B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त | स्किनर का सिद्धान्त | स्किनर का प्रयोग

सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त
सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त

सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त (Skinner’s Operant Conditioned Theory)

स्किनर का अधिगम सिद्धान्त वर्णनात्मक व्यवहार (Descriptive Behaviourism) पर आधारित है। यह सिद्धान्त पूर्ण रूप से अनुक्रिया के अध्ययन पर ही आधारित है। स्किनर ने सीखने के जिस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है उसे सक्रिय अनुबन्धित सिद्धान्त कहते हैं। स्किनर का विचार था कि व्यवहार के किसी एक पक्ष को दण्डित अथवा पुरस्कृत किया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक भाषा में इसे पुनर्बलन कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पुनर्बलन का अर्थ हुआ, “सक्रिय अनुबन्धन में कोई भी घटना अथवा उद्दीपन जो किसी प्रकार की अनुक्रिया उत्पन्न करता है, पुनर्बलन कहलाता है। जब किसी प्रकार से कोई अनुबन्धन हो तो उसी अनुक्रिया के दोहराये जाने की प्रवृत्ति रहती है। इसे सक्रिय अनुबन्धन कहते हैं।”

हम दैनिक जीवन में ‘औपया’ शब्द का प्रयोग बार-बार करते हैं तथा किसी को प्राप्त करने के लिए ‘औपया’ शब्द दोहराते हैं। प्रत्येक बार इसी बात को दोहराया जाता है। यदि कोई व्यक्ति भूख लगने पर औपया शब्द कहेगा तो उसे भोजन प्राप्त हो जायेगा। इस प्रकार से भोजन प्राप्त करके ‘औपया’ अनुक्रिया के लिए सकारात्मक पुनर्बलन कहलाता है।

स्किनर का प्रयोग (Skinner’s Experiment)

स्किनर ने अपने सीखने के सिद्धान्त के प्रतिपादन हेतु सन् 1930 में सफेद चूहों पर प्रयोग किये। स्किनर ने एक विशेष प्रकार का बाक्स लिया जिसे स्किनर बाक्स कहते हैं। इस बक्से में एक छोटा-सा मार्ग था जिसमें एक लीवर लगा हुआ था जिसका सम्बन्ध एक प्याली से था। लीवर को दबाने से खट की आवाज होती थी तथा उस प्याली में खाने का टुकड़ा आ जाता था। चूहा जब इस बक्से में उस मार्ग से छोड़ा जाता था तो लीवर पर उसका पैर पड़ने से खट की आवाज होती थी तथा वह आवाज को सुनकर उसकी ओर बढ़ता था तथा अन्दर रखी प्याली में उसे खाने का टुकड़ा मिल जाता था। यह खाना उस चूहे के लिए पुनर्बलन का कार्य करता था। बक्से में इस प्रकार की व्यवस्था थी कि उससे अन्य किसी प्रकार का शोर नहीं होता था। इस क्रिया को बार-बार दोहराया गया। खाना चूहे की लीवर दबाने की क्रिया को बल प्रदान करता था। इस क्रिया में चूहा भूखा होने के कारण अधिक सक्रिय रहता था।

स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन का शैक्षिक महत्त्व (Educational Importance of Skinner’s Operant Conditioned Theory)

स्किनर का विचार था कि सक्रिय अनुबन्धन के द्वारा शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। इसी सिद्धान्त के द्वारा पशु-पक्षियों को भी प्रशिक्षित किया जा सकता है। स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन का शैक्षिक महत्त्व निम्नलिखित है-

(1) स्किनर ने अपने सिद्धान्त में पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे पदों में बाँटने पर बल दिया। अभिक्रमित अधिगम में भी पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे भागों में बाँटकर उनके फ्रेम्स बनाये जा सकते हैं। इससे अधिगम शीघ्र तथा प्रभावकारी ढंग से होता है।

(2) इस सिद्धान्त का पालन करते हुए शिक्षक विद्यार्थियों के व्यवहारों को वांछित रूप तथा दिशा प्रदान कर सकता है।

(3) स्किनर के प्रयोगों से यह सिद्ध हो जाता है कि व्यक्ति को सन्तुष्टि प्रदान करने वाली सक्रियता आती है तथा अधिगम भी शीघ्र हो पाता है।

