शिक्षक-शिक्षा के महाविद्यालयों की अवधारणा प्राचीन समय से भारत में नहीं थी। गुरू अपने शिष्यों से ही योग्य शिष्य को शिक्षक बनाने का कार्य करता था तथा वहीं शिक्षक अन्य छात्रों को शिक्षा प्रदान करता था। समय में परिवर्तन हुआ और शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों तथा महाविद्यालयों का उदय हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारतीय छात्रों के लिये शिक्षको के निर्माण का कार्य इन महाविद्यालयों में प्रारम्भ हो गया। शिक्षण से पूर्व छात्राध्यापको को शिक्षण अभ्यास द्वारा शिक्षण कला में पूर्ण पारंगत बनाया जाता है। इसके बाद शिक्षक को समाज एंव राष्ट्र की सेवा करने के लिये भेजा जाता है।
वर्तमान समय में सेवा से पूर्व प्रशिक्षण देने का कार्य जो कि शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों द्वारा किया जा रहा है। इससे समाज, राष्ट्र एंव छात्रों का सर्वांगीण विकास नही हो पा रहा था। इसलिये विचार किया गया कि इन महाविद्यालयों के कार्य एंव सेवा क्षेत्र को विस्तृत एवं व्यापक बनाया जाए। इन महाविद्यालयों द्वारा शिक्षक प्रशिक्षण के अतिरिक्त सेवाकाल में प्रशिक्षण, सामुदायिक कार्यों के विकास एवं सामाजिक चेतना जैसे क्षेत्रों में भी कार्य किया जायें। इस विचारधारा ने शिक्षक-शिक्षा महाविद्यालयों साथ व्यापकार्य तथा व्यापक शब्द जोड़ दिया। शिक्षक-शिक्षा महाविद्यालयों में व्यापकता का समावेश वर्तमान युग की अनिवार्य माँग है। इस प्रकार शिक्षक-शिखा के व्यापकार्य महाविद्यालयों की अवधारणा का उदय हुआ।
शिक्षक-शिक्षा के व्यापकार्य महाविद्यालय के अर्थ पर विचार किया जाये तो यह तथ्य सामने आता है कि व्यापकार्य शब्द महाविद्यालय के कार्यक्षेत्र को सम्पूर्ण शिक्षा के लिये बनाना चाहता है। इन महाविद्यालयो का कार्यक्षेत्र सेवापूर्व शिक्षक प्रशिक्षण तक ही न रहे वरन् इनके द्वारा सेवाकाल में प्रशिक्षण प्रदान किया जायें। इस प्रकार व्यापकार्य का सम्बन्ध महाविद्यालय के कार्यक्षेत्र में विस्तार करने में किया जाता है। इसे विद्वानों ने अपने शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया है।
प्रो.एस.के.दुबे के शब्दों में, “शिक्षक-शिक्षा के व्यापक महाविद्यालयों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध इनके कार्यक्षेत्र स है, जो कि प्राचीन समय की तुलना में वर्तमान समय में समाज, राष्ट्र एवं छात्रों की आकांशा की पूर्ति हेतु विस्तृत होनी चाहिये।”
श्रीमति आर. के. शर्मा के अनुसार, “शिक्षक-शिक्षा में व्यापक महाविद्यालयों की अवधारणा इनके कार्य क्षेत्र एंव विकास क्षेत्र के विस्तार की और संकेत है, जो कि वर्तमान समाज, राष्ट्र एवं छात्रों की माँग है।”
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षक-शिक्षा महाविद्यालयों को अपने कार्यों की इतिश्री सेवा पूर्व प्रशिक्षण प्रदान करने में ही नहीं समझनी चाहिये, बल्कि सेवा पूर्व प्रशिक्षण तो मात्र उनका प्रारम्भ है आगे का कार्य तो उनको करना है। इसीलिए वर्तमान शिक्षण व्यवस्था की माँग एवं राष्ट्र की उत्तम शिक्षक प्रणाली का इन महाविद्यालयों का महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिए।
शिक्षक-शिक्षा के व्यापकार्य महाविद्यालय के उद्देश्य ( Aims of Compre hensive of Teacher Eduation )
