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निबन्धात्मक परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा में तुलना

निबन्धात्मक परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा में तुलना
निबन्धात्मक परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा में तुलना

निबन्धात्मक परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा में तुलना (Compare with Essay Type and Objective Type Examination)

निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का अपने-अपने गुण तथा अवगुण हैं अतएव, इनके पारस्परिक महत्त्व को स्पष्ट करने के लिए इनका तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है-

1. निबन्धात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा का क्षेत्र अधिक व्यापक है । निबन्धात्मकं परीक्षा में प्रश्नों की संख्या कम होने के कारण सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को समेटना संभव नहीं हो पाता है। दूसरी ओर, वस्तुनिष्ठ परीक्षा में प्रश्नों की संख्या पर्याप्त होने के कारण सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को शामिल करना बहुत आसान हो जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि परम्परागत परीक्षा से नवीन परीक्षा का क्षेत्र कहीं अधिक व्यापक है।

2. निबन्धात्मक परीक्षा में असंगत एवं अनावश्यक तत्त्वों के शामिल हो जाने की संभावना अधिक होती है। कुछ चतुर विद्यार्थी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं जानने पर भी अनावश्यक एवं असंगत तत्त्वों को अपनी आकर्षक भाषा में इस प्रकार लपेट कर लिख देते हैं कि परीक्षक उससे प्रभावित होकर जाने या अनजाने कुछ अंक दे देते हैं। दूसरी ओर, वस्तुनिष्ठ परीक्षा में इस बात की तनिक भी संभावना नहीं रहती है।

3. निबन्धात्मक परीक्षा का निर्माण वस्तुनिष्ठ परीक्षा की अपेक्षा बहुत ही सरल होता है इसमें प्रश्नों का निर्माण शिक्षक या अधिकारी आसानी से कर लेते हैं। लेकिन, वस्तुनिष्ठ परीक्षा के प्रश्नों को निर्मित करना बड़ा कठिन है । इनका निर्माण सभी शिक्षक या अधिकारी नहीं कर सकते इनका निर्माण केवल विशेषज्ञ द्वारा संभव हो सकता है।

4. निबन्धात्मक परीक्षा में वस्तुनिष्ठ परीक्षा की अपेक्षा रटने पर अधिक जोर दिया जाता है। इससे विद्यार्थियों को तोते की तरह रट कर याद करने का प्रोत्साहन मिलता है। वे अपने पाठ या उसके अंशों को रट कर परीक्षा में ठीक उसी तरह लिख कर अच्छा अंक प्राप्त कर लेते हैं। किन्तु इससे उनकी वास्तविक योग्यता का मापन नहीं हो पाता है । इसके विपरीत वस्तुनिष्ठ परीक्षा में रटने पर अधिक जोर नहीं दिया गया है। प्रश्न इस प्रकार के होते हैं। कि केवल रहटकर अच्छा अंक प्राप्त करना कठिन है। फिर भी, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इस परीक्षा में रट कर याद करने की संभावना नहीं है। यहाँ भी विद्यार्थी रट कर कुछ अंक प्राप्त कर सकता है। अतः हम केवल इतना कह सकते हैं कि निबन्धात्मक परीक्षा की तुलना में वस्तुनिष्ठ परीक्षा में रटने का प्रोत्साहन कम मिलता है।

5. निबन्धात्मक परीक्षा में लेखन-शक्ति का अच्छा अभ्यास हो जाता है। परीक्षा में सभी प्रश्नों के उत्तर लिख सकें, इसके लिए विद्यार्थी पहले से ही लिखने का अभ्यास करते रहते हैं। इस प्रकार उनकी लेखन शक्ति बढ़ती रहती है। इसके विपरीत वस्तुनिष्ठ परीक्षा से लिखने का अभ्यास नहीं हो पाता है।

6. निबन्धात्मक परीक्षा से विद्यार्थियों की मनोवृत्ति, अभिरुचि एवं व्यक्तित्व संगठन का मापन भी एक बड़ी सीमा तक हो जाता है। विशेष रूप से विवेचनात्मक प्रश्नों के उत्तर लिखते समय विद्यार्थियों को मनोवृत्ति, जीवन-शैली तथा व्यक्तित्व के अन्य शीलगुणों की अभिव्यक्ति हो जाती है। लेकिन, वस्तुनिष्ठ परीक्षा से विद्यार्थियों की मनोवृत्ति, अभिरुचि या व्यक्तित्व के शीलगुणों का ज्ञान भी नहीं हो पाता है।

7. निबन्धात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा अधिक तथ्यपूर्ण है। वस्तुनिष्ठ परीक्षा में केवल इस बात पर जोर दिया जाता है कि अमुक विद्यार्थी ने कितने तत्त्वों को याद किया है। उसकी विवेचनात्मक एवं रचनात्मक क्षमताओं की इस प्रकार उपेक्षा होती है।