(4) यदि विद्यार्थियों को उनके प्रयासों के परिणामों का ज्ञान करा दिया जाये तो विद्यार्थी अपने कार्य में अधिक उन्नति कर सकते हैं।

(5) स्किनर का विचार था कि अनेक जटिल तथा मानसिक रोगियों को सक्रियता अनुबन्धन के द्वारा प्रशिक्षित किया जा सकता है।

(6) स्किनर इस सिद्धान्त का प्रयोग अभिक्रमित अधिगम के लिए किया गया है। इसी सिद्धान्त के द्वारा ही शब्द-भण्डार में वृद्धि की जा सकती है।

(7) सक्रिय अनुबन्धन में पुनर्बलन का अत्यधिक महत्त्व है। पुनर्बलन के अनेक रूप हो सकते हैं; जैसे—दण्ड, पुरस्कार तथा परिणाम का ज्ञान आदि।

स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त तथा पैवलोव के अनुकूलित अनुक्रिया के सिद्धान्त में अन्तर (Difference between Skinner’s Operant Conditioned Theory and Pavlov’s Conditioned Response Theory)

स्किनर के द्वारा व्यवहारों को दो प्रकार के वर्गों में बाँटा जा सकता है, ये निम्न हैं-

(1) उद्दीपन प्रसूत व्यवहार (Respondent Behaviour)- इस व्यवहार से तात्पर्य उन अनुक्रियाओं से है जो ज्ञात उत्तेजकों (Known Stimulus) के कारण होती हैं या उनसे प्राप्त की जा सकती हैं वे उद्दीपन प्रसूत व्यवहार या क्रियायें कहलाती हैं।

(2) क्रिया-प्रसूत व्यवहार (Operant Behaviour)- इस प्रकार के व्यवहार का सम्बन्ध किसी ज्ञात उत्तेजक के द्वारा होना आवश्यक नहीं होता। इन्हें उत्सर्जन अनुक्रियायें कहा गया है।

ये दोनों प्रकार के व्यवहार अथवा क्रियायें दो प्रकार के अनुबन्धनों से सम्बन्धित होती हैं। इन दो प्रकार के अनुबन्धनों को S और R कहते हैं। प्रबलन और उत्तेजक के सम्बन्ध या अनुबन्धन को ‘S’ कहते हैं। पैवलोव में प्रबलन तथा उत्तेजक का सम्बन्ध ‘S’ प्रकार का ही है। पैवलोव के सिद्धान्त में अनुबन्धित उत्तेजक अर्थात् घंटी का बजाना किसी भी अनुबन्धन रहित अर्थात् भोजन के साथ प्रस्तुत किया गया था तथा जो अनुबन्धन रहित उत्तेजक के गुण अनुक्रिया अर्थात् लार टपकाना को प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार की अनुक्रिया ( लार टपकाना) अनुबन्धित अनुक्रिया कहलाती है। स्किनर ने सीखने में इस ‘S’ प्रकार के सीखने को कम महत्त्व प्रदान किया है।

स्किनर के अनुसार ‘R’ प्रकार का अनुबन्धन अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसे क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन भी कहते हैं। यह क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन या सक्रिय अनुबन्धन प्रबलन अनुक्रिया के साथ सम्बन्धित है न कि उत्तेजक के साथ क्रिया-प्रसूत या सक्रिय अनुबन्धन में प्रमुख तत्त्व यह है कि प्रबलन उस समय तक सम्भव नहीं है जब तक प्रतिक्रिया का उत्सर्जन नहीं होता।

R-प्रकार अर्थात् सक्रिय अनुबन्धन में प्रबलन प्रतिक्रिया या अनुक्रिया के साथ सम्बन्धित होता है, जबकि S प्रकार या पैवलोव के सिद्धान्त में या उद्दीपन प्रस्तुत व्यवहार में प्रबलन उत्तेजक के साथ सम्बन्धित होता है। स्किनर के विचार में जिसे शक्ति प्राप्त होती है वह अनुक्रिया है न कि R-S सम्बन्ध जैसा कि थार्नडाइक के सिद्धान्त में कहा गया है।

Important Links…

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment