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प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism

प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism
प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism

प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर (Difference between Pragmatism and Idealism)

1. शाश्वत सत्यों का मत भिन्नता- आदर्शवाद कुछ पूर्ण निश्चित सत्य मूल्यों एवं आदर्शों पर विश्वास करता है तथा उन्हें अपरिवर्तनशील मानता है और मूल्यों का निर्धारण समस्या के बाद होना मानता है।

2. उद्देश्य सम्बन्धी भिन्नता- प्रयोजनवाद शिक्षा के उच्च तथा आदर्श उद्देश्य प्रस्तुत करने में समर्थ नहीं है। जबकि आदर्शवाद उच्च तथा आदर्श उद्देश्य प्रस्तुत करता है। आदर्शवाद आदर्श उद्देश्यों के आधार पर व्यक्ति का विकास करना चाहता है। जबकि प्रयोजनवाद मानवीय गुणों को विकसित करके बालक का विकास करने की बात करता है।

3. आध्यात्मिकता के सम्बन्ध में मतभेद- आदर्शवाद प्रकृति तथा मनुष्य ईश्वर दोनों को ही आध्यात्मक तत्व का प्रतिरूप मानता है। जबकि प्रयोजनवाद आध्यात्मिकता में विश्वास नहीं करता है। प्रकृतिवाद व्यक्ति की आध्यात्मिकता में विश्वास नहीं करता है। आदर्शवाद में व्यक्ति आध्यात्मिकता पर. बल देता है। जबकि प्रयोजनवाद मानव की बौद्धिक चेतना पर बल देता है।

4. सांस्कृतिक परिवेश में अन्तर- आदर्शवाद नैतिक आदतों तथा सांस्कृतिक कृतियों को महत्व देता है, जबकि प्रयोजनवाद उसकी उपेक्षा करता है।

5. क्रिया तथा विचार के सम्बन्ध में अन्तर- आदर्शवादी विचार को अधिक महत्व देते हैं, जबकि प्रयोजनवाद क्रिया को अधिक महत्व देते हैं। आदर्शवाद भौतिक जगत को अधिक महत्व न देकर वैचारिक जगत को महत्व देता है। परन्तु प्रयोजनवाद वर्तमान जीवन एवं उसकी क्रियाओं को अधिक महत्वपूर्ण मानता है।

6. पाठ्यक्रम में अन्तर- आदर्शवादी पाठ्यक्रम में धर्मशास्त्र में कला, संगीत तथा नैतिकशास्त्र को महत्व देते हैं। जबकि प्रयोजनवादी सामाजिक तथा वैज्ञानिक विषयों को पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान देते हैं।

7. मनोरंजन के सम्बन्ध में मत भिन्नता – आदर्शवाद मनोविज्ञान को अपूर्व विषय मानते हैं। क्योंकि उसके अन्तर्गत आदतों को कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया है, जबकि प्रयोजनवाद मनोवैज्ञानिक तत्वों, प्रवृत्तियों, मूल-प्रवृत्तियों, आवश्यकताओं, इच्छाओं आदि को महत्वपूर्ण स्थान देता है।

8. आदर्शवाद स्थिरवादी तथा प्रयोजनवाद परिवर्तनवादी- चूँकि आदर्शवाद पुरातन दृष्टिकोण में विश्वास करता है और कोई क्या दृष्टिकोण नहींप्रस्तुत करता है। इसलिए कुछ लोग आदर्शवाद को स्थिरवादी या व्यवस्थितवादी मानते हैं, जबकि प्रयोजनवादी को प्रगतिशील एवं परिवर्तनशील मानते हैं।

9. अनुशासन की धारणा सम्बन्धी भिन्नता – आदर्शवादी मनोविज्ञान को अपूर्व विषय मानते हैं। क्योंकि उसके अन्तर्गत आदतों को मानने या अनुशासन के पक्षपाती हैं।

10. शिक्षण विधि सम्बन्धी भेद- आदर्शवाद विधियों की ओर विशेष स्थान देता है तथा – वाद-विवाद एवं प्रश्नोत्तर विधि को अपनाने की बात करता है। प्रयोजनवाद द्वारा एक निश्चित विधि को (Project Method) किया गया है।

उपर्युक्त भेद को समझाने के बाद भी इन विचारधाराओं का कहींमिलन स्थल हो सकता है। इस सम्बन्ध में कई विद्वानों ने अपने अनेक विचार व्यक्त किये हैं। रॉस का कथन है कि यदि आदर्शवाद अपने को प्रगतिशील रखे तो प्रयोजनवाद के बीच का अन्तर कम हो जाता है।

रस्क के अनुसार प्रयोजनवाद उस नये आदर्शवाद का प्रथम चरण है जो आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक मान्यताओं में सामंजस्य उत्पन्न कर सकेगा। प्रयोजनवाद के प्रवर्तक महोदय के “प्रयोजनवाद को आदर्शवाद या प्रकृतिवाद के मध्य की अवस्था कहा है।”

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