कवि सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
कोमल एवं सुकुमार भावनाओं के कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म कूर्मांचल प्रदेश के अल्मोड़ा जिलान्तर्गत कौसानी ग्राम में सन् 1900 ई० में हुआ था। जन्म के कुछ घण्टों के बाद ही इनकी माँ का निधन हो गया। इनके पिता का नाम गंगादत्त पन्त था। प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण कर 1919 में प्रयाग के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में अध्ययन के लिए प्रवेश किया; किन्तु गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर विद्यालय छोड़ दिया।
पन्त जी ने इलाहाबाद से निकलने वाली प्रगतिशील विचारों की पत्रिका ‘रूपाभ’ का कुशल सम्पादन किया। अनेक वर्षों तक आप आकाशवाणी में उच्च पद पर आसीन रहे। अविवाहित रहकर पन्त जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भारती के चरणों में समर्पित कर दिया। कविता में आपकी रुचि बाल्यकाल से ही थी। पन्त जी को ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी, ‘लोकायतन’ पर सोवियत लैंड नेहरू और ‘चिदम्बरा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। माँ भारती का यह सपूत 21 दिसम्बर, 1977 को सदैव के लिए विदा हो गया।
सुमित्रानन्दन पन्त जी की प्रमुख रचनाएँ
पन्त जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। अपने विस्तृत साहित्यिक जीवन में उन्होंने विविध विधाओं में साहित्य-रचना की। उनकी प्रमुख कृतियों का विवरण इस प्रकार है-
( 1 ) लोकायतन-इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है। इस महाकाव्य में कवि ने ग्राम्य-जीवन और जनभावना को छन्दोबद्ध किया है।
( 2 ) वीणा-इसमें पन्त जी के प्रारम्भिक गीत संग्रहीत हैं। इसमें प्रकृति के अलौकिक सौन्दर्य के दृश्य देखने को मिलते हैं।
( 3 ) पल्लव-इस संग्रह में प्रेम, प्रकृति और सौन्दर्य के व्यापक चित्र प्रस्तुत किये गये हैं।
( 4 ) गुंजन – इसमें प्रकृति प्रेम और सौन्दर्य से सम्बन्धित कवि की गम्भीर एवं प्रौढ़ रचनाएँ संकलित हुई हैं।
( 5 ) ग्रन्थि – इस काव्य-संग्रह का स्वर प्रमुख रूप से मुखर हुआ है। प्रकृति यहाँ भी कवि की सहचरी है।
अन्य कृतियाँ- ‘स्वर्णधूलि’, ‘स्वर्ण-किरण’, ‘युगपथ’, ‘उत्तरा’, ‘अंतिमा’ में पन्त जी अरविन्द के नवचेतनावाद से प्रभावित हैं।
‘युगान्त’, ‘युगवाणी’ और ‘ग्राम्या’ में कवि समाजवादी और भौतिक दर्शन की ओर उन्मुख हुआ है। इन रचनाओं में कवि ने दीन-हीन और शोषित वर्ग को अपने काव्य का आधार बनाया है।
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