किसी भी नवीन तथ्यों के उद के पीछे अनेक कारण होते है जो उसकी आवश्यकता एवं महत्व को प्रदर्शित करते है। शिक्षक-शिक्षा में व्यापक महाविद्यालय की आवधारणा के उदय के पीछे महत्वपूर्ण उद्देश्यों का निर्धारण रहा है। इसके विस्तृत उद्देश्य ही महाविद्यालय के उदय का कारण है, जो कि शिक्षा व्यवस्था को एक नवीन दिशा प्रदान करते है। व्यापक महाविद्यालय के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है-
(1) सेवारत् प्रशिक्षण (Indervice Training )
इन महाविद्यालयों को सेवा पूर्वं प्रशिक्षण के साथ-साथ सेवारत् प्रशिक्षण सम्बन्धी क्रियाओं को भी अपनाना चाहिये। एक बार प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद छात्राध्यापक उस समय एवं परिस्थितियों के लिये योग्य शिक्षक बन जाता है। धीरे-धीरे समाज एवं राष्ट्र की माँगों में परिवर्तन होने के कारण उसे प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, जो कि उसके सेवाकाल में ही उसे प्राप्त होगा अन्यथा शिक्षक पुरानी शिक्षण विधियों से शिक्षण कार्य करते रहेंगे, जिससे शिक्षण की प्रभावशीलता पर विपरीत प्रभाव होगा।
(2) शिक्षण विधियों में सुधार ( Reform in Teaching Methods )
शिक्षण विधियों में परिस्थिति एंव विकास के आधार पर अनेक परिवर्तन होते हैं। इन परिवर्तनों का ज्ञान समय-समय पर इन महाविद्यालयों में कार्यशाला एंव गोष्ठी आयोजित करके शिक्षकों को प्रदान किया जाना चाहिये। इस प्रक्रिया से शिक्षक एंव शिक्षार्थी दोनों को नवीन शिक्षण विधियों का लाभ प्राप्त होगा अन्यथा शिक्षक पुरानी शिक्षण विधियों से शिक्षण कार्य करते रहेंगे, जिससे शिक्षण की प्रभावशीलता पर विपरीत प्रभाव होगा।
(3) शैक्षिक स्त्रोतो का ज्ञान ( Knowledge of Education Sources )
शिक्षक को समय-समय पर शैक्षिक व्यवस्था एंव विद्यालय का सहयोग करने वाले सामुदायिक स्त्रोतों का ज्ञान प्रदान करना तथा शिक्षक में उनके उपयोग की क्षमता का विकास करना व्यापक महाविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य है। इस प्रकार महाविद्यालय द्वारा यह कार्य प्रशिक्षण के समय भी किया जायेगा। इसके बाद भी सेमिनार आदि के माध्यम से किया जायेंगा।
(4) शैक्षिक नवाचारों का प्रयोग ( Use of Education Innovation )
शिक्षक-शिक्षा में अनेक प्रकार के नवाचारों के प्रयोग को सम्भव बनाने में इन महाविद्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जो शिक्षक शैक्षिक नवाचारो के ज्ञान से प्रशिक्षण के समय वंचित रह गये हो उन्हें सेवारत् प्रशिक्षण के माध्यम से नवाचारों का ज्ञान देना तथा उनके प्रयोग की प्रक्रिया को समझाना इनका प्रमुख उद्देश्य है।
(5) पाठ्यक्रम विकास ( Curriculum Development)
पाठ्यक्रम विकास में शिक्षको की सहभागिता को निश्चित करना है क्योंकि शिक्षकों के सुझाव एवं उनके विचारों का संज्ञान में लिये बिना कोई पाठ्यक्रम पूर्ण नही माना जाता है। अतः इसका प्रमुख उद्देश्य पाठयक्रम निमार्ण एंव क्रियान्वयन में शिक्षकों को योग्य बनाना है। इसके लिये उनके विचारों को समय-समय पर गोष्ठियों के माध्यम से जाना जा सकता है।
(6) मूल्यांकन तकनीकी में नवीनता (Freshness in Education Technology)
मूल्यांकन प्रणाली में अनेक प्रकार के नवीन तथ्यों का समावेश होता है, जिनके ज्ञान से शिक्षक वंचित रह जो है। इन महाविद्यालयों का यह दायित्व बनता है कि सेवारत् शिक्षकों को मूल्यांकन की नवीन तकनीक से परिचित करायें, जैसे वर्तमान समय में परीक्षाओं में मौखिक परीक्षा एवं लिखित परीक्षा होती है लिखित परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ, रिक्त स्थान पूर्ति, बहुविकल्पीय प्रश्न लघु उत्तरीय, अतिलघु उत्तरीय एंव निबन्धात्मक प्रश्न होते है। इन प्रश्नो के निर्माण एंव स्वरूप का ज्ञान एक शिक्षक को अनिवार्य रूप से होना चाहिये।
(7) प्रभावी शिक्षण ( Effective Teaching )
प्रभावी शिक्षण के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षण व्यवस्था में नवीन ज्ञान एंव शिक्षण विधियो का प्रयोग किया जाये, जिससे कि छात्र शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में रूचि ले सकें। प्रभावी शिक्षण को सामान्य रूप से सभी विद्यालयों में क्रियान्वित करना इन महाविद्यालयों का उद्देश्य है, जिससे यह शिक्षकों को समय पर सूचनाएँ प्रदान करके पूर्ण करने का प्रयास करते है। जैसे मासिक पत्रिका के माध्यम से नवीन शिक्षण विधियों एंव शिक्षण सहायक सामग्री का ज्ञान प्रदान करना ।
( 8 ) शिक्षण में नवीनता (Freshness Teaching)
शिक्षण कार्य को किसी एक विधि एवं एक ही प्रक्रिया के रूप में सम्पन्न करने से शिक्षण में नवीनता नही रहती है। छात्र भी इस प्रकार की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में रूचि नही लेते है। इसके लिये यह आवश्यक है कि शिक्षकों को शिक्षण में प्रयुक्त उपकरण एवं नवीन शिक्षण कलाओं का ज्ञान प्रदान करने से शिक्षण में नवीनता आ जाती है यह सम्पूर्ण कार्य शिक्षक-शिक्षा के व्यापक दृष्टिकोण वाले महाविद्यालयों को करना चाहिये। इस प्रकार शिक्षण में नवीनता लाना इन महाविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य है।
(9) विषय वस्तु ज्ञान में वृद्धि (Increment in Subject Matter Knowledge )
विषय-वस्तु सम्बन्धी ज्ञान को नवीन एंव उसमें वृद्धि करना इन महाविद्यालयों के लिये निर्धारित उद्देश्य है। शिक्षक जिसे विषय का शिक्षण कर रहा है उसके पाठ्यक्रम में समय एंव परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होते है। इन परिर्वतनों के बारे में शिक्षकों को सूचना प्रदान करना तथा इनके लिये शिक्षण विधि एंव शिक्षण सहायक सामग्री के प्रयोग का सुझाव देना इन महाविद्यालयों का प्रमुख उद्देश्य है। इस प्रक्रिया से शिक्षकों के विषय-वस्तु सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि होगी।
(10) शिक्षण समस्याओं का समाधान (Solution of Teaching problems )
इन महाविद्यालयों का सबसे प्रमुख उद्देश्य शिक्षण समस्याओं का समाधान करना है। सैद्धान्तिक एवं प्रयोगिक जगत में अन्तर होता है। जब शिक्षक अनवरत रूप से शिक्षण कार्य करता है तो उसमें अनेक प्रकार की समस्याएँ जन्म लेती है, जो कि शिक्षण समस्याओं के नाम से जानी जाती है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिये कार्यशाला एवं लघु प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना द्वारा उनकी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिये।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक-शिक्षा के व्यापकार्य महाविद्यालयों के लिये जो उद्देश्यो का निर्धारण किया गया है, वह अधिक विस्तृत एवं व्यापक है। इसलिये यह आवश्यक है कि इन महाविद्यालयों को प्रभावी बनाया जायें तथा इनको अधिक अनुदान राशि प्रदान की जायें। शिक्षकों को नवीन तकनीकी एंव ज्ञान प्रदान किया जायें, जिससे कि प्राथमिक स्तर के शिक्षक एंव माध्यमिक स्तर के शिक्षकों की समस्याओं एंव जिज्ञासाओं को शान्त कर सकें।
