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सतत और व्यापक मूल्यांकन, विशेषताएँ, आधार, लाभ, भ्रांतियाँ

सतत और व्यापक मूल्यांकन
सतत और व्यापक मूल्यांकन

सतत और व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)

सतत और व्यापक मूल्यांकन- सामान्य रूप से विभिन्न लोग इस तथ्य से सहमत हैं कि अधिगम एक समय की प्रक्रिया नहीं है। यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। क्योंकि शिक्षण-अधिगम एक सतत् प्रक्रिया है, अत: हमारा आंकलन और मूल्यांकन भी एक सतत् प्रक्रिया होनी चाहिए न कि एक समय का कार्यक्रम। इसके अतिरिक्त ऐसे मूल्यांकन पर बल देना चाहिए जो शिक्षण-अधिगम के चलते हुए किया जाय, अर्थात् यह इसका अभिन्न अंग होना चाहिए। इस प्रकार का मूल्यांकन सतत् और व्यापक मूल्यांकन (C.C.E.) के नाम से जाना जाता है। सतत् और व्यापक मूल्यांकन योजना विद्यार्थियों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन को इंगित करती है, जिसमें विद्यार्थी विकास के सभी पक्षं आ जाते हैं। पद ‘सतत्’ प्रक्रिया है, अतः, मूल्यांकन को पूर्ण रूप से शिक्षण और अधिगम को एक साथ समन्वित होना चाहिए। विद्यार्थियों के अधिगम की प्रक्रिया का निरन्तर और बारम्बार मूल्यांकन होना चाहिए अर्थात् शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया की अवधि में। सतत् का अर्थ अधिगम की कमियों का नियमित परीक्षण और विश्लेषण भी है तथा सुधारात्मक उपायों को लागू करना, और अध्यापकों तथा विद्यार्थियों को उनका स्वयं का मूल्यांकन आदि करने के लिए पुन: परीक्षण और प्रतिपुष्टि करना है। अतः सतत् मूल्यांकन, बालक क्या जानता है, क्या नहीं जानता है, अधिगम परिस्थिति में क्या कठिनाइयाँ अनुभव करता है और अधिगम में उसकी क्या प्रगति है, जो शिक्षा का उद्देश्य है को समझने का नियमित अवसर प्रदान करता है । सार रूप में, सतत् मूल्यांकन विद्यार्थियों में सुधारात्मक प्रक्रियाओं और शिक्षण में सुधार के माध्यम से प्रतिपुष्टि प्रदान करता है ताकि उनकी उपलब्धि और प्रवीणता के स्तर में सुधार किया जा सके।

‘व्यापक’ शब्द शैक्षिक और सह-शैक्षिक दोनों क्षेत्रों में विद्यार्थियों के विकास को इंगित करता है। विद्यालय का प्रकार्य केवल संज्ञानात्मक योग्यताओं का निर्माण करना मात्र नहीं है वरन् असंज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास करना भी है। शैक्षिक क्षेत्र में विषय से सम्बन्धित छात्र की समझ और ज्ञान तथा अपरिचित स्थिति में उसके आरोपण की योग्यता सम्मिलित है। सह शैक्षिक या अशैक्षिक क्षेत्र का छात्र से सम्बन्धित मनोवृत्ति, रुचि, व्यक्तिगत व सामाजिक विशेषताओं और दैहिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित वांछित व्यवहार सम्मिलित है। शैक्षिक क्षेत्र का सम्बन्ध बौद्धिक विकास से है, जबकि सह शैक्षिक क्षेत्र में भौतिक विकास, से है, जबकि सह शैक्षिक क्षेत्र में भौतिक विकास सामाजिक व्यक्तिगत विशेषताओं का प्रसार, रुचियाँ, मनोवृत्तियाँ, मूल्य आदि वांछित है। विद्यार्थियों के विकास के सभी पक्षों का मूल्यांकन करने के लिए मूल्यांकन की बहुविध तकनीकियों को प्रयोग करने की आवश्यकता होती है सतत् और व्यापक मूल्यांकन में बहुविध तकनीकियों का एक संघ और भिन्न लोग जैसे अध्यापक, विद्यार्थी, अभिभावक और समाज आदि सम्मिलित होते हैं।

विद्यालयों में एक प्रभावी और नियमित रूप से सतत् और व्यापक मूल्यांकन को लागू करने की आवश्यकता को एक लम्बे समय से अनुभव किया जा रहा है। सतत् और व्यापक मूल्यांकन को स्कूल शिक्षा के सभी स्तरों पर संस्थागत करने की आवश्यकता है। वर्तमान व्यवस्था में बोर्डों द्वारा मूल्यांकन और स्कूल आधारित आंकलन को जो महत्व दिया जाता है उसे हमें पीछे छोड़ना होगा। अब यह परिदृश्य परिवर्तित हो रहा है। अनेक स्कूल और बोर्ड अब CCE के महत्त्व पर जोर दे रहे हैं तथा राज्यों को शिक्षा विभाग के सहयोग से इसे स्कूलों में लागू करने के उपाय कर रहे हैं। सतत् और व्यापक मूल्यांकन को बोर्ड के मूल्यांकन के विकल्प के रूप में न देखकर उसके पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए।

कक्षा में मूल्यांकन का उद्देश्य (Purpose of Classroom Evaluation)

सामान्य परीक्षण और विशेष रूप से अन्य मूल्यांकन विधियाँ कक्षा में शिक्षण में अपनी प्रकार्यात्मक भूमिका के सन्दर्भ में वर्गीकृत किए जा सकते हैं। मूल्यांकन प्रक्रिया की प्रकार्यात्मक भूमिका भली प्रकार से परिभाषित क्रम के एक संघ का पालन करती है। इस क्रम के आधार पर मूल्यांकन प्रक्रिया का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

(i) स्थानन मूल्यांकन (Placement Evaluation)- शिक्षण के प्रारम्भ में छात्रों के निष्पादन का निर्धारण करने के लिए जिस मूल्यांकन का प्रयोग किया जाता है उसे ‘स्थानन मूल्यांकन’ कहते हैं। इसका सम्बन्ध विद्यार्थी के प्रवेश निष्पादनों से होता है, अर्थात् क्या छात्र उस कक्षा में प्रवेश के योग्य है या नहीं। इस उद्देश्य के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीक का प्रयोग किया जाता है जैसे तत्परता परीक्षण, अभिवृत्ति परीक्षण, आत्म-प्रतिवेदन, प्रश्नावलियाँ, अवलोकनात्मक तकनीक या प्रवेश परीक्षा का प्रयोग किया जाता है।

(ii) संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation)- शिक्षण की अवधि में अधिगम की प्रगति को मोनीटर करने के लिए जिस मूल्यांकन का प्रयोग होता है वह संरचनात्मक मूल्यांकन कहलाता है इसका उद्देश्य विद्यार्थी और अध्यापक दोनों को अधिगम की सफलता और असफलता के सम्बन्ध में निरन्तर प्रतिपुष्टि प्रदान करना है। प्रतिपुष्टि विद्यार्थियों के सफल अधिगम को पुनर्बलन प्रदान करती है और अधिगम की विशेष त्रुटियाँ पहचानती है जिन्हें सुधारने की आवश्यकता होती है। प्रतिपुष्टि अध्यापक को अध्यापन को सुधारने की सूचना प्रदान करती है तथा समूह और व्यक्तिगत सुधारात्मक कार्य निश्चित करती है।

संरचनात्मक मूल्यांकन के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले परीक्षण अधिकांशतः अध्यापक द्वारा निर्मित परीक्षण होते हैं, लेकिन अन्य एजेन्सियों द्वारा तैयार किए गए परम्परागत परीक्षण भी उद्देश्य की प्रतिपूर्ति करते हैं। विद्यार्थियों की प्रगति की मोनीटरिंग के लिए और अधिगम की त्रुटियों को पहचानने के लिए अवलोकनात्मक तकनीक भी उपयोगी है। क्योंकि संरचनात्मक मूल्यांकन मुख्यतः अधिगम और शिक्षण के सुधार की ओर निर्देशित होते हैं, अतः इसके परिणामों को पाठ्यक्रम में ग्रेड देने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसके लिए योगात्मक मूल्यांकन का प्रयोग किया जा सकता है।

(iii) नैदानिक मूल्यांकन (Diagnostic Evaluation) – यह विशेष रूप से एक विशेषज्ञ प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध लगातार बने रहने वाली अधिगम कठिनाइयों से है। यदि एक विद्यार्थी निरन्तर गणित सीखने में असफल होता है जब अन्य वैकल्पिक विधियाँ भी अपनाई जा चुकी है तब विस्तृत निदान की आवश्यकता होती है। नैदानिक मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य निरन्तर बनी रहने वाली अधिगम की समस्याओं का निर्धारण करना और उसके लिए उपचारात्मक योजना तैयार करना है। उदाहरणार्थ, एक हिन्दी माध्यम का विद्यार्थी, अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश लेता है, वह प्रत्ययों को समझता है पर उन्हें व्यक्त नहीं कर पाता क्योंकि उसे भाषा की कठिनाई है न कि प्रत्यय को समझने की कमी हैं।

(iv) योगात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) – योगात्मक मूल्यांकन प्रायः शिक्षण यूनिट के अन्त में किया जाता है। इसका अभिकल्प अधिगम के निर्देशांकों को किस सीमा तक प्राप्त कर लिया गया है और प्रायः पाठ्यक्रम ग्रेड्स देने के लिए या वांछित अधिगम के को द्वारा पारंगत कर लिया गया का प्रमाण पत्र के लिए किया जाता है। योगात्मक मूल्यांकन प्राय: अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षण द्वारा किया जाता है जिसमें वस्तुगत ओर आत्मगत पेपर पेन्सिल परीक्षण सम्मिलित है। इसमें अन्य विभिन्न घटक सम्मिलित हो सकते हैं जैसे प्रयोगशाला कार्य, प्रोजेक्ट कार्य, साथी का आकलन, खुले सिरे के प्रश्न आदि।

सतत् और व्यापक मूल्यांकन बालक के कक्षा में प्रवेश करने के साथ स्थानन मूल्यांकन से प्रारम्भ होता है और पूरे वर्ष नैदानिक मूल्यांकन और संरचनात्मक मूल्यांकन के साथ चलता है जब तक कि योगात्मक मूल्यांकन शिक्षण योजना के अन्त में न कर लिया जाए।

सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएँ (Characteristics of Continuous and Comprehensive Evaluation)

1. सतत् और व्यापक मूल्यांकन विद्यार्थियों का स्कूल आधारित मूल्यांकन है जिसमें विद्यार्थी के सभी पक्षों को शामिल किया जाता है।

2. सतत् व्यापक मूल्यांकन का सतत् पक्ष मूल्यांकन की निरन्तरता और ‘आवर्तिता’ पर ध्यान देता है।

3. ‘सतत्’ का अर्थ है विद्यार्थियों का शिक्षा के प्रारम्भ में मूल्यांकन और शिक्षण प्रक्रिया की अवधि में मूल्यांकन (संरचनात्मक मूल्यांकन) करना तथा अनौपचारिक रूप में बहुविध’ तकनीकियों का मूल्यांकन के लिए प्रयोग करना।

4. आवर्तिता के प्रत्यय को ऋणात्मक अर्थों में नहीं लेना चाहिए अर्थात् अधिक-से-अधिक परीक्षण देना। यह किसी भी प्रकार से विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिए भार नहीं होना चाहिए।

5. सतत् और व्यापक मूल्यांकन का ‘व्यापक’ घटक बच्चे के व्यक्तित्व के चतुर्मुखी विकास के आंकलन का ध्यान रखता है। इसमें और विद्यार्थियों के विकास के शैक्षिक और सह- शैक्षिक पक्षों का आंकलन सम्मिलित होता है।

6. शैक्षिक क्षेत्र में आंकलन अनौपचारिक और औपचारिक दोनों प्रकार से मूल्यांकन की बहुविध तकनीक का प्रयोग कर निरन्तर और आवर्तिता रूप में किया जाता है। नैदानिक मूल्यांकन यूनिट के अन्त में किया जाता है। खराब निष्पादन का कारण कुछ युनिटों में नैदानिक परीक्षणों प्रयोग द्वारा ज्ञात किया जाता है।

7. सह-पाठ्यचारी क्षेत्र में आंकलन निश्चित कसौटियों के आधार तकनीकियों के प्रयोग द्वारा किया जाता है, जबकि सामाजिक और व्यक्तिगत विशेषताओं का आंकलन व्यवहारपरक सूचकांकों के प्रयोग द्वारा किया जाता है इन्हीं के द्वारा विभिन्न रुचियों मूल्यों और मनोवृत्तियों आदि का भी आंकलन किया जाता है।

सतत् और व्यापक मूल्यांकन का आधार (Basis of Continuous and Comprehensive Evaluation)

1. लिखित परीक्षा (Written Examination)- लिखित परीक्षा में निबन्धात्मक, लघु उत्तरीय और वस्तुगत प्रकार के प्रश्न सम्मिलित होते हैं।

2. बौद्धिक / वाचिक परीक्षण (Mental / Oral Tests) – वाचिक या जबानी परीक्षणों द्वारा उन कौशलों का परीक्षण किया जाता है जो लिखित प्रश्नों द्वारा नहीं हो सकता। इन परीक्षणों में प्रदत्तों को पढ़ने में गति और शुद्धता तथा मानसिक गणना कर उनकी व्याख्या, भाषा की समझ सम्मिलित होता है।

विद्यार्थी द्वारा किया गया सत्रीय कार्य (Sessional Work done by a Student)

लिखित और मौखिक परीक्षणों के अतिरिक्त सत्रीय कार्य का भी आंकलन किया जाना चाहिए। सत्रीय कार्य के आंकलन में निम्नांकित सम्मिलित होते हैं-

1. गृह नियत कार्य ( शोध नियत कार्य/प्रोजेक्ट कार्य)

2. कक्षा कार्य पर चर्चा

3. पुस्तकालय का प्रयोग

4. प्रयोगशाला में किया गया व्यावहारिक कार्य

5. क्राफ्ट वर्क

आंकलन में व्यक्तित्व और चरित्र विकास, शारीरिक विकास आदि भी सम्मिलित होना चाहिए।

सतत् और व्यापक मूल्यांकन के लाभ (Benefits of Continuous and Comprehensive Evaluation)

सतत् और व्यापक मूल्यांकन सीखने वालों का तनाव निम्नांकित द्वारा कम करता है-

1. विषय-वस्तु के छोटे भाग पर नियमित समयान्तर पर सीखने वालों के अधिगम की प्रगति को इंगित करना।

2. विभिन्न विद्यार्थियों की अधिगम आवश्यकताओं और क्षमताओं पर आधारित शिक्षण के विविध सुधारात्मक उपायों का प्रयोग करना।

3. विद्यार्थी के निष्पादन पर ऋणात्मक टिप्पणी करने से रोकना।

4. विविध शिक्षण सहायकों और तकनीकियों के प्रयोग द्वारा अधिगम को प्रोत्साहित करना।

5. अधिगम प्रक्रिया में अधिगमकर्त्ता के क्रियाकलापों को सन्निहित करना।

6. अधिगमकर्ता की विशिष्ट योग्यताओं को पहचानना और प्रोत्साहित करना, जो शैक्षिक में अच्छा नहीं करते, लेकिन सह- शैक्षिक पाठ्यकृत क्षेत्र में अच्छा करते हैं।

सतत् और व्यापक मूल्यांकन के सम्बन्ध में भ्रांतियाँ (Misconceptions about Comprehensive and Continuous Evaluations)

सतत् और व्यापक मूल्यांकन के सम्बन्ध में कुछ भ्रांतियाँ हैं जिन्हें निम्नांकित पंक्तियों में सूचीबद्ध किया गया है तथा उन पर टिप्पणी भी की गई है-

1. सतत् और व्यापक मूल्यांकन अंकों को ग्रेड्स में परिवर्तित करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। वास्तव में CCE बच्चे के सर्वमुखी विकास के सम्बन्ध में है और यह अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा और रटना अधिगम को हतोत्साहित करता है।

2. जिन विद्यार्थियों का सतत् आंकलन होता है वे अनुभव करते हैं किन पर निरन्तर नजर रखी जा रही है और इस अवधि में उनसे जो भी त्रुटियाँ होती हैं वे उनके विपरीत जाती हैं। इससे उनमें तनाव उत्पन्न होता है। इसके विपरीत सतत् और व्यापक मूल्यांकन में यह आशा की जाती है कि किसी भी समय विद्यार्थी यह अनुभव न करे कि वह निगरानी में है। विशेष रूप त्रुटि के प्रति जाने जो उन्होंने की है और उन्हें बताया जाता है कि यह अधिगम के लिए पहला कदम है।

3. अध्यापक यह अनुभव करते हैं कि उन्हें बच्चों के अधिगम का आंकलन करने के लिए रोज कुछ गृह कार्य देना होता है ताकि इससे अध्यापक और विद्यार्थियों दोनों पर तनाव और भार बढ़ता है । कार्य की उपयुक्त रूप से योजना और समन्वय हो इसलिए अध्यापकों द्वारा सतत् और व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता महसूस की जाती है।

4. विद्यार्थी जब घर पर अपने प्रोजेक्ट्स और क्रियाएँ करते हैं तो यह उनके समय की बर्बादी है। जबकि इसके विपरीत यह क्रियाएँ प्रत्ययों की समझ को बढ़ाती हैं।

5. इसमें अधिक परीक्षण और कम अध्यापन होता है। वास्तव में सतत् और व्यापक मूल्यांकन में आंकलन अध्यापन और अधिगम का हिस्सा होता है इसमें परीक्षणों की एक श्रृंखला होती है और न्यूनतम परीक्षाएँ।

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