विद्यालय छात्रावास अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास
विद्यालय छात्रावास (School Hostels)- शालाओं या विद्यालय में छात्रावास का होना अति आवश्यक है। छात्रावास रहित विद्यालय को पूरी तरह विद्यालय कहा ही नहीं जा सकता है क्योंकि वह विद्यालय के मुख्य उद्देश्य सम्पूर्ण व्यक्तित्व के समन्वित विकास को किसी प्रकार पूरा नहीं कर सकता, उसके बिना विद्यालय समाज का लघुरूप बन ही नहीं सकता और न बाह्य दुष्प्रभावों से विद्यार्थी को बचाया जा सकता है। छात्रावास में प्राय: वे ही विद्यार्थी निवास करते हैं जिनके घर विद्यालय से दूर होते हैं या जिनके घर पढ़ने-लिखने की सुविधा से पूर्ण होता है। उसी स्थान को छात्रावास कहते हैं।
विद्यालय छात्रावास का विकास :
(1) छात्रावास की ऐतिहासिक परम्परा-
विद्यालयों से सम्बन्धित छात्रावास रखने की परम्परा अत्यधिक प्राचीन है। प्राचीनकाल में छात्र नगर से दूर शान्त तथा अनुकूल वातावरण में गुरु के साथ आश्रम में रहते थे। उनमें निकट सम्पर्क रहता था और बच्चों का सर्वांगीण विकास गुरु की देख-रेख में होता था।
(2) मध्यकालीन छात्रावास-
मध्यकाल में गुरुकुल के स्थान पर पाठशालाएँ मठों, विहारों, मन्दिरों और मस्जिदों में बनने लगे। इन स्थानों में छात्रावास की व्यवस्था की जाने लगी जहाँ शिक्षक और छात्र साथ-साथ रहते थे तथा अध्ययन करते थे।
(3) वर्तमान युग के छात्रावास-
वर्तमान युग में शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए छात्रावास का प्रयोग किया जा रहा है। जहाँ उनकी देखभाल के लिए एक अध्यापक नियुक्त रहता है। यह व्यवस्था विशेष कर उच्च एवं माध्यमिक विद्यालय में आवश्यक होती है। आश्रम पद्धति में प्रत्येक छात्र को छात्रावास में रहना अति आवश्यक है। वर्तमान में शिक्षा प्रसार तेजी से हो रहा है। अत: कुछ समय से छात्रावासों की परम्परा अधिक दृष्टिगोचर हो रही है। ऐसे विद्यालयों का ग्रामीण क्षेत्र में अधिक प्रसार हो रहा है। नगरों में अधिकांश छात्र अपने माता-पिता के साथ परिवार में रहते हैं। दूसरे शब्दों में आजकल छात्रावासों का जीवन अधिक खर्चीला होता जा रहा है। अत: निर्धन छात्र इस खर्च को उठाने में असमर्थ रहते हैं। इसलिए वे विद्यालय से बाहर मकान किराये पर लेकर अध्ययन करते हैं।
छात्रावास भवन (School Hostel Building)- छात्रावास की आवश्यकता प्राथमिक स्तर तथा मिडिल स्तर पर नहीं होती। यदि विद्यालय का अधिगम स्तर प्रशंसनीय है तो यह स्वाभाविक है कि बाहर के भी अभिभावक ऐसे विद्यालय में अपने बच्चों को अध्ययन के लिए भेजना चाहेंगे। अत: ऐसी स्थिति में विद्यालय के लिए छात्रावास आवश्यक हो जाता है। अत: यह सर्वथा उपयुक्त होगा कि विद्यालय भवन के निर्माण के साथ-साथ छात्रावास पर भी विचार किया जाये।
छात्रों में समूहिक जीवन जीने की कला विकसित करने के लिए छात्रावास उपयुक्त स्थान होता है, यह ऐसा स्थान होता है, जहाँ विद्यार्थी भावी जीवन के लिए सहयोग, सहाचार्य तथा आत्मनिर्भरता का जीवन व्यतीत करने का प्रशिक्षण लेते हैं। इससे उनमें स्वअनुशासन, परस्पर सहयोग, स्वयं निर्णय जैसे अनेक गुणों का विकास होता है जो किसी भी राष्ट्र के भावी नागरिकों के विकास के लिए परम आवश्यक है। यह आवश्यक है कि छात्रावास विद्यालय के निकट हो तथा इसका वातावरण सुरम्य हो। यह ध्यान रखने की बात है कि छात्र घर से दूर हैं तथा विद्यालय संरक्षण में हैं। अत: बार्डन का व्यवहार स्नेह युक्त, सहयोग पूर्ण व अभिभावक तुल्य हो जिससे उन्हें घर का अभाव महसूस न हो सके। छात्रावास में भोजन के लिए गैस की उचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे उन्हें नियत समय पर भोजन मिल सके अन्यथा उनकी अधिगम प्रक्रिया प्रभावित होगी अर्थात् हम कह सकते हैं कि विद्यालय भवन की निर्माण योजना के साथ छात्रावास निर्माण योजना भी अत्यन्त आवश्यक हैं।
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