शिक्षक-शिक्षा के व्यापकार्य महाविद्यालय की आवश्यकता (Need of com prehensive College of Teacher Education )
शिक्षक-शिक्षा के क्षेत्र में इन महाविद्यालयों की आवश्यकता क्यों हुई? इस संदर्भ में विचार किया जायें तो इसकी पृष्ठिभूमि में परिवर्तन ही प्रमुख कारण माना जाता है। शैक्षिक जगत में होने वाले परिवर्तन तथा वैश्वीकरण की प्रवृत्ति में इन विद्यालयों के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाने पर प्रमुख रूप से बल दिया। व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता को निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है-
( 1 ) समाज में परिवर्तन ( Changing in Society )
समाज में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का शिक्षा व्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव शिक्षण प्रशिक्षण संस्थाओं पर भी अनिवार्य रूप से पड़ता है। समाज की जिस प्रकार अपेक्षाएँ शिक्षा एंव शिक्षालय से होगी उसके अनुरूप ही शिक्षक को प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा। वर्तमान समय में समाज की व्यापक मांगों एंव अपेक्षाओ ने व्यापकार्य महाविद्यालयों के दृष्टिकोण को विकसित किया है, जिससे इस प्रकार के दृष्टिकोण से युक्त प्रशिक्षण महाविद्यालय की आवश्यकता अनुभव हुई है।
(2) शिक्षण विधियों में परिवर्तन (Changing in Teaching Method)
शिक्षण विधियों में होने वाले परिवर्तनो का ज्ञान एक सामान्य शिक्षक को नही हो पाता है जैसे प्रशिक्षण के समय किसी छात्राध्यापक के व्याख्यान विधि से शिक्षण कार्य करना सीखा है शिक्षक बनने के पश्चात् शिक्षण विधियो की श्रृंखला में समस्या समाधान विधि जुड़ जाती है तो उसके प्रयोग एवं प्रक्रियाओं को समझने के लिये उसको पुनः प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी जो कि व्यापकार्य महाविद्यालयों द्वारा पूर्ण की जा सकती है। अतः शिक्षण विधियों में होने वाला परिवर्तन व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता को अनुभव करता है।
(3) शैक्षिक अनुसंधान ( Education Research )
शिक्षा जगत में होने वाले अनुसंधान नवीन नियम एंव सिद्धान्तों को प्रस्तुत करते है, जिसका ज्ञान शिक्षकों तक पहुँचाने का कार्य व्यापक कार्य महाविद्यालयों द्वारा ही सम्भव है। शिक्षक-शिक्षा से सम्बन्धित शोधकार्य की कार्यशाला, शोधपत्रिका एंव लघु प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षकों तक पहुचाया जा सकता है। इस प्रकार यह अनुभव किया गया कि शिक्षकों में शिक्षा के नवीन शोध-कार्यो के परिणाम पहुँचाने के लिये व्यापकार्य महाविद्यालय आवश्यक है।
(4) पाठ्यक्रम में परिवर्तन ( Changing in Curriculum)
पाठ्यक्रम में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता को अनुभव करता है। पाठ्यक्रम में परिवर्तन होने से उसकी शिक्षण विधि, सिद्धान्त एंव नियमों में परिवर्तन हो जाता है। इसका ज्ञान शिक्षक को सेवारत् होने के कारण नहीं हो पाता है। इसके लिये शिक्षक को इन महाविद्यालयों द्वारा समय-समय पर लघु प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिये। इस प्रकार पाठ्यक्रम के परिवर्तन की सूचना सामान्य रूप से शिक्षको के कारण व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता अनुभव की गयी।
(5) शिक्षण अधिगम सामग्री में परिवर्तन ( Changing in Teaching Learn ing Material )
शिक्षण अधिगम सामग्री में होने वाले परिवर्तन एंव प्रयोग के दृष्टिकोण से भी व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता अनुभव की गयी। इन महाविद्यालयों का प्रमुख कार्य सेवारत् शिक्षकों को नवीन शिक्षण अधिगम सामग्री का ज्ञान कराना तथा उसके प्रभावी प्रयोग से परिचित कराना है। शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों के व्यापक दृष्टिकोण के अभाव में शिक्षण अधिगम सामग्री के ज्ञान एवं प्रयोग दोनों से ही वंचित रहना पड़ेगा।
(6) शिक्षा में तकनीकी का प्रयोग ( Use of Technology in Education )
शिक्षण में तकनीकी के प्रयोग के कारण भी व्यापकार्थ महाविद्यालयो की आवश्यकता अनुभव की गयी हैं। तकनीकी के प्रयोग से अनेक नवीन अवधारणाएँ एवं सिद्धान्तों का प्रयोग शिक्षण प्रक्रिया में किया जाता है, जैसे ओवर हैड़ प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, सहायक अनुदेशन एंव फिल्म स्क्रिप्ट्स आदि का प्रयोग इस प्रकार के तथ्य है, जिनमें परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन को शिक्षकों तक पहुँचाने का दायित्व इन महाविद्यालयों का ही बनता है।
(7) दृष्टिकोण में परिवर्तन (Changing in Attitude )
वर्तमान युग में अभिभावक एंव छात्रों के दृष्टिकोण मे व्यापक परिवर्तन आया है। प्रत्येक अभिभावक अपने बालक का सर्वांगीण विकास करना चाहता है, जिसका दायित्व शिक्षक पर ही होता है। शिक्षक को छात्रों का सर्वांगीण विकास करने के लिये नवीनतम शैक्षिक सूचनाओं का ज्ञान होना परम आवश्यक है। इस कार्य के लिये व्यापकार्य महाविद्यालियों की आवश्यकता अनुभव की गयी।
( 8 ) शैक्षिक उद्देश्यों में परिवर्तन ( Changing in Educational Aims )
वर्तमान समय में शैक्षिक उद्देश्यों में परिवर्तन होने के कारण व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता अनुभव की गयी है। प्राचीन समय में शिक्षा का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना था। वर्तमान समय में शिक्षा उद्देश्य आध्यात्मिक विकास के साथ उपयोगिता एंव प्रयोगवादी विचारधारा से सम्बन्धित है। इसलिये व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा। इन महाविद्यालयों से अपेक्षा की गयी कि यह आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास का समन्वित रूप शिक्षकों के समक्ष प्रस्तुत करें।
( 9 ) शिक्षण व्यवस्था में परितर्वन ( Changing in Teaching )
वर्तमान समय में शिक्षण प्रक्रिया पूर्णत: परिवर्तित हो चुकी है। इसमें किसी एक विधि एवं एक प्रविधि का प्रयोग नही होता है। छात्रों में मानसिक स्तर के अनुसार शिक्षण अधिगम सामग्री एंव विधियों का स्वरूप निश्चित किया जाता है। अतः सेवारत् शिक्षकों को समय-समय पर निर्देशन एंव परामर्श की आवश्यकता होती है। इसके लिये व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता अनुभव की गयी, जिससे कि शिक्षकों को उचित निर्देशन एंव परामर्श प्राप्त हो सकें।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षक-शिक्षा के व्यापकार्य महाविद्यालयों की आवश्यकता वर्तमान युग में शिक्षा व्यवस्था एंव सामाजिक परितर्वन के फलस्वरूप है। समाज एवं शिक्षक शिक्षा की समस्याओं का समाधान व्यापकार्य महाविद्यालयों द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है। अतः वर्तमान शिक्षक शिक्षा को इस प्रकार के महाविद्यालय की परमावश्यकता है।
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