आकलन के उपकरण (Tools of Assessment)
आकलन के उपकरण निम्नलिखित है-
1. अवलोकन (Observation)
अवलोकन व्यक्ति के व्यवहार के मापन की अत्यन्त प्राचीन विधि हैं। व्यक्ति अपने आस-पास घटित होने वाली विभिन्न क्रियाओं तथा घटनाओं का अवलोकन करते रहते हैं। मापन के एक सरल उदाहरण के रूप में अवलोकन का सम्बन्ध किसी व्यक्ति अथवा छात्र-छात्रा के बाह्य व्यवहार को देखकर उसके व्यवहार का वर्णन करने से है। अवलोकन को मापन की एक वस्तुनिष्ठ विधि के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, फिर भी अनेक प्रकार की परिस्थितियों में तथा अनके प्रकार के व्यवहार के मापन में इस विधि का काफी प्रचुरता से प्रयोग किया जाता है। छोटे बच्चों के व्यवहार का मापन करने के लिए यह विधि अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है। छोटे बच्चे मौखिक तथा लिखित परीक्षाओं के प्रति जागरूक नहीं होते हैं जिसकी वह से मौखिक तथा लिखित परीक्षों के द्वारा उनका मापन करना कठिन हो जाता है। व्यक्तित्व के गुणों का मापन करने के लिए भी अवलोकन का प्रयोग किया जा सकता है। छोटे बच्चों, अनपढ़ व्यक्तियों, मानसिक रोगियों, विकलांगों तथा अन्य भाषा-भाषी लोगों के लिए व्यवहार का मापन करने के लिए अवलोकन एक मात्र उपयोगी विधि है। अवलोकन की सहायता से संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोचालक तीनों ही प्रकार के व्यवहारों का मापन किया जा सकता है।
अवलोकन करने वाले व्यक्ति की दृष्टि से अवलोकन दो प्रकार का हो सकता है अवलोकन के ये दो प्रकार स्व-अवलोकन (Auto-Observation or Self-Observation) तथा बाह्य अवलोकन (External Observation) हैं। स्वअवलोकन में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार का अवलोकन करता है जबकि बाह्य अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता अन्य व्यक्तियों के व्यवहार का अवलोकन करता है। निःसन्देह स्वयं के व्यवहार का ठीक-ठीक अवलोकन करना एक कठिन कार्य होता है जबकि अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को देखना तथा उसका लेखा-जोखा रखना सरल होता है। वर्तमान समय में प्रायः अवलोकन से अभिप्राय अवलोकनकर्त्ता के द्वारा दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार के अवलोकन को माना जाता है।
अवलोकन नियोजित प्रकार का भी हो सकता है तथा अनियोजित प्रकार भी हो सकता है। नियोजित अवलोकन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके विपरीत अनियोजित अवलोकन किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है। अवलोकन को प्रत्यक्ष अवलोकन तथा अप्रत्यक्ष अवलोकन के रूप में बाँटा जा सकता है। प्रत्यक्ष अवलोकन से अभिप्राय किसी व्यवहार को उसी रूप में देखना है जैसा कि वह व्यवहार हो रहा है। इसमें मापनकर्ता व्यवहार का अवलोकन स्वयं करता है। परोक्ष अवलोकन में किसी व्यक्ति के व्यवहार के सम्बन्ध में अन्य व्यक्तियों से पूछा जाता है। प्रत्यक्ष अवलोकन दो प्रकार का हो सकता है जिन्हें क्रमशः सहभागिक अवलोकन तथा असहभागिक अवलोकन कहा जाता है। सहभागिक अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता उस समूह का एक अंग होता है जिसका वह अवलोकन कर रहा होता है जबकि असहभागिक अवलोकन में अवलोकनकर्ता समूह के क्रिया-कलापों में कोई भाग नहीं लेता है।
अवलोकन को नियंत्रित अवलोकन तथा अनियंत्रित अवलोकन के रूप में भी बांटा जा सकता है। नियंत्रित अवलोकन में अवलोकनकर्त्ता कुछ विशिष्ट परिस्थितियाँ निर्मित करके व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन करता है जबकि अनियंत्रित अवलोकन में वास्तविक तथा स्वाभाविक परिस्थितियों में अवलोकन कार्य किया जाता है। नियंत्रित अवलोकन में व्यवहार के अस्वाभाविक हो जाने की सम्भावना रहती है क्योंकि अवलोकित किया जाने वाला व्यक्ति सजग हो जाता है। अनियंत्रित अवलोकन में अवलोकित किये जाने वाले व्यक्ति को स्वयं के अवलोकन किये जाने की प्रायः कोई जानकारी नहीं होती जिससे वह अपने स्वाभाविक व्यवहार का प्रदर्शन करता है।
2. परीक्षण (Test)
परीक्षण वे उपकरण होते हैं जो किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किसी समूह के व्यवहार का क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित (Systematic) ज्ञान प्रदान करते हैं। परीक्षण से तात्पर्य किसी व्यक्ति को ऐसी परिस्थितियों में रखने से है जो उसके वास्तविक गुणों को प्रकट कर देता है। विभिन्न प्रकार के गुणों को मापने के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात करने के लिए उपलब्धि परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है, व्यक्तित्व को जानने के लिए व्यक्तित्व परीक्षण का प्रयोग किया जाता है, रुचि जानने के लिए रुचि परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है, अभिक्षमता ज्ञात करने के लिए अभिक्षमता परीक्षण का प्रयोग किया जाता है, छात्रों की कठिनाइयों को जानने के लिए निदानात्मक परीक्षण का प्रयोग किया जाता है, आदि-आदि। परीक्षणों को अनेक ढंग से वर्गीकृत किया जा सकता है।
