपयुक्त कार्यक्रमों के विकास को प्रोत्साहन भौतिक एवं मानवीय तत्वों (कर्मचारी वर्ग) की व्यवस्था करता है।

अत: शिक्षा प्रशासन का सम्बन्ध मानवीय तत्वों से ही नहीं वरन् विद्यालय के भौतिक तत्वों जैसे-विद्यालय भवन, शैक्षिक सामग्री, साज-सज्जा, फर्नीचर आदि से रहता है। चूंकि सभी उपलब्ध साधनों को उपयोग में लाना होता है, इसलिए शिक्षा प्रक्रिया के प्रभावशाली संचालन के लिए उपयुक्त सामग्री की सुव्यवस्था भी लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होती है। सारांश यह है कि शिक्षा प्रक्रिया की समुचित व्यवस्था करना ही शिक्षा प्रशासन है।

शिक्षा प्रशासन की परिभाषा

शिक्षा प्रशासन की परिभाषा विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों द्वारा इस प्रकार है-

बलफोर ग्राहम के शब्दों में- “शिक्षा-प्रशासन उपयुक्त बालकों को उपयुक्त शिक्षकों द्वारा समुचित शिक्षा प्राप्त करने के योग्य बनाना है। जिससे वे उपलब्ध आर्थिक साधनों का उपयोग करके अपने प्रशिक्षण से सर्वोत्तम को प्राप्त करने में समर्थ हो सके।”

श्रीमती एस. पी. सुखिया के अनुसार– “शिक्षा-प्रशासन की प्रक्रिया कार्यकर्ता के प्रयासों में समन्वय किया जाता है तथा उपयुक्त सामग्री को इस प्रकार प्रयोग में लाया जाता है। जिससे मानवीय गुणों का विकास प्रभावशाली ढंग से हो सके। यह केवल बालकों तथा नवयुवकों के  विकास से ही सम्बन्धित नहीं वरन् इसके अर्न्तगत प्रौढ़ों एवं विद्यालय के कार्यकर्ताओं का व्यक्तियों के विचारों एवं कार्यों में समन्वय स्थापित किया जाता है।”

डॉ. श्री धन नाथ मुकर्जी के अनुसार- “शिक्षा-प्रशासन का मुख्य ध्येय मानवीय सम्बन्धों की स्थापना करना है, जिससे कि भिन्न-भिन्न व्यक्ति मिलकर समुचित रूप से कार्यों को कर सकें।”

शिक्षा प्रशासन के सिद्धान्त

वस्तुतः शिक्षा प्रशासन एक विकासशील प्रक्रिया है जिसका देश की संस्कृति, इतिहास, समाज, राजनैतिक एवं औद्योगिक संगठनों से घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। शिक्षा प्रशासन के द्वारा देश को इन सभी क्षेत्रों की आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाती हैं। शिक्षा के कुशल संचालन के ऊपर व्यक्ति एवं राज्य दोनों का भविष्य निर्भर है, अत: यह आवश्यक है कि शिक्षा की व्यवस्था का दायित्व जिन लोगों को सौंपा जाए, वे मेधावी अनुभवी एवं शिक्षा साहित्य का ज्ञान रखने वाले हों तथा अधोलिखित तथ्यों से सम्बन्धित सिद्धान्तों से भी परिचित हों जो शिक्षा प्रशासन के आधार हैं। यथा-

1. व्यक्ति की महत्ता-

शिक्षा का प्रमुख कार्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करना है। इस दृष्टिकोण से शिक्षा प्रशासन फाइल केन्द्रित न होकर व्यक्तित्व केन्द्रित होना आवश्यक है। अतः शिक्षा प्रशासन द्वारा व्यक्ति के विभिन्न पक्षों, शारीरिक, आध्यात्मिक, संवेगात्मक, सौन्दर्यात्मक आदि के अधिकाधिक विकास के लिए प्रयास किया जाए तो उचित होगा।

2. प्रचलित दार्शनिक राजनीतिक विचारधारा-

दर्शन शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों को निर्धारित करके विद्यालय का मार्ग-प्रदर्शन करता है जिससे वह उपयुक्त वातावरण का निर्माण करके शिक्षा को निर्दिष्ट दिशा में अग्रसर करने में समर्थ हो सके। उदाहरणार्थ- यदि आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य, आत्मानुभूति है तो विद्यालय को ऐसे उपयुक्त सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण करना होता है, जिससे बालकों को उस उद्देश्य की प्राप्ति हो सके। वस्तुतः दर्शन जीवन का दृष्टिकोण होता है। अत: प्रचलित जीवन दर्शन को ध्यान में रखकर प्रशासन करना आवश्यक हो जाता है।

3. राष्ट्र के लक्ष्यों का स्थान-

शिक्षा प्रशासन में राष्ट्र एवं उसकी आकांक्षाओं का भी ध्यान में रखना आवश्यक है, क्योकि राष्ट्र की उन्नति एवं समृद्धि विद्यालयों के ऊपर निर्भर है। उदाहरणार्थ-आज हमारे राष्ट्र ने सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता की स्थापना, औद्योगीकरण, उत्पादन में वृद्धि आदि लक्ष्य निर्धारित किए है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति तभी हो सकती है जब इन्हीं दृष्टिकोणों से शिक्षा प्रक्रिया की समुचित व्यवस्था की जाएगी। शिक्षा आयोग‘ ने इस सम्बन्ध में लिखा है- ‘शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य सुधार यह है कि इसको परिवर्तित करके लोगों के जीवन, आश्यकताओं और आकांक्षाओं से इसका सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया जाए और इस प्रकार इसको उस सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का शक्तिशाली साधन बनाया जाए, जो राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।’ अत: शिक्षा को राष्ट्रीय जीवन एवं आकांक्षाओं के अनुकूल ढालना आवश्यक है। यह उद्देश्य कुशल-शिक्षा प्रशासन के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है|

4.शिक्षा प्रशासन की प्रक्रिया-

विद्वानों का मत है कि शिक्षा प्रशासन की प्रक्रिया सहयोगी तथा लोकतंत्रीय ढंग से हो, जिससे कार्यकर्ताओं को स्वतन्त्रता प्रदान की जा सके। सामान्यत: शिक्षा-प्रशासन की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान माने जाते हैं-

1. संगठन के लक्ष्यों की व्याख्या करना,

2. योजना,

3. संगठन,

4. कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति,

5. नैतिक स्तर पर निर्माण,

6. संचालन,

7. सामंजस्य,

8. रिपोर्ट तैयार करना,

9. बजट बनाना,

10. मूल्यांकन।

शैक्षिक-संगठन तथा शैक्षिक प्रशासन में अन्तर

बहुत से शिक्षाशास्त्रियों का मानना है कि संगठन और प्रशासन दोनों एक ही चीज है लेकिन यह धारणा गलत है। दोनों में कुछ मूलभूत अन्तर अवश्य दिखायी पड़ता है। संगठन एक विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु साधन रूपी ढाँचा तैयार करता है और विद्यालय के प्रशासकीय पक्ष में उसका संचालन होता है। संगठन अभीष्ठ उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सम्भावना को ही व्यक्त करता है। परन्तु प्रशासन उनकी प्राप्ति हेतु प्रयास करता है, जैसे जिस समय आवश्यकता महसूस हुई उसी के अनुसार उसी समय संगठन से परिवर्तित करके उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रशासनिक कार्य आरम्भ किया जाता है।

संक्षेप में संगठन और प्रशासन में निम्नलिखित अन्तर पाया जाता है-

(1) शैक्षिक संगठन एक ऐसा संगठन है जो किसी व्यक्ति समूह को किसी कार्य को सम्पन्न करने में सहायता प्रदान करता है जबकि प्रशासन एक ऐसी सेवा करने वाली गतिविधि है जिसके द्वारा शैक्षिक प्रक्रिया के लक्ष्यों को प्रभावशाली ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।

(2) शैक्षिक संगठन शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा का ऐसा ढाँचा तैयार करता है जबकि प्रशासन द्वारा शैक्षिक क्षेत्र में संगठन द्वारा निर्मित ढाँचे को क्रियान्वित किया जाता है।

(3) शैक्षिक संगठन का क्षेत्र संकुचित है जबकि शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र व्यापक है।

(4) शैक्षिक संगठन का सम्बन्ध उद्देश्य की एकता, कार्य एवं पदों का निर्णय तथा अधिकार व्यवस्था से है जबकि शैक्षिक प्रशासन का सम्बन्ध शिक्षा की योजनाएँ तैयार करना, पर्यवेक्षण करना, एवं शिक्षा की व्यवस्था करने आदि से है।

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