संज्ञानात्मक विकास क्या है ? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ
बालक का संज्ञानात्मक विकास जन्म से ही आरम्भ हो जाता है। उसे अपनी शारीरिक आवश्यकताओं एवं प्रणोदनों का संज्ञान होने लगता है। बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया तेज होती है और किशोरावस्था तक आते-आते बालक का संज्ञानात्मक विकास पूर्ण हो जाता है। संज्ञानात्मक विकास पर वंशानुक्रम, वातावरण, व्यवसाय, स्वास्थ्य, यौन भेद, प्रजातीय भिन्नता आदि का प्रभाव पड़ता है। संज्ञानात्मक विकास वास्तव मानसिक विकास से भिन्न है। मानसिक विकास की दृष्टि से संज्ञानात्मक विकास में सहज क्रियायें और मानसिक योग्यतायें निहित होती हैं। इस क्षेत्र में जो भी शोध कार्य हुए मानसिक विकास से ही सम्बन्धित थे, परन्तु जीन पियाजे वह पहला व्यक्ति था जिसने 1920 में संरचनात्मक योग्यता पर कार्य करना प्रारम्भ किया। इसके बाद कुछ कार्य अवश्य हुआ परन्तु 1960 तक जब तक जीन पियाजे का संरचना और प्रकार्यात्मक सिद्धान्त सामने नहीं आया तब तक इस क्षेत्र में अधिक कार्य नहीं हो सका। पियाजे का संज्ञानात्मक विकास की धारणा यह है कि विकास के सभी पक्ष समान क्रम से आगे बढ़ते हैं। विकास की जटिल प्रक्रिया में संज्ञानात्मक विकास प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। संज्ञानात्मक विकास से पूर्व शारीरिक और सामाजिक विकास होता है।
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इस अवधि में बालकों में कल्पना शक्ति एवं चिन्तन शक्ति में वृद्धि होती है। तार्किकता एवं वस्तुनिष्ठता में वृद्धि होती है। बच्चों में मूर्त निरीक्षण योग्य वस्तुओं के सम्बन्ध में तार्किक चिन्तन करने की क्षमता होती है। पियाजे का मत है कि बच्चों में संक्रियाओं को निष्पादित करने, मासिक कार्य करने एवं जगत की पुनर्संगठित करने की योग्यता इस अवधि में आ जाती है। पूर्व संक्रियात्मक अवधि एवं मूर्त संक्रियात्मक अवधि में केवल अन्तर यह होता है कि इस अवधि में वार्तालाप में प्रवीणता आ जाती है और बच्चे में तर्कशक्ति की योग्यता दिखाई देने लगती है। साथ ही बच्चे में इस प्रत्यभिज्ञा का विकास होता है कि वस्तुओं के मूलभूत गुण अपरिवर्तनशील होते हैं भले ही उनके रूप में परिवर्तन होता रहे। बच्चों में प्रतिलोमशीलता के मानसिक संक्रियात्मक योग्यता का विकास इसी अवधि में होता है। इस अवधि में रूपान्तरण (Transformation) की योग्यता का भी विकास होता है। जीन पियाजे का मत है कि इस अवधि में बच्चों में कई तरह की क्षमताओं का विकास देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए संरक्षण (Conservation), अंकीकरण (Numeration), क्रमबद्धता (Serialisation), वर्गीकरण (Classification), और सम्बन्धन (Relationship) की योग्यतायें। इन क्षमताओं में आयु वृद्धि तथा बौद्धिक क्षमता का विशेष स्थान होता है। ब्रायेण्ट और ट्रावेसी का मत है कि इस अवधि में अनुमानपरक तर्क की योग्यता का विकास हो जाता है।
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