परीक्षण की प्रकृति के आधार पर परीक्षणों को मौखिक परीक्षण, लिखित परीक्षण तथा प्रयोगात्मक परीक्षण के रूप में बांटा जा सकता है। मौखिक परीक्षण में मौखिक प्रश्नोत्तर के द्वारा छात्रों के व्यवहार का मापन किया जाता है। परीक्षण मौखिक प्रश्न ही करता है। तथा परीक्षार्थी मौखिक रूप में ही उनका उत्तर प्रदान करता है। स्पष्ट है कि मौखिक परीक्षण के द्वारा एक समय में एक ही छात्र के गुणों को मापा जा सकता है। लिखित परीक्षण में छात्रों से प्रश्न लिखित रूप में पूछे जाते हैं तथा छात्र उनका उत्तर लिख कर देता है । लिखित परीक्षणों को एक साथ अनेक छात्रों के ऊपर प्रशासित किया जा सकता है। इससे कम समय में अधिक व्यक्तियों की योग्यतओं का मापन सम्भव है। प्रयोगात्मक परीक्षणों में छात्रों को कोई प्रयोगात्मक कार्य करना होता है तथा इस प्रयोगात्मक कार्य के आधार पर उनका मापन किया जाता है प्रयोगात्मक परीक्षणों को निष्पादन परीक्षण भी कहा जाता है।
परीक्षण के प्रशासन के आधार पर परीक्षण को दो भागों- व्यक्तिगत परीक्षण तथा सामूहिक परीक्षण में बांटा जा सकता है। व्यक्तिगत परीक्षण वे परीक्षण है जिनके द्वारा एक समय में केवल एक ही व्यक्ति की योग्यता का मापन किया जा सकता है। इसके विपरीत सामूहिक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनके द्वारा एक ही समय में अनेक व्यक्तियों की किसी योग्यता का मापन किया जा सकता है। मौखिक परीक्षण तथा प्रयोगात्मक परीक्षण (निष्पादन परीक्षण) प्रायः व्यक्तिगत परीक्षण के रूप में प्रशासित किये जाते हैं जबकि लिखित परीक्षण प्रायः सामूहिक परीक्षण के रूप में प्रशासित किये जाते हैं।
परीक्षण में प्रयुक्त सामग्री के प्रस्तुतिकरण के आधार पर भी परीक्षणों को दो भागों शाब्दिक परीक्षण तथा अशाब्दिक परीक्षण में बांटा जा सकता है। शाब्दिक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनमें प्रश्न तथा उत्तर किसी भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त किये जाते हैं जबकि अशाब्दिक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनमें प्रश्न तथा उत्तर दोनों ही (अथवा केवल उत्तर) संकेतों या चित्रों या निष्पादन आदि भाषा रहित माध्यमों की सहायता से प्रस्तुत किये जाते हैं।
परीक्षणों में प्रयुक्त प्रश्नों के शैक्षिक उद्देश्यों के आधार पर भी परीक्षणों को विभिन्न प्रकारों में बाँटा जा सकता है। यदि परीक्षण के अधिकांश प्रश्न केवल ज्ञान उद्देश्य का मापन कर रहे होते हैं तो परीक्षण को ज्ञान परीक्षण कहा जा सकता है। इसके विपरीत यदि परीक्षण अवबोध का मापन करता है तो उसे बोध परीक्षण कहा जा सकता है। यदि परीक्षण के द्वारा मुख्यतः छात्रों के कौशलों का मापन होता है तो परीक्षण को कौशल परीक्षण कहा जाता है यदि परीक्षण मुख्यतः नई परिस्थितियों में ज्ञान, बोध व कौशल के अनुप्रयोग क्षमता का पता लगाता है तो उसे अनुप्रयोग परीक्षण कहा जा सकता है। वस्तुतः ज्ञान परीक्षण, बोध परीक्षण तथा कौशल परीक्षण जहाँ छात्रों की योग्यता का केवल मापन करते हैं वहीं अनुप्रयोग परीक्षणों के द्वारा छात्रों को पूर्णतया नई परिस्थितियों में क्या व कैसे करना है का ज्ञान कराकर उन्हें सीखने का अवसर भी प्रदान किया जाता है। इसलिए अनुप्रयोग परीक्षणों को उनके इस गुण के कारण अन्तः अधिगम परीक्षण भी कहा जा सकता है।
परीक्षणों की रचना के आधार पर परीक्षणों को प्रमापीकृत परीक्षण तथा अप्रमापीकृत परीक्षण या अध्यापक निर्मित परीक्षण में भी बांटा जा सकता है। प्रमापीकृत परीक्षण वे परीक्षण होते हैं जिनके प्रश्नों का चयन पद- विश्लेषण के आधार पर करते हैं और जिनकी विश्वसनीयता वैधता तथा मानक उपलब्ध रहते हैं। अप्रमापीकृत परीक्षण या अध्यापक निर्मित परीक्षण वे परीक्षण होते हैं जिन्हें कोई अध्यापक अपनी आवश्यकतानुसार प्रयोग हेतु तात्कालिक रूप से तैयार कर लेता है।
प्रश्नों के उत्तर के फलांकन के आधार पर भी परीक्षणों को दो भागों—निबन्धात्मक परीक्षण तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षण में बाँटा जा सकता है। निबन्धात्मक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनमें परीक्षार्थी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए स्वतंत्र (Free) होता है तथा उसे विस्तृत उत्तर प्रदान करना होता है। जबकि वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में परीक्षार्थी को कुछ निश्चित शब्दों या वाक्यांशों की सहायता से ही प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने होते हैं तथा उत्तर देने में छूट कम हो जाती है।
परीक्षण के द्वारा मापे जा रहे गुण के आधार पर भी परीक्षण को अनेक भागों में बांटा जा सकता है जैसे सम्प्राप्ति परीक्षण, निदानात्मक परीक्षण अभिक्षमता परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, रुचि परीक्षण, व्यक्तिगत परीक्षण आदि। सम्प्राप्ति परीक्षणों की सहायता से विभिन्न विषयों में छात्रों के द्वारा अर्जित योग्यता का मापन किया जाता है। निदानात्मक परीक्षणों की सहायता से विभिन्न विषयों में छात्रों की कठिनाइयों को जानकर उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाता है बुद्धि परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं का पता लगाया जाता है। अभिक्षमता परीक्षण विशिष्ट क्षेत्रों में व्यक्ति की भावी क्षमता या योग्यता का मापन करते हैं। रुचि परीक्षणों के द्वारा छात्रों की शैक्षिक तथा व्यावसायिक रुचियों को मापा जाता है।