8. निबन्धात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा के मूल्यांकन का आधार अधिक वैज्ञानिक है निबन्धात्मक परीक्षा में प्रश्नोत्तरों के मूल्यांकन का कोई समान मापदण्ड नहीं हैं। प्रत्येक परीक्षक का अपना व्यक्तिगत मापदण्ड होता है। फलतः एक ही उत्तर पर कोई कम अंक देता है और कोई अधिक अंक देता है। दूसरी ओर, वस्तुनिष्ठ परीक्षा में मूल्यांकन का आधार सबके लिए समान होता है। अतः किसी प्रश्नोत्तर का मूल्यांकन किसी भी परिस्थिति में एक ही तरह का होता है।

9. निबन्धात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा में पूर्वधारणा तथा पक्षपात का हाथ बहुत कम होता है निबन्धात्मक परीक्षा में इस बात की संभावना है कि परीक्षक प्रश्नोत्तर की भाषा-शैली, लिखावट, तथ्यों के संगठन से प्रभावित होकर कम या अधिक अंक दे लेकिन, वस्तुनिष्ठ परीक्षा में इस बात की तनिक भी संभावना नहीं है। कारण यह है कि इसमें न तो तथ्यों का संगठन करना पड़ता है और न अधिक लिखने की आवश्यकता ही होती हैं।

10. निबन्धात्मक परीक्षा एक प्रत्यावह्न परीक्षण है जबकि वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रधानतः एक पहचान परीक्षण है निबन्धात्मक परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर मौलिक विषय की अनुपस्थिति में लिखे जाते हैं लेकिन वस्तुनिष्ठ परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर दिए रहते हैं जिनमें से उत्तरों को पहचान कर प्रश्नों का समाधान करना पड़ता है। हाँ, रिक्त-पूर्ति परीक्षण में कभी-कभी ऐसे ही प्रश्न रहते हैं, जिनका समाधान प्रत्यावाह्न के आधार पर ही करना पड़ता है। चाहे जो भी हो, यह सत्य है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रधानतः पहचान परीक्षण है।

इसी आधार पर कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि निबन्धात्मक परीक्षा की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा सरल है । कारण यह है कि पहली परीक्षा में मौलिक विषय अनुपस्थित रहता है और दूसरी परीक्षा में वह उपस्थित रहता है। इस संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि पहचाना-परीक्षण प्रत्यावाह्न परीक्षण से अधिक अविश्वसनीय होता है। अतः वस्तुनिष्ठ परीक्षा निबन्धात्मक परीक्षा से कहीं अधिक अविश्वसनीय है। लेकिन, प्रयोगात्मक अध्ययनों से इस मत का समर्थन नहीं होता है। अध्ययनों में देखा जाता है कि एक ही योग्यता के मापन में जो बालक पहचान-परीक्षण में अधिक अंक प्राप्त करता है, प्रत्यावाह्न परीक्षण में भी अधिक अंक प्राप्त करता है। इसी तरह, प्रत्यावाह्न परीक्षण में कम अंक पाने वाला बालक पहचान-परीक्षण में भी कम अंक पाता है। 1934 ई० में टायलर ने, 1935 ई० में थार्प ने 1947 में तथा पलम्ली ने 1966 में अपने अध्ययनों में पहचान-परीक्षण तथा प्रत्यावाह्न परीक्षण के आधार पर प्राप्त अंकों के बीच गहरा सहसंबंध पाया। अतएव, पहचान-परीक्षण (वस्तुनिष्ठ परीक्षा) भी प्रत्यावाह्न परीक्षा (निबन्धात्मक परीक्षा ) की तरह काफी विश्वसनीय है।

उपर्युक्त विवेचनों से निबन्धात्मक परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा एक-दूसरे के विरोधी लगते हैं। लेकिन, गंभीरता से विचार करने पर ज्ञात होता है कि वे एक दूसरे के पूरक हैं विद्यार्थियों की योग्यताओं या ज्ञानोपार्जन का समुचित एवं समग्र मूल्यांकन किसी एक परीक्षण से संभव नहीं है इन दोनों परीक्षणों के आधार पर प्राप्त विद्यार्थियों के प्राप्तांकों के बीच उच्च सहसंबंध नहीं देखा जाता है। 1951 में मैक केची ने अपने प्रयोग में पाया कि जो विद्यार्थी वस्तुनिष्ठ परीक्षा में प्रथम श्रेणी में घोषित किए गए उन्हें निबन्धात्मक परीक्षा से औसत या औसत से भी निम्न घोषित किया गया। टेरी (1969) के अध्ययन से भी इस मत, का समर्थन होता है अतः विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धियों की समुचित परीक्षा के लिए दोनों परीक्षा-प्रणालियों का सम्मिलित उपयोग आवश्यक है।

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