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स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम | Meaning and Health Science and its general rules in Hindi

स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम
स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम

स्वास्थ्य विज्ञान से क्या मतलब है? इसके सामान्य नियमों का उल्लेख कीजिए।

स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम- स्वास्थ्य विज्ञान अंग्रेजी शब्द Hygiene का रूपान्तरण है। Hygiene शब्द ग्रीक भाषा के शब्द Hygia से बना है, जो कि एक ग्रीक देवी का नाम है।

स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है, जो स्वास्थ्य निर्धारित करने वाले सभी कारकों को समाहित कर स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। समय के साथ-साथ स्वास्थ्य विज्ञान को कई क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है। इनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है

1. जन स्वास्थ्य – जन स्वास्थ्य वह विज्ञान है, जिसके द्वारा जन-सामान्य को बीमारियों से बचाव और दीर्घ तथा स्वस्थ जीवन-यापन हेतु अग्रसरित किया जाता है। इसके लिए समुदाय में उत्तम वातावरण, बीमारियों के कारकों की रोकथाम तथा बेहतर व्यक्तिगत स्वास्थ्य हेतु सतत् प्रयास किये जाते हैं। इन प्रयासों में समुदाय की भागीदारी तथा जागरूकता का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है, इसीलिए वर्तमान समय में जन स्वास्थ्य को सामुदायिक स्वास्थ्य कहा जाने लगा है।

2. निरोधक चिकित्सा- निरोधक चिकित्सा विज्ञान की वह नवीनतम शाखा है, जिसे आजकल काफी प्रोत्साहन मिल रहा है। इस विज्ञान में वे सभी चिकित्सा उपाय सम्मिलित हैं, जिनसे विभिन्न रोग को होने से पहले रोका जा सकता है। इसमें वे सभी दवाएँ इत्यादि सम्मिलित हैं, जो मनुष्य के शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करती हैं। बच्चों में किये जाने वाला टीकाकरण इसका सर्वोत्तम एवं सशक्त उदाहरण है। इतिहास में चेचक के निरोधक टीके के कारण ही चेचक जैसी भयानक बीमारी का विश्वव्यापी समूल विनाश सम्भव हो सका।

3. सामाजिक चिकित्सा- सामाजिक चिकित्सा मानव को समाज के एक ढंग के रूप में देखती है, जो कि इस वातावरण में जीवन निर्वाह करता है। ऐसे सभी सामाजिक पहलू जो विभिन्न बीमारियों के कारक हैं, उनका विवेचन एवं सामाधान इस चिकित्सा विज्ञान में दर्शाया जाता है।

4. सामुदायिक चिकित्सा- वर्तमान में, ऊपर दिये गये स्वास्थ्य के तीनों क्षेत्रों (जन स्वास्थ्य, निरोधक चिकित्सा एवं सामाजिक चिकित्सा) को एक ही दायरे में रखकर नाम दिया गया है— सामुदायिक चिकित्सा। इसके निम्न उद्देश्य हैं

(i) किसी एक व्यक्ति की बीमारी पर केन्द्रित न होकर, उन बीमारियों को प्रमुखता देना, जो समुदाय में बहुत अधिक लोगों में अथवा किसी वर्ग विशेष (जैसे-बच्चे, गर्भवती महिलाएँ आदि) को प्रभावित करती हैं।

(ii) जन-समुदाय की स्वास्थ्य समस्याओं को पहचानना तथा इन पर काबू पाने के लिए योजना एवं लक्ष्य निर्धारण करना।

(iii) एक ऐसे प्रारूप का निर्माण करना, जो जनता की सामान्य स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा कर सके तथा विशेष रूप से निरोधक सेवाएँ प्रदान कर सके।

स्वास्थ्य के सामान्य नियम

मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए कुछ समान्य बातों पर प्रत्येक क्षण विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी साधारण सी गलती भी जानलेवा हो सकती है। इसलिए कुछ सामान्य बातों को अपने संज्ञान में अवश्य रखना चाहिए। जैसे

1. शुद्ध वायु – वायु प्राणदायक है। ऑक्सीजन के बिना मनुष्य तीन मिनट से अधिक जीवित नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त हम प्रत्येक क्षण बाहरी वायु को श्वास द्वारा अन्दर लेते हैं अर्थात् अगर यह वायु दूषित होगी तो उसका प्रदूषण हर क्षण हमारे शरीर में प्रवेश करता रहेगा और एकत्रित होकर कई तरह की बीमारियाँ उत्पन्न कर सकता है। इसलिए शुद्ध वायु परमावश्यक है। अधिक समय तक दूषित वायु के सम्पर्क से गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।

2. शुद्ध व स्वच्छ पेयजल- जल मनुष्य की एक अनिवार्यता है। बिना जल जीवन निर्वाह करना एक दिन के लिए भी दुष्कर है। जल की कमी शरीर में निर्जलीकरण उत्पन्न करती है, जिससे मृत्यु भी सम्भव है। दूसरी ओर समुचित मात्रा में जल के सेवन से शरीर के हानिकारक तत्त्व मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं।

अशुद्ध जल कई बीमारियों का कारक होता है। कई जीवाणु-विषाणु जल में ही पनपते हैं तथा जल के द्वारा ही शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और बीमारियाँ जैसे-हैजा, टायफाइड आदि का संक्रमण फैलाते हैं।