व्यक्तित्व परीक्षण की सहायता से व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं को जाना जाता है। परीक्षण की प्रकृति के आधार पर परीक्षणों को दो भागों— सार्विक परीक्षण तथा एकांकी परीक्षण में बाँटा जा सकता है। सार्विक परीक्षण एक साथ अनेक गुणों का मापन करता है जबकि एकांकी परीक्षण एक बार में केवल एक ही गुण या योग्यता का मापन करता है।
परीक्षण को करने में लगने वाले समय के आधार पर परीक्षणों को गति परीक्षण तथा सामर्थ्य परीक्षण के रूप में भी बांटा जा सकता है। गति परीक्षणें में सरल प्रश्न अधिक संख्या में दिये होते हैं तथा छात्रों द्वारा निश्चित समय में ही हल किये गये प्रश्नों की संख्या के आधार या उनकी प्रश्न हल करने की गति का मापन किया जाता है। सामर्थ्य परीक्षण में अपेक्षाकृत कुछ कठिन प्रश्न दिये होते हैं तथा छात्रों की प्रश्नों को हल करने की सामर्थ्य या क्षमता का पता लगाया जाता है।
परीक्षणों को चयन परीक्षण (Selection Tests) तथा हटाव परीक्षण (Elimination Tests) के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। चयन परीक्षणों का उद्देश्य व्यक्ति को सकारात्मक पक्षों (Positive Aspects) अथवा श्रेष्ठ बिन्दुओं को सामने लाकर उसके चयन का मार्ग प्रशस्त करना है। इसके विपरीत हटाव परीक्षणों का उद्देश्य व्यक्ति के नकारात्मक पक्षों (Negative Aspects) अथवा कमजोर बिन्दुओं (Minus Points) को जानकर उसे चयनित न करने के प्रमाणों को प्रस्तुत करना होता है। औसत कठिनाई वाले प्रश्नों वाला परीक्षण प्रायः चयन परीक्षण का कार्य करता है जबकि अधिक कठिनाई वाले प्रश्नों से युक्त परीक्षण प्रायः हटाव परीक्षण का कार्य सम्पादित करता है।
3. साक्षात्कार (Interview)
साक्षात्कार व्यक्तियों से सूचना संकलित करने का सर्वाधिक प्रचलित साधन है। विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में इसका प्रयोग किया जाता रहा है। साक्षात्कार में किसी व्यक्ति से आमने-सामने बैठकर विभिन्न प्रश्न पूछे जाते हैं तथा उसके द्वारा दिये गये उत्तर के आधार पर उसकी योग्यताओं का मापन किया जाता है। अपने सामने बैठकर प्रत्यक्ष वार्तालाप करने के कारण साक्षात्कार को प्रत्यक्षालाप के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है शिक्षा संस्थाओं में छात्रों की शैक्षिक उपब्धि का मापन करने हेतु लिए जाने वाले साक्षात्कार को मौखिकी परीक्षा के नाम से पुकारा जाता है।
साक्षात्कार दो प्रकार के हो सकते हैं। ये दो प्रकार क्रमशः प्रमापीकृत साक्षात्कार तथा अप्रमापीकृत साक्षात्कार हैं। प्रमापीकृत साक्षात्कार को संरचित साक्षात्कार भी कहते हैं। इस प्रकार के साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों, उनके क्रम तथा उनकी भाषा आदि को पहले से ही निश्चित कर लिया जाता है। इस प्रकार के साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को प्रश्नों के सम्बन्ध में कुछ (परन्तु अत्यधिक कम) स्वतंत्रता दी जा सकती है। परन्तु यह स्वतंत्रता भी पहले से ही स्पष्ट की जाती है। प्रमापीकृत साक्षात्कार के लिए साक्षात्कार प्रश्नावली को पहले से ही पूर्ण सजगता व सावधानी के साथ तैयार कर लिया जाता है। स्पष्टतः प्रमापीकृत साक्षात्कार में सभी छात्र-छात्राओं से एक समान प्रश्नों को, एक ही क्रम में एक ही भाषा में पूछा जाता है। अप्रमापीकृत साक्षात्कार को असंरचित साक्षात्कार भी कहते हैं । इस प्रकार के साक्षात्कार लोचनीय तथा मुक्त प्रकृति के होते हैं। यद्यपि इस प्रकार के साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्न काफी सीमा तक मापन के उद्देश्यों के ऊपर निर्भर करते हैं फिर भी प्रश्नों की पाठ्यवस्तु, उनका क्रम, उनकी भाषा आदि साक्षात्कारकर्ता के तात्कालिक विवेचन के ऊपर निर्भर करती है। इनमें किसी भी प्रकार की साक्षात्कार प्रश्नावली का प्रयोग नहीं किया जाता स्पष्टतः अप्रमापीकृत साक्षात्कार में विभिन्न छात्रों से पूछे गये प्रश्न भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कभी-कभी परिस्थितियों के अनुसार साक्षात्कार का एक मिश्रित रूप अपनाना पड़ता है जिसे अर्द्ध-प्रमापीकृत साक्षात्कार अथवा अर्द्ध-संरचित साक्षात्कार भी कहते हैं। इसमें साक्षात्कारकर्ता तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेकर पूर्व निर्धारित प्रश्नों के साथ-साथ कुछ विकल्पात्मक प्रश्नों का प्रयोग कर सकता है।
उद्देश्य के अनुरूप साक्षात्कार कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे सूचनात्मक साक्षात्कार, परामर्श साक्षात्कार, निदानात्मक साक्षात्कार, उपचारात्मक साक्षात्कार, चयन साक्षात्कार तथा अनुसंधान साक्षात्कार आदि। कुछ विद्वान साक्षात्कार को औपचारिक साक्षात्कार तथा अनौपचारिक साक्षात्कार में भी बाँटते हैं जबकि कुछ विद्वान साक्षात्कार को व्यक्तिगत साक्षात्कार तथा सामूहिक साक्षात्कार में बांटते हैं। व्यक्तिगत साक्षात्कार में एक बार में केवल एक ही व्यक्ति का साक्षात्कार लिया जाता है जबकि सामूहिक साक्षात्कार में एक साथ कई व्यक्तियों को बैठा लिया जाता है। सामूहिक साक्षात्कार से व्यक्ति द्वारा प्रश्नों के उत्तरों को शीघ्रता से देने का पता चलता है। सामूहिक विचार-विमर्श (Group Discussion) भी सामूहिक साक्षात्कार का एक प्रकार है।
प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके सूचनायें संकलित करने की दृष्टि से साक्षात्कार करना अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। साक्षात्कार के द्वारा अनेक ऐसी गुप्त तथा व्यक्तिगत सूचनायें प्राप्त हो सकती हैं जो मापन के अन्य उपकरणों से प्रायः प्राप्त नहीं हो पाती हैं।
किसी व्यक्ति के अतीत को जानने अथवा उसके गोपनीय अनुभवों की झलक प्राप्त करने के कार्य में साक्षात्कार एक उपयोगी भूमिका अदा करता है। बहुपक्षीय तथा गहन अध्ययन हेतु साक्षात्कार बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त अशिक्षितों तथा छोटे बालकों से सूचना प्राप्त करने की दृष्टि से भी साक्षात्कार अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता आवश्यकतानुसार नम्यता (Flexibility) कर सकता है जो अन्य मापन उपकरण में सम्भव नहीं होती है।
साक्षात्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन भागों में-
1. साक्षात्कार प्रारम्भ करना,
2. साक्षात्कार का मुख्य भाग, तथा
3. साक्षात्कार का समापन करना बाँटा जा सकता है।
साक्षात्कार के प्रारम्भ में साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति से आत्मीयता स्थापित करता है। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का स्वागत करते हुए परिचय प्राप्त करना होता है तथा यह विश्वास दिलाना होता है कि उसके द्वारा दी गई सूचनायें पूर्णतया गोपनीय रहेंगी। आत्मीयता स्थापित हो जाने के उपरान्त साक्षात्कार का मुख्य भाग आता है जिसमें सूचनाओं का संकलन किया जाता है । प्रश्न करते समय साक्षात्कारकर्ता को ध्यान रखना चाहिए कि-
(i) प्रश्न क्रमबद्ध हों,
(ii) प्रश्न सरल व स्पष्ट हों,
(iii) प्रश्न साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति की भावनाओं पर आघात न पहुँचाते हों,
(iv) साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति का उचित अवसर मिल सके, तथा
(v) साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के द्वारा दिये गये उत्तरों को धैर्य व सहानुभूति के साथ में सुना जाये।
वांछित सूचनाओं की प्राप्ति के उपरान्त साक्षात्कार को इस प्रकार से समाप्त किया जाना चाहिए कि साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के सन्तोष का अनुभव साक्षात्कारकर्ता को हो। साक्षात्कार की समाप्ति मधुर वातावरण में धन्यवाद ज्ञापन के साथ करनी चाहिए। किन्ही बातों के विस्मरण की सम्भावना से बचने के लिए साक्षात्कार के साथ-साथ अथवा तत्काल उपरान्त मुख्य बातों को लिख लेना चाहिए एवं साक्षात्कार के उपरान्त यथाशीघ्र साक्षात्कारकर्ता को अपना प्रतिवेदन तैयार कर लेना चाहिए।
4. अनुसूची (Schedule)
अनुसूची समंक संकलन हेतु बहुतायत से प्रयुक्त होने वाला एक मापन उपकरण है। इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अनुसूची की पूर्ति समंक संकलन करने वाला व्यक्ति स्वयं करता है अनुसंधानकर्ता/मापनकर्ता उत्तरदाता से प्रश्न पूछता है, आवश्यक होने पर प्रश्न को स्पष्ट करता है तथा प्राप्त उत्तरों को अनुसूची में अंकित करता जाता है। परन्तु कभी-कभी अनुसूची की पूर्ति उत्तरदाता से भी कराई जाती है। वेबस्टर के अनुसार, अनुसूची एक औपचारिक सूची, केटलॉग अथवा सूचनाओं की सूची होती है। अनुसूची को औपचारिक तथा प्रमापीकृत जाँच कार्यों में प्रयुक्त होने वाली गणनात्मक प्रविधि के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है जिसका उद्देश्य मात्रात्मक समंकों के संकलन को व्यवस्थित एवं सुविधाजनक बनाना होता है। अवलोकन तथा साक्षात्कार को वस्तुनिष्ठ व प्रमाणिक बनाने में अनुसूचियाँ सहायक सिद्ध होती हैं। ये एक समय में किसी एक बात का अवलोकन या जानकारी प्राप्त करने पर बल देती हैं जिसके फलस्वरूप अवलोकन से प्राप्त जानकारी अधिक सटीक होती है। अनुसूची काफी सीमा तक लिखित प्रश्नावली के समान होता है। तथा इन दोनों में विभेद करना अत्यन्त कठिन कार्य होता है। अनुसूचियाँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं जैसे अवलोकन अनुसूची, साक्षात्कार अनुसूची, दस्तावेज अनुसूची, मूल्यांकन अनुसची, निर्धारण अनुसूची आदि। परन्तु यहाँ यह स्पष्ट करना उचित ही होगा कि ये अनसूचियाँ परस्पर एक-दूसरे से पूर्णतया अपवर्जित नहीं हैं। जैसे साक्षातकार अनुसूची में अवलोकन के आधार पर पूर्ति किये जाने वाले पद (Items) भी हो सकते हैं।
अवलोकन अनुसूची व्यक्तियों अथवा समूहों की क्रियाओं तथा सामाजिक परिस्थितियों को जानने के लिए एक समान आधार प्रदान करती है। इस प्रकार की अनुसूचियों की सहायता से एक साथ अनेक अवलोकनकर्ता एकरूपता के साथ बड़े समूह से समंक संकलित कर सकते हैं साक्षात्कार अनुसूचियों का प्रयोग तथा प्रमापीकृत साक्षात्कारों में किया जाता है। ये साक्षात्कार को प्रमापीकृत बनाने में सहायक होती हैं।
दस्तावेज का प्रयोग व्यक्ति इतिहासों से सम्बन्धित दस्तावेजों तथा अन्य सामग्री से समंक संकलित करने हेतु किया जाता है। इस प्रकार की अनुसूचियों में उन्हीं बिन्दुओं/पदों को सम्मिलित किया जाता है जिनके सम्बन्ध में सूचनायें विभिन्न व्यक्ति इतिहासों के समान रूप से प्राप्त हो सके । अतः अपराधी बच्चों अथवा अनुवांशिक अध्ययनों के व्यक्ति इतिहासों का अध्ययन करने के लिए बनाई अनुसूची में उन्हीं बातों को सम्मिलित किया जायेगा जो अध्ययन में सम्मिलित सभी बच्चों के व्यक्ति इतिहासों से ज्ञात हो सकती हैं। जैसे अपराध शुरू करने की आयु, माता-पिता का शिक्षा स्तर, परिवार का सामाजिक आर्थिक स्तर, अपराधों की प्रकृति व आवृत्ति आदि।
मूल्यांकन अनुसूची का प्रयोग एक साथ अनेक स्थानों पर संचालित समान प्रकार कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक सूचनायें संकलित करने के लिए किया जाता है। जैसे यू.जी.सी द्वारा अनेक विश्वद्यालयों में एक साथ संचालित एकेडेमिक स्टाफ कालिज के योजना का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न एकेडेमिक कालिजों से कार्यक्रम सम्बन्धी विभिन्न सूचनाओं को संकलित करने के लिए मूल्यांकन अनुसूची का प्रयोग किया जा सकता है। निर्धारण अनुसूची वास्तव में निर्धारण मापनी का ही एक रूप हैं।
5. प्रश्नावली (Questionnaire)
प्रश्नावली प्रश्नों का एक समूह है जिसे उत्तरदाता के सम्मुख मुद्रित प्रस्तुत किया जाता है तथा वह उनका लिखकर अथवा चिह्न लगाकर उत्तर देता है। प्रश्नावली प्रमापीकृत साक्षात्कार का लिखित रूप है। साक्षात्कार में एक-एक करके प्रश्न मौखिक रूप में पूछे जाते हैं तथा उनका उत्तर भी मौखिक रूप से प्राप्त होता है जबकि प्रश्नावली प्रश्नों का एक व्यवस्थित संचयन है। प्रश्नावली भी एक साथ अनेक व्यक्तियों को दी जा सकती है कम समय, कम व्यय तथा कम श्रम में अनेक व्यक्तियों से प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो जाता है। प्रश्नावली तैयार करते समय निम्न बातों का ध्यान चाहिए-
1. प्रश्नावली के साथ मुखपत्र अवश्य संलग्न करना चाहिए जिसमें प्रश्नावली को प्रशासित करने के उद्देश्य का स्पष्ट उल्लेख किया गया हो।
2. प्रश्नावली के प्रारम्भ में आवश्यक निर्देश अवश्य देने चाहिए जिनमें उत्तर को अंकित करने की विधि स्पष्ट की गई हो।
3. प्रश्नावली में सम्मिलित प्रश्न आकार की दृष्टि से छोटे, बोधगम्य तथा सरल भाषा में होने चाहिए।
4. प्रत्येक प्रश्न में केवल एक ही विचार को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
5. प्रश्नावली के प्रश्नों में प्रयुक्त तकनीकी / जटिल शब्दों के अर्थ को स्पष्ट कर देना चाहिए।
6. प्रश्नों में एक साथ दुहरी नकारात्मक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
7. प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए कि प्रश्नों का उत्तर देने में उत्तरदाता को सरलता
होनी चाहिए 8. प्रश्नावली में सम्मिलित प्रश्नों के उत्तरों का स्वरूप इस प्रकार का होना चाहिए कि उनका संख्यात्मक विश्लेषण किया जा सके।
9. प्रश्नावली बहुत अधिक बड़ी नहीं होनी चाहिए।
प्रश्नावली प्रत्यक्ष सम्पर्क के द्वारा भी प्रशासित की जा सकती है तथा डाक द्वारा भेजकर भी आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। उत्तर प्रदान करने के आधार पर प्रश्नावली दो प्रकार की हो सकती है। प्रश्नावली के ये दो प्रकार प्रतिबन्धित प्रश्नावली तथा मुक्त प्रश्नावली हैं। प्रतिबन्धित प्रश्नावली में दिये गयें कुछ उत्तरों में से किसी एक उत्तर का चयन करना होता है जबकि मुक्त प्रश्नावली में उत्तरदाता को अपने शब्दों में तथा अपने विचारानुकूल उत्तर देने की स्वतंत्रता होती है। जब प्रश्नावली में दोनों ही प्रकार के प्रश्न होते हैं तब उसे मिश्रित प्रश्नावली कहते हैं।
6. निर्धारण मापनी (Rating Scale)
निर्धारण मापनी किसी व्यक्ति के गुणों का गुणत्मक विवरण प्रस्तुत करती है। निर्धारण मापनी की सहायता से व्यक्ति में उपस्थित गुणों की सीमा अथवा गहनता या आवृत्ति को मापने का प्रयास किया जाता है। निर्धारण मापनी में उत्तर को करने के लिए कुछ संकेत (अक्षर, शब्द अथवा अंक) होते हैं। ये संकेत (अक्षर, शब्द अथवा अंक) कम से अधिक अथवा अधिक से कम के सातत्य में क्रमबद्ध रहते हैं। उत्तरकर्ता को मापे जाने वाले गुण के आधार पर इन संकेतों (अक्षरों, शब्दों अथवा अंकों) में से किसी एक ऐसे संकेत का चयन करना होता है जो छात्र में उपस्थित उस गुण की सीमा को अभिव्यक्त कर सके। निर्धारण मापनी अनेक प्रकार की हो सकती है। ये प्रकार क्रमशः चैकलिस्ट आंकिक मापनी, ग्राफिक मापनी, क्रमिक मापनी, स्थानिक मापनी, बाह्य चयन मापनी हैं।
जब किसी व्यक्ति में गुण की उपस्थिति या अनुपस्थिति का ज्ञान करना होता है तब चैकलिस्ट का प्रयोग किया जाता है। चैकलिस्ट में कुछ कथन दिये जाते है जो गुण की उपस्थिति अनुपस्थिति को इंगित करते हैं। निर्णायक को कथनों के सही या गलत होने की स्थिति को सही या गलत का चिह्न लगाकर बताना होता है। निर्णायक के उत्तरों के आधार पर व्यक्ति में मौजूद गुण की मात्रा का पता लगाया जाता है।
आंकिक मापनी में दिये गये कथनों के हाँ या नहीं के रूप में उत्तर नहीं होते हैं बल्कि प्रत्येक कथन के लिए कुछ बिन्दुओं (जैसे 3,5 या 7 आदि) पर कथन के प्रति प्रयोज्यकर्ता की सहमति या असहमति की सीमा (Extent) ज्ञात की जाती है। इस प्रकार से निर्णयकर्ता से प्रत्येक कथन के प्रति उसकी सहमति/असहमति की सीमा को जान लिया जाता है तथा इन सबका योग करके मापे जा रहे गुण की मात्रा को ज्ञात कर लिया जाता है।
ग्राफिक मापनी वस्तुतः आंकिक मापनी के समान होती है। इसमें सहमति/असहमति की सीमाओं को कुछ बिन्दुओं से प्रकट न करके एक क्षैतिज रेखा, जिसे सातत्य कहते हैं। तथा जो सहमति/असहमति के दो छोरों को बताती है, पर निशान लगाकर अभिव्यक्त किया जाता है। इन क्षैतिज रेखाओं पर निर्णयकर्ता के द्वारा लगाये निशानों की स्थिति (अर्थात् किसी एक छोर से दूरी) के आधार पर गुण की मात्रा का ज्ञान हो जाता है।
क्रमिक मापनी में निर्णयकर्ता से किसी गुण की मात्रा के विषय में जानकारी न लेकर अनेक गुणों व उपगुणों को क्रमबद्ध कराया जाता है। व्यक्ति में उपस्थित गुणों की मात्रा के आधार पर इन गुणों को क्रमबद्ध किया जाता है। कभी-कभी इस प्रकार की मापनी की सहायता से विभिन्न या गुणों सापेक्षिक महत्व को जाना जाता है।
स्थानिक मापनी की सहायता से विभिन्न वस्तुओं, व्यक्तियों या कथनों को किसी समूह विशेष के सन्दर्भ में स्थानसूचक मान जैसे दशांक या शतांक आदि प्रदान किये जाते हैं। इस प्रकार की मापनी मापे जा रहे गुण के सन्दर्भ में व्यक्ति की सापेक्षिक स्थिति को इंगित करती है। बाह्य चयन मापनी में प्रत्येक प्रश्न के दो या दो से अधिक उत्तर होते हैं तथा व्यक्ति को इनमें से किसी एक उत्तर का चयन अवश्य करना पड़ता है। इस प्रकार की मापनी से व्यक्ति की तुलनात्मक पसन्द की जानकारी होती है।
7. प्रक्षेपीय तकनीक (Projective Technique)
प्रक्षेपीय तकनीक की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता व्यक्ति के अचेतन पक्ष का मापन है। प्रक्षेपण से अभिप्राय उस अचेतन प्रक्रिया से है जिसमें व्यक्ति अपने मूल्यों, दृष्टिकोणों, आवश्यकताओं, इच्छाओं, संवेगों आदि को अन्य वस्तुओं अथवा अन्य व्यक्तियों के माध्यम से अपरोक्ष ढंग से व्यक्त करता है । प्रक्षेपीय तकनीक में व्यक्ति के सम्मुख किसी ऐसी उद्दीपक परिस्थिति को प्रस्तुत किया जाता है जिसमें वह अपने विचारों, दृष्टिकोणों, संवेगों, गुणों, आवश्यकताओं आदि को उस परिस्थिति में आरोपित (Impose) करके अभिव्यक्त कर दे । प्रक्षेपीय तकनीक में प्रस्तुत किए जाने वाले उद्दीपन असंरचित प्रकृति के होते हैं तथा इन पर व्यक्ति के द्वारा की गई प्रतिक्रियायें सही या गलत न होकर व्यक्ति के द्वारा उस उद्दीपन की सहज व्याख्यायें होती हैं। प्रक्षेपीय तकनीकों में व्यक्ति द्वारा दी जाने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर इन्हें पाँच भागों— साहचर्य तकनीकें, रचना तकनीकें, पूर्ति तकनीकें, क्रम तकनीकें तथा अभिव्यक्ति तकनीकें में बांटा जा सकता है।
साहचर्य तकनीक में व्यक्ति के सम्मुख कोई उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तथा व्यक्ति को उस उद्दीपक से सम्बन्धित प्रतिक्रिया देनी होती है। व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार से प्रस्तुत की गई प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण से उसके व्यक्तित्व को जाना जा सकता है। उद्दीपकों के आधार पर साहचर्य तकनीकें कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे शब्द साहचर्य तकनीकें, चित्र साहचर्य तकनीकें, तथा वाक्य साहचर्य तकनीक में क्रमश: शब्दों, चित्रों या वाक्यों को प्रस्तुत किया जाता है तथा उन पर व्यक्ति की प्रतिक्रिया प्राप्त की जाती है। कैन्ट व रोजनेफ का मुक्त साहचर्य परीक्षण साहचर्य तकनीक का एक उदाहरण है।
रचना तकनीक में व्यक्ति के सामने कोई उद्दीपन प्रस्तुत कर दिया जाता है तथा उससे कोई रचना बनाने के लिए कहा जाता है। व्यक्ति के द्वारा तैयार की गई रचना का विश्लेषण करके उसके व्यक्तित्व को जाना जाता है। प्रायः उद्दीपन के आधार पर कहानी लिखवाकर या चित्र बनवाकर इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। हेनरी मरे का प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (T.A.T.) तथा बाल अन्तर्बोध परीक्षण (C.A.T.) इस तकनीक के प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
पूर्ति तकनीक में किसी अधूरी रचना को उद्दीपन की तरह से प्रस्तुत किया जाता है तथा व्यक्ति को उस अधूरी रचना को पूरा करना होता है। व्यक्ति के द्वारा अधूरी रचना की पूर्ति में प्रयुक्त किये जाने वाले शब्द या भावों का विश्लेषण करके उसके व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जाता है। वाक्य पूर्ति या चित्रपूर्ति इस तकनीक के प्रयोग के कुछ ढंग हैं। रोडे का, वाक्य पूर्ति परीक्षण, तथा रोटर का, अपूर्ण वाक्य परीक्षण, इस तकनीक के उदाहरण हैं।
क्रम तकनीक में व्यक्ति के समक्ष उद्दीपन के रूप में कुछ शब्द, कथन भाव, विचार, चित्र, वस्तुएं आदि रख दी जाती हैं तथा उससे उन्हें किसी क्रम में व्यवस्थित करने के लिए कहा जाता है। व्यक्ति के द्वारा बनाये क्रम के विश्लेषण से उसके सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। सजोन्दी परीक्षण इस तकनीक का एक उदाहरण है जिसमें प्रयोज्य को कुछ चित्रों को व्यवस्थित करना होता है।
अभिव्यक्ति तकनीक के अन्तर्गत व्यक्ति को प्रस्तुत किये गये उद्दीपन पर अपनी प्रतिक्रिया विस्तार से अभिव्यक्त करनी पड़ती है। व्यक्ति के द्वारा उद्दीपन पर प्रस्तुत की गई
अभिव्यक्ति के विश्लेषण से उसके व्यक्तित्व व अन्य शीलगुणों का पता चल जाता है। हर्मन रोशा का मसि लक्ष्य परीक्षण ( Ink Blot Test) इस तकनीक का प्रसिद्ध उदाहरण है। मनोनाटक तथा खेल भी इसी तकनीक के उदाहरण हैं।
रोशा मसि लक्ष्य परीक्षण तथा मरे प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण, बाल अन्तर्बोध परीक्षण, शब्द साहचर्य परीक्षण, शाब्दिक पूर्ति परीक्षण बहुतायत से प्रयोग किए जाने वाले कुछ प्रक्षेपीय मापन उपकरण हैं ।
8. समाजमिति (Sociometry)
समाजमिति एक ऐसा व्यापक पद है जो किसी समूह में व्यक्ति की पसन्द, अंतःक्रिया आदि एवं समूह के गठन आदि का मापन करने वाली तकनीक व उपकरणों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। दूसरे शब्दों में समाजमिति सामाजिक पसन्द तथा समूहगत विशेषताओं के मापन की एक विधि है। इस प्रविधि में व्यक्ति से कहा है जाता है कि वह उसे दिये गए आधार पर एक या एक से अधिक व्यक्तियों का चयन करे। जैसे कक्षा में आप किसके साथ बैठना पसन्द करेंगे, आप किसके साथ खेलना पसन्द करेंगे, आप किसे मित्र बनाना पसन्द करेंगे। व्यक्ति इस प्रकार की एक, दो, तीन या अधिक पसन्द बता सकता है। इस प्रकार समाजमितीय प्रश्नों के लिए प्राप्त उत्तरों से तीन प्रकार का समाजमितीय विश्लेषण समाजमितीय मैट्रिक्स सोशियोग्राम तथा समाजमितीय गुणांक किया जा सकता है समाजमितीय मैट्रिक्स में समूह के सभी छात्रों के द्वारा इंगित की गई पसन्द को सारणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है सोशियोग्राम में समूह की पसन्द को चित्ररूप में प्रस्तुत करते हैं समाजमितीय गुणांको के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों सम्बन्ध में अन्य छात्रों द्वारा इंगित की गई पसन्द को अथवा समूह की सामूहिक सामाजिक स्थिति को अंकों के रूप में व्यक्त किया जाता है। समाजमितीय गुणांक अनेक प्रकार के हो सकते हैं । समाजमिति तकनीक को एक सरल उदाहरण की सहायता से स्पष्ट करना अधिक उपयुक्त रहेगा। उदाहरण के लिए माना कि पाँच छात्राओं के एक समूह के प्रत्येक सदस्य से पूछा गया कि वे अपने समूह में किन दो अन्य छात्राओं को सर्वाधिक पसन्द करते हैं। उदाहरणार्थ माना कि इन पाँच छात्राओं के उत्तर निम्नवत थे-
1. लता ने ईशिता तथा जूली को पसन्द किया।
2. ईशिता ने लता तथा जूली को पसन्द किया।
3. वर्षा ने ईशिता तथा जूली को पसन्द किया।
4. संगीता ने ईशिता तथा वर्षा को पसन्द किया।
5. जूली ने ईशिता तथा वर्षा को पसन्द किया।
छात्राओं के द्वारा दिये गये उपरोक्त उत्तरों को सारणी के रूप में किया जा सकता है। सारणीबद्ध समंक अधिक उपयोगी व बोधगम्य प्रतीत होते हैं जिनमें समूह की पसन्द के सम्बन्ध में कई निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। सामाजिक पसन्द से सम्बन्धित इस प्रकार से सारणीबद्ध समंकों को ही समाजमितीय मैट्रिक्स (Sociometric Matrix) कहा जाता है।
पसन्द को इंगित करने के लिए अंकों को भी प्रयोग में लाया जा सकता है। जैसे प्रथम पसन्द को 2, द्वितीय पसन्द को । तथा नापसन्द को 0 अंक से इंगित किया जा है।
सारणी : समाजमितीय मैट्रिक्स (Sociometric Matrix)
समाजमितीय मैट्रिक्स को जब चित्र में प्रस्तुत किया जाता है तब इसे सोशियोग्राम कहते हैं। उपरोक्त वर्णित समाजमितीय मैट्रिक्स या समंकों से चित्र में दिया सोशियोग्राम बनाया जा सकता है। इसमें तीर के निशान () किसी छात्रा की पसन्द को बताते हैं जबकी तीर के परस्पर निशान (←→) दो छात्राओं की परस्पर को इंगित करते हैं। तीर अगला पसन्द की जाने वाली छात्रा को तथा पिछली भाग पसन्द करने वाली छात्रा को इंगित करता है। एक से अधिक पसन्द पूछने पर गहरी रेखा, हल्की रेखा तथा टूटी हुई रेखा का प्रयोग करके तीर के निशान बनाये जा सकते हैं। समूह में व्यक्तियों की पसन्द की प्रकृति को स्पष्ट करने में सोशियोग्राम अत्यन्त सहायक होता है।
समाजमितीय मैट्रिक्स तथा सोशियोग्राम में प्रस्तुत की गई विभिन्न सूचनाओं की सहायता से विभिन्न प्रकार के समाजमितीय गुणांकों की गणना करके समूह के आन्तरिक सम्बन्धों को आंकिक रूप में व्यक्त किया जा सकता है। जैसे उपरोक्त वर्णित मैट्रिक्स या सोशियोग्राम से विभिन्न छात्राओं के लिए पसन्द गुणांक (Choice Status Coefficient) की गणना निम्न सूत्र से की जा सकती है-
पसन्द (CS) = कुल पसन्द / (N-1)
इस सूत्र में N समूह के सदस्यों की कुल संख्या है। सूत्र के अवलोकन से स्पष्ट है कि पसन्द गुणांक (CS) का मान्य शून्य से 1.00 के बीच हो सकता है। किसी छात्रा के लिए पसन्द गुणांक (CS) का मान जितना अधिक होता है वह छात्रा समूह में उतना ही अधिक पसन्द की जाने वाली छात्रा होती है। पसन्द गुणांक (CS) का मान शून्य होने का अर्थ है कोई पसन्द नहीं करता है तथा 1.00 का अर्थ है सभी पसन्द करते हैं। विगत उदाहरण के लिए पसन्द गुणांक की गणना करने से स्पष्ट होगा कि लता, ईशिता, वर्षा, संगीता व जूली के लिए पसन्द गुणांक (CS) का मान क्रमश: 25, 100, 50.00 व 75 है जो समूह के सदस्यों के द्वारा उनको पसन्द किये जाने का अनुपातिक परिचायक है।
समाजमितीय समंकों की सहायता से समूह के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए समूह गुणांक (Group Coefficients) निकालने होते हैं। समूह गुणांक भी अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जैसे उपरोक्त वर्णित समंकों के लिए समूह की परस्पर पसंद के लिए समूह गुथन गुणांक (Group Cohesiveness Coefficient) निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है-
समूह गुथन गुणांक (GC) = परस्पर पसन्द की संख्या NK / 2
इस सूत्र में N समूह के छात्राओं की कुल संख्या तथा K प्रत्येक छात्रा से पूछी गई पसन्दों की संख्या को ईंगित करता है। गणना से स्पष्ट है कि उपरोक्त उदाहरण में समूह गुथन गुणांक का मान .60 है जो बताता है कि समूह में परस्पर औसत स्तर की गुथन (Cohesiveness) है । आवश्यकतानुसार विभिन्न प्रकार की समाजमितीय मैट्रिक्स, सोशियोग्राम तथा समाजमितीय गुणांकों की गणना करके समाजमितीय समंकों की प्रकृति एवं समूह की प्रकृति को समझा जा सकता है।
9. संचयी अभिलेख (Cumulative Records)
विद्यालयों में प्राय: छात्र-छात्राओं से सम्बन्धित विभिन्न सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप में एकत्रित किया जाता है जिन्हें संचयी अभिलेख (Cumulative Records) के नाम से पुकारा जाता है। इनमें छात्रों की उपस्थिति, शैक्षिक प्रगति, योग्यता, प्रयोगात्मक कार्य, पाठ्य सहगामी क्रियाओं में सहभागिता, उनकी रुचियाँ, व्यक्तित्व आदि सूचनाओं का विस्तृत आलेख प्रस्तुत किया जाता है। किसी छात्र की प्रगति को जानने तथा उसका मूल्यांकन करने में ये संचयी अभिलेख अत्यधिक उपयोगी तथा महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं।
संचयी अभिलेख वास्तव में किसी छात्र का उस संस्था में शैक्षिक इतिहास होता है जो उसकी शैक्षिक उपलब्धि, कक्षा उपस्थिति, बुद्धि स्वास्थ्य, चरित्र, पसन्द-नापसन्द, समायोजन, शौक, व्यक्तित्व आदि की सूचना रखता है। संचयी अभिलेख प्रपत्र का एक सरल प्रारूप आगे प्रस्तुत किया गया है।
10. ऐनकडोटल अभिलेख (Anecdotal Records)
ऐनकडोटल अभिलेख वास्तव में छात्रों के शैक्षिक विकास से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथा सार्थक घटनाओं का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण है। ये घटनाएं अनौपचारिक या औपचारिक दोनों ही ढंग की हो सकती हैं। अध्यापक को इन घटनाओं का वर्णन घटना के घटित होने के बाद शीघ्रातिशीघ्र लिख लेना चाहिए, तथा इसमें घटना कब घटी तथा किन परिस्थितियों में घटना हुई, इसका समुचित विवरण लिखना चाहिए। घटना के आधार पर अध्यापक छात्र के सम्बन्ध में अपनी व्याख्या तथा सुझाव भी अलग से ऐनकडोटल रिकार्ड में लिख सकता है। ऐनकडोटल अभिलेख प्रपत्र का एक प्रारूप आगे प्रस्तुत किया गया है।
ऐनकडोटल अभिलेख प्रपत्र
छात्र का नाम………………. पिता का नाम……………………….
कक्षा…………………. प्रवेश क्रमांक……….. विद्यालय………….
दिनांक, स्थान व परिस्थिति | घटना का विवरण | अध्यापक द्वारा घटना की व्याख्या | सुझाव |
11. परीक्षण बैटरी (Test Battery)
परीक्षण बैटरी वास्तव में परीक्षणों (Tests) अथवा उपपरीक्षणों (Subtests) का एक निर्देशित समूह (Coordinated कुछ सम्बन्धित Set) होता है। परीक्षण बैटरी में सम्मिलित परीक्षणें या उपपरीक्षणों की संख्या कुछ भी हो सकती है। तीन-चार परीक्षणों से लेकर दस-बारह परीक्षणों से युक्त परीक्षण बैटरियाँ देखने को मिलती हैं। परीक्षण बैटरी में सम्मिलित विभिन्न परीक्षणों व उपपरीक्षणों में प्रश्नों की संख्या तथा समयावधि कम अधिक सकती है। परीक्षण बैटरी किसी बहु-आयामी गुण या विशेषता जैसे शैक्षिक सम्प्राप्ति, बुद्धि, व्यक्तित्व, रुचि, अभिरुचि, अभिवृत्ति आदि के मापन के लिए एक व्यापक आधार (Comprehensive Coverage) का प्रयोग करती है। परीक्षण बैटरी के परीक्षण एकीकृत (Integrated) होने के कारण व्यर्थ के दोहराने को कम करते हैं। परीक्षण बैटरी की सहायता से अनके छात्रों की परस्पर तुलना भी अधिक अच्छी तरह से की जा सकती है। सम्प्राप्ति परीक्षण बैटरी (Achievement Tests Battery) में विभिन्न जैसे गणित, भाषा, विज्ञान आदि के परीक्षण सम्मिलित किये जा सकते हैं। परीक्षण बैटरी (Intelligence Test Battery) में शब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, स्मरण योग्यता, तर्क योग्यता आदि से सम्बन्धित अनेक परीक्षण रखे जा सकते हैं। प्रवेश परीक्षण बैटरी (Admission Test Battery) में किसी कक्षा या पाठ्यक्रम विशेष के लिए आवश्यक विभिन्न योग्यताओं से सम्बन्धित अनेक परीक्षण रखे जा सकते हैं।
12. चेक लिस्ट (Check List)
हार्टशोर्न तथा में ने इस विधि का प्रयोग बच्चों के चरित्र सम्बन्धी अनेक विशेषताओं, जैसे- सहयोग, दयालु, निर्दयी, लालची, अहसानमन्द आदि का मूल्यांकन करने के लिए किया था। निर्णायक यह जाँच करता है कि उपरोक्त विशेषताओं में से कौन-कौन सी विशेषताएँ बालक के व्यवहार में परिलक्षित हो रही है। इसके बाद अंकों के कुल संचय के आधार पर बालक के गुणों के बारे में निर्णय लिया जाता है। प्रत्येक अनुकूल लक्षण के लिए +1 तथा प्रतिकूल लक्षण के लिए -1 अंक दिया जाता है।
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