आतंकवाद के कारण और निवारण पर निबंध
आतंकवाद का अर्थ
आतंकवाद पूर्णतया अनर्थकारी होते हुए भी अर्थ से भारी कद का है, जिसे क्षेत्रवाद, जातिवाद, मजहबवाद और सम्प्रदायवाद का बड़ा भाई कहा जा सकता है। तात्पर्य यह है कि इन सभी वादों का वीभत्स रूप आतंकवाद है। वस्तुतः आतंकवाद एक ऐसी पशु-प्रवृत्ति है, जिसकी न कोई जाति है, न धर्म है, न समाज और न ही कोई राष्ट्र है। यह तो विघटनकारी तत्त्वों द्वारा स्वार्थान्ध होकर किया गया सामूहिक हिंसात्मक प्रयास है, जिसमें राष्ट्रद्रोह के प्रति राग और देशभक्ति के प्रति द्वेषभाव मुख्य रूप से रहता है।
आतंकवाद के कारण और उद्देश्य
अर्थ के अन्तर्गत प्रस्तुत आतंकवाद के स्वरूप के आधार पर इसके कारण और उद्देश्य स्पष्ट होते हैं। आतंकवादी व्यक्ति मात्र एक माध्यम होता है। उसके हाथ और हथियार किसी दूसरे के होते हैं। आतंकवादी तो लक्ष्यहीन होता है। उसे दिशा भी दूसरा व्यक्ति ही बताता है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रगति की दौड़ में प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे के प्रगति पथ पर पत्थर रखना चाहता है। आतंकवाद भी एक पत्थर ही है जो जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र आदि को माध्यम बनाकर प्रगति पथ पर गतिरोधक बनाकर रखा जाता है। गतिरोधक पूरे देश में अस्थिरता पैदा कर देता है, जिसके पीछे एक घृणित और कुत्सित महत्त्वाकांक्षा होती है।
भारत में आतंकवाद
आतंकवाद की आग से सर्वाधिक पीड़ित देश भारत है। हालत यहाँ तक आ पहुँची है कि 13 दिसम्बर, 2001 को हमारी संसद पर भी हमला हुआ। इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई० एस० आई० के हाथ होने की पुष्टि हुई है। ऐसा ही हमला जम्मू-कश्मीर विधान सभा पर भी हो चुका है। हमारे भारत में आतंकवाद का सिर दिनों-दिन उठता ही जा रहा है। पंजाब और असम इस संत्रास से कुछ समय पहले ही बाहर आये हैं। कश्मीर की स्थिति ऐसी है कि वह अपनी व्यथा कथा को सुना नहीं पा रहा है, क्योंकि उसके मुँह पर मात्र अपने देश के देशद्रोहियों के हाथ नहीं हैं, अपितु कई विदेशी देशों के भी हाथ हैं। आतंकवाद की लगी आग में वर्षों से जल रहे पंजाब की पीड़ा अभी शान्त भी नहीं हुई थी कि भारत का एक कोना कश्मीर कराह उठा और कहने लगा कि मुझ पर मेरे अपनों के ही खंजर भोंके जा रहे हैं। उस दिन तो कश्मीर के मुँह पर कालिख ही वहाँ के कुछ आतंकवादियों ने पोत दी, जब उन लोगों ने केन्द्रीय गृहमंत्री की युवा अविवाहिता पुत्री का अपहरण कर उसकी रिहाई के बदले उन कैदी आतंकवादियों को रिहा करा लिया, जो अपने मुँह की कालिख कश्मीर के कपोल पर पोतने का प्रयास कर रहे थे। आज भी ऐसे कुछ कश्मीरी कुपुत्र हैं, जो खाते यहाँ का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं। अपनी माँ को दूसरे के हाथों सौंपने की बात करने वाले कुपुत्रों को कश्मीर कभी माफ नहीं कर सकता। असम आज भी बोडो आन्दोलन की आग में झुलस रहा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत में आतंकवाद दिनों-दिन पूरे जोर से आगे बढ़ रहा है।
आतंकवाद के अन्त का उपाय
आतंकवाद के अन्त के लिए हमें युद्धस्तर पर जूझना पड़ेगा। आज सद्भावना के प्रसार की आवश्यकता है। युवा पीढ़ी, जो भटकाव के रास्ते पर है, उन्हें विश्वास में लिया जाय और उनमें देशभक्ति की भावना का प्रचार-प्रसार किया जाय। आतंकवादियों से किसी प्रकार का समझौता राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा। उन्हें देश-द्रोह के आरोप में मृत्युदण्ड दे दिया जाना चाहिए। प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त बनाया जाय और समुचित अधिकार दिये जायें, जिससे वे हर परिस्थिति में स्वयं निर्णय ले सकें। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रों के विरुद्ध संघर्ष किया जाय और उनकी निन्दा हो। आतंकवाद के आश्रयदाता पर भी देशद्रोह का आरोप लगाकर कड़ी सजा दी जानी चाहिए। भारत यदि यह समझता है कि राजनीतिक स्तर पर आतंकवाद की समस्या का समाधान है, तो उसे इसके लिए आगे बढ़ना चाहिए; लेकिन यह आवश्यक है कि समझौता ‘सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं’ के सिद्धान्त से प्रेरित हो। ऐसा समझौता कठिन हो सकता है, किन्तु असम्भव नहीं।
उपसंहार
आतंकवाद और भारत क्रमशः मृत्यु और जीवन जैसे एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। अतः प्रत्येक जनता का उत्तरदायित्व है कि वह इसको समाप्त करने के लिए अन्त तक संघर्ष करे। किसी देश में अशान्ति और आतंक फैलाना उस देश में अस्थिरता की आग फैलाना है। इससे शत्रुओं को तो बल मिलता ही है, धन-जन की बहुत हानि होती है। प्रगतिवादी योजनाओं की प्रगति के पाँव रुक जाते हैं। प्रशासन का पूरा समय आतंकवाद से निपटने में लग जाता है। अतः यदि हम चाहते हैं कि हम और हमारा भारत शान्तिमय रहे, अहिंसा के पथ पर चले और अन्य बड़े देश की भाँति प्रगति के पथ पर चले, तो भारत के जन-जन का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि वे आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाएँ।
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