भारत में शुद्ध पेयजल की अत्यधिक समस्या है। आज भी गाँवों में लोग उन कुओं तथा बावड़ियों का पानी पीते हैं, जो सदैव खुले रहते हैं और प्रदूषित रहते हैं। प्रत्येक वर्ष हैजा का प्रकोप हजारों जानें लेता है। बच्चों में मृत्यु का मुख्य कारण भी यह बीमारी है।

3. स्वच्छता- स्वच्छता स्वास्थ्य का पहला चिन्ह है। स्वच्छ शरीर अपने ऊपर रोगाणुओं का हमला नहीं होने देता। इसके लिए परम आवश्यक है कि प्रतिदिन स्नान किया जाये, शौच आदि के पश्चात् हाथों को अच्छी तरह साबुन से साफ किया जाये, स्वच्छ व धुले कपड़े प्रतिदिन धारण किये जायें, अपने अंग जैसे नाखून, दाँत, बाल आदि की नियमित सफाई की जाये।

इसके अतिरिक्त वातावरण की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारा निवास स्थल विशेष रूप से रसोई पूर्ण स्वच्छ होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि घर के आस-पास गन्दगी एकत्रित न हो व साथ-साथ घर व मोहल्ले का कूड़ा निस्तारण भी समयानुसार सही तरीके से होना चाहिए।

4. व्यायाम – प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन थोड़ा व्यायाम करना आवश्यक है। इससे सभी माँसपेशियाँ सुचारु रूप से कार्यरत रहती हैं तथा रक्त संचार सही रहता है। नियमित व्यायाम से वृद्धावस्था में भी मनुष्य निरोगी एवं चुस्त-दुरुस्त रह सकता है तथा अपने सभी कार्य स्वयं ही पूर्ण कर सकता है। व्यायाम व्यक्ति की भूख बढ़ाता है तथा खाये गये भोजन का सर्वोत्तम अंगीकरण करता है।

व्यायाम करते समय विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि जितना हमारा शरीर सामान्यतः वहन कर सकता है, उतना ही व्यायाम करना चाहिए। अत्यधिक व्यायाम हानिकारक हो सकता है। अच्छा होगा कि व्यायाम के विषय में विशेषज्ञ का परामर्श ले लिया जाये कि कब में और कितना व्यायाम करना है अथवा बिल्कुल नहीं करना है। कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे गर्भवती महिलाओं, रक्तचाप के रोगियों व अन्य के लिए यह आवश्यक है।

5. सूर्य की रोशनी – सूर्य की रोशनी में विटामिन ‘डी’ उपलब्ध होती है, जो हमारे शरीर हेतु आवश्यक है व यह कई प्रकार के चर्म रोगों से बचाता है तथा हड्डियों को पुष्ट करता है। सूर्य की गर्मी से आद्रेता समाप्त होती है, जो कि कई प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं को जन्म देने में सहायक होती है। इसलिए मनुष्य को प्रतिदिन कुछ समय धूप का सेवन करना चाहिए, जिससे शरीर की यह साधारण आवश्यकता पूरी हो सके।

6. पर्याप्त पौष्टिक आहार- प्रत्येक व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए आहार की आवश्यकता है। मनुष्य का आहार ऐसा होना चाहिए कि वह शरीर की न्यूनतम पोषण आवश्यकता पूर्ण कर सके।

बच्चों के आहार में दूध का विशेष महत्त्व है। तीन माह से कम आयु के बच्चों के लिए माँ का दूध ही पर्याप्त है। एक वर्ष की आयु के बच्चों में आहार का एक बड़ा भाग माँ तथा गाय-भैंस का दूध होना चाहिए। गर्भवती स्त्रियों के आहार में भी दूध को शामिल अवश्य करना चाहिए। वैसे हर आयु में दूध का सेवन लाभप्रद एवं आवश्यक है।

इसके अतिरिक्त मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी भूख तथा रुचि के अनुसार भरपेट भोजन करे। भूख से कम अथवा अधिक भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। भोजन में दालें, हरी पत्तेदार सब्जियाँ उचित मात्रा में समाहित होनी चाहिए। प्रत्येक भोजन में सभी भोज्य समूह व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकता, क्रियाशीलता के स्तर तथा स्वास्थ्य की स्थिति के अनुरूप अवश्य सम्मिलित किये जाने चाहिए। दैनिक संतुलित आहार तालिका कई जगह उपलब्ध रहती है।

7. निद्रा – सामान्यतः मनुष्य को 6-7 घण्टे की निद्रा की आवश्यकता होती है। मनुष्य को चाहिए कि सोने से पहले अपने मस्तिष्क से सभी परेशानियों को दूर कर आराम की नींद सोये। नींद न आने के कारण शरीर में कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जिनमें हृदय रोग और मनोरोग अत्यधिक घातक सिद्ध हो सकते हैं। सामान्यतः सोने का समय रात्रि का ही है, परन्तु किसी कारणवश रात्रि में नहीं सोया जा सके तो दिन के समय में नींद पूरी करना आवश्यक है। दोपहर के भोजन के बाद हल्का आराम लाभदायक हो सकता